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Indian Defence Sector: रक्षा निर्माण के क्षेत्र में स्वावलंबन से ही निकलेगी नई राह

Indian Defence Sector विडंबना है कि ज्यादातर लड़ाकू विमान निर्माता देश पुराने विमान ही भारत जैसे जरूरतमंद देशों को बेचते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2020 11:34 AM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 11:48 AM (IST)
Indian Defence Sector: रक्षा निर्माण के क्षेत्र में स्वावलंबन से ही निकलेगी नई राह

प्रमोद भार्गव। Indian Defence Sector आखिरकार पांच फ्रांसीसी फाइटर जेट राफेल भारतीय वायुसेना का हिस्सा बन गए। चीन से तनाव के चलते राफेल का सेना में शामिल होना सैनिकों का मनोबल बढ़ाएगा। ये लड़ाकू विमान लद्दाख की ऊंची पहाड़ियों की छोटी जगह पर भी उतर सकते हैं। इसे समुद्र में चलते हुए युद्धपोत पर भी उतारा जा सकता है। राफेल को अंबाला के एयरबेस पर इसलिए तैनात किया गया है, क्योंकि यहां से चीन और पाकिस्तान की सीमाएं अत्यंत नजदीक हैं।

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इन विमानों को आसमान से युद्ध के लिए विलक्षण माना जाता है। दरअसल राफेल अनेक खूबियों से भरा विमान है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक मिनट के मामूली समय में 60,000 किमी की ऊंचाई पर न केवल पहुंच जाता है, बल्कि जरूरत पड़ने पर परमाणु हथियारों से हमला भी करने में सक्षम है। साफ है, जब अतिक्रमणकारी और हठी चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा को लांघने के लिए एक दर्जन से भी ज्यादा जगह उत्पात मचाए हुए है, तब ये विमान वायु सैनिकों का मनोबल बढ़ाने का काम करेंगे। मिसाइलों से लैस ऐसे विमान फिलहाल चीन और पाकिस्तान के पास भी नहीं हैं। राफेल में हवा से हवा में मार करने वाली तीन तरह की मिसाइलें लगाई जा सकती हैं। साफ है, राफेल का आगमन दुश्मनों को एक सबक भी है।

दरअसल देरी और दलाली से अभिशप्त रहे रक्षा सौदों में राजग सरकार के वजूद में आने के बाद से लगातार तेजी दिखाई दी है। मिसाइलों और रॉकेटों के परीक्षण में भी यही गतिशीलता दिखाई दे रही है। इस स्थिति का निर्माण सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए जरूरी था, वरना रक्षा उपकरण खरीद के मामले में संप्रग सरकार ने तो लगभग हथियार डाल दिए थे। बावजूद इसके राफेल की खरीद में विपक्ष और राहुल गांधी संसद से लेकर सड़क तक बेबुनियाद आरोप- प्रत्यारोप लगाकर अड़ंगे लगाते रहे। इस कारण खरीद में जरूरत से ज्यादा देर हुई, जबकि इनको खरीदे जाने का फैसला मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में ही हो जाना चाहिए था।

रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के चलते तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी तो इतने मानसिक दबाव में आ गए थे कि उन्होंने हथियारों की खरीद को टालना ही अपनी उपलब्धि मान ली थी। नतीजतन हमारी तीनों सेनाएं शस्त्रों की कमी का अभूतपूर्व संकट झेल रही थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस गतिरोध को तोड़ा और राफेल विमानों की खरीद सुनिश्चित की। अन्य हथियारों एवं उपकरणों की खरीद का सिलसिला भी आगे बढ़ रहा है।

चीन से आज जो युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं, उसने राफेल खरीद की प्रासंगिकता को उसी तरह रेखांकित कर दिया है, जैसे राजीव गांधी के कार्यकाल में खरीदी गईं बोफोर्स तोपों ने कारगिल युद्ध के समय किया था। तब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह ने कारगिल की जीत का श्रेय बोफोर्स तोप को दिया था। जसवंत सिंह फौजी होने के साथ थल सेना में मेजर भी रह चुके थे। लिहाजा युद्ध में जीत के कारणों को एक फौजी से ज्यादा अन्य कोई क्या जान सकता है?

हालांकि राफेल लड़ाकू विमानों को पहले से ही फ्रांस की वायुसेना इस्तेमाल कर रही है, लेकिन विडंबना है कि ज्यादातर लड़ाकू विमान निर्माता देश पुराने विमान ही भारत जैसे जरूरतमंद देशों को बेचते हैं। 1978 में जब जगुआर विमानों का बेड़ा ब्रिटेन से खरीदा गया था, तब ब्रिटिश ने हमें वही जंगी जहाज बेचे थे, जिनका प्रयोग ब्रिटिश वायुसेना पहले से ही कर रही थी, लेकिन अधिकांश सरकारें परावलंबन के चलते ऐसी ही लाचारियों के बीच रक्षा सौदे करती रही हैं। इस लिहाज से जब तक हम रक्षा निर्माण के क्षेत्र में स्वावलंबी नहीं होंगे, तब तक हमें लाचारी के समझौतों की मजबूरी झेलनी ही होगी।

[वरिष्ठ पत्रकार]


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