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पक्ष-विपक्ष की तकरार में फंसी संसद, अपनी-अपनी मांगों पर अड़े रहे तो सदन में कार्यवाही होगी कठिन

राहुल का यह कहना भी परेशान करने वाला है कि मोदी सरकार अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक समझती है। उनके इन्हीं आपत्तिजनक बयानों के कारण भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है।

By Sanjay GuptaEdited By: Amit SinghPublished: Sat, 18 Mar 2023 11:47 PM (IST)Updated: Sun, 19 Mar 2023 06:03 AM (IST)
पक्ष-विपक्ष की तकरार में फंसी संसद, अपनी-अपनी मांगों पर अड़े रहे तो सदन में कार्यवाही होगी कठिन
पक्ष-विपक्ष अपनी मांगों पर अड़े रहे तो सदन में कार्यवाही होगी कठिन

[संजय गुप्त]। संसद के बजट सत्र के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी हंगामा होना तय दिख रहा था। ऐसा ही हुआ। इस बार विचित्र यह है कि विपक्ष के साथ सत्‍तापक्ष भी हंगामा कर रहा है। राहुल गांधी ने पिछले दिनों अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान भारतीय लोकतंत्र पर जो अवांछित टिप्‍पणियां कीं, उन्हें लेकर सत्तापक्ष उनसे माफी की मांग कर रहा है। सत्तापक्ष के सदस्य राहुल गांधी पर हमलावर होकर जिस तरह सदन नहीं चलने दे रहे हैं, वह इसलिए अप्रत्याशित है, क्योंकि आम तौर पर सत्तारूढ़ दल ऐसा नहीं करता। सत्तापक्ष के रवैये से यह साफ है कि वह अदाणी मामले पर मोदी सरकार को घेरने की कांग्रेस की रणनीति के जवाब में राहुल गांधी को घेर रहा है।

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निःसंदेह राहुल गांधी ने लंदन में भारतीय लोकतंत्र के बारे में जो कुछ कहा, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। उनका यह कहना बेहद आपत्तिजनक है कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो गया है और फिर भी अमेरिका एवं यूरोप कुछ नहीं कर रहे हैं। इससे यही ध्वनित हुआ कि वह यह चाहते हैं कि अमेरिका और यूरोप को भारत में हस्तक्षेप करना चाहिए। यह सांसद के तौर पर राहुल की ओर से ली गई उस शपथ का उल्लंघन है, जिसके तहत देश की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रखने का वचन लिया जाता है।

राहुल का यह कहना भी परेशान करने वाला है कि मोदी सरकार अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक समझती है। उनके इन्हीं आपत्तिजनक बयानों के कारण भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। निशिकांत दुबे यह भी मांग कर रहे हैं कि राहुल गांधी के आपत्तिजनक बयानों के कारण उनकी सदस्यता निलंबित की जाए।

भाजपा के अन्य नेताओं के साथ पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी राहुल गांधी पर अपने राजनीतिक हमले तेज कर दिए हैं। इसके जवाब में कांग्रेस जहां अदाणी मामले की जांच जेपीसी से कराने पर अड़ गई है, वहीं वह प्रधानमंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस लेकर भी आ गई है। यह स्पष्ट है कि विपक्ष अदाणी मामले की जांच जेपीसी से कराने की मांग पर जैसे-जैसे जोर दे रहा है, वैसे-वैसे सत्तापक्ष राहुल की माफी की मांग तेज करता जा रहा है। यदि दोनों पक्ष अपनी-अपनी मांग पर अड़े रहे तो संसद का चलना कठिन ही होगा।

अदाणी मामले की जांच जेपीसी से कराने पर कांग्रेस और अन्य दल चाहे जितना जोर दें, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस मांग का औचित्य इसलिए खत्म हो गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से इस मामले की जांच के लिए एक छह सदस्यीय समिति गठित कर दी है। इसके अलावा सेबी भी अपने स्तर पर इस मामले की जांच कर रहा है।

आखिर ऐसे में जेपीसी का गठन करने की मांग का क्या औचित्य? यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अभी तक वित्तीय मामलों की जो भी जांच जेपीसी से हुई है, उसमें जांच के नाम पर दलगत राजनीति ही अधिक हुई है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि विपक्ष और खासकर कांग्रेस अदाणी मामले की जांच पर इसीलिए जोर दे रहा है, ताकि इस मुद्दे को अगले आम चुनाव तक जिंदा रखा जा सके- ठीक उसी तरह जैसे पिछले आम चुनाव के समय राफेल सौदे को तूल देकर किया गया था। आसार यही हैं कि जैसे राहुल को राफेल मसले को तूल देकर कुछ हाथ नहीं लगा था, वैसे ही अदाणी मामले को उछालने से भी उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

अदाणी समूह को लेकर अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट उस समय आई थी, जब पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। कांग्रेस ने इस रिपोर्ट को खूब उछाला, लेकिन उसे कोई चुनावी लाभ नहीं मिला। कांग्रेस और कुछ विपक्षी दल विभिन्न नेताओं के खिलाफ ईडी और सीबीआइ की जांच को भी तूल दे रहे हैं। इसे लेकर विपक्षी दलों की ओर से ईडी दफ्तर तक जो मार्च निकालने की कोशिश की गई, उसमें तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी ने भाग नहीं लिया। स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर विपक्ष में एका नहीं। इसके पहले मनीष सिसोदिया के मामले में जो चिट्ठी लिखी गई थी, उसमें केवल आठ दलों के नेताओं ने ही हस्ताक्षर किए थे।

विपक्ष कुछ भी कहे, जो नेता घपले-घोटालों के आरोपों से घिरे हुए हैं, उन्हें पाक-साफ नहीं कहा जा सकता। चूंकि इन नेताओं को अदालतों से भी राहत नहीं मिली है, इसलिए विपक्षी दल जनता को यह संदेश देने में सफल नहीं हो पा रहे हैं कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। आखिर जनता यह कैसे भूल सकती है कि घपले-घोटालों के आरोपों से घिरे कई नेताओं अथवा उनके करीबियों के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान अकूत संपत्ति होने के दस्तावेज मिले हैं।

इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकारी तंत्र में भ्रष्‍टाचार है और इसका कारण भ्रष्ट नेता और नौकरशाह हैं। जब तक राजनीतिक भ्रष्टाचार है, तब तक केंद्रीय जांच एजेंसियों को सक्रिय रहना चाहिए। हां, यह अवश्य नहीं कहा जा सकता कि राजनीतिक भ्रष्टाचार केवल विपक्ष शासित राज्यों में ही है।

अदाणी मामले की जांच जेपीसी से कराने की विपक्ष की मांग और राहुल गांधी की माफी की सत्तापक्ष की मांग का नतीजा कुछ भी हो, बजट सत्र का सही तरीके से चलना मुश्किल दिख रहा है। राहुल गांधी के तेवरों से यह साफ है कि वह इस पर जोर देना चाहते हैं कि संसद में उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है, लेकिन सभी को पता है कि बजट सत्र के पहले चरण में वह बोले थे और खूब बोले थे। उनका यह कहना राजनीतिक बयान ही अधिक है कि संसद में उनका माइक बंद कर दिया जाता है।

संसद में बोलने के कुछ तौर-तरीके हैं और हर किसी को उनका पालन करना होगा, लेकिन ऐसा लगता है कि विधिवत तरीके से संसद चलने देने में किसी की रुचि नहीं। संसद सही तरह से तभी चल सकती है, जब सदन चलाने संबंधी नियम-कानूनों का पालन किया जाएगा। अब जब गृहमंत्री यह कह रहे हैं कि विपक्ष बातचीत के लिए आगे आए तो गतिरोध दूर हो सकता है, तब फिर उसे ऐसा करना ही चाहिए, क्योंकि संसद चलाने का यही उपाय है।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]


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