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पाक को अलग-थलग रखने में मिली वैश्विक कामयाबी, इस तरह सफल हो रही भारतीय कूटनीति

India - Pakistan Relation and Howdy Modi रविवार को आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम काफी चर्चा में है जिससे भारत और अमेरिका के संबंधों में मजबूती की पूरी उम्मीद जताई जा रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 08:53 AM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 12:24 PM (IST)
पाक को अलग-थलग रखने में मिली वैश्विक कामयाबी, इस तरह सफल हो रही भारतीय कूटनीति
पाक को अलग-थलग रखने में मिली वैश्विक कामयाबी, इस तरह सफल हो रही भारतीय कूटनीति

[डॉ. रहीस सिंह]। 'India - Pakistan Relation' and 'Howdy Modi' आने वाले समय में पांच अगस्त 2019 का दिन भारतीय राजनय के इतिहास में एक टर्निंग प्वाइंट के रूप में देखा जाएगा। यह तारीख इसलिए ही महत्वपूर्ण नहीं है कि भारतीय संसद ने अपनी संप्रभु सीमाओं के अंदर अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए एक आधारभूत निर्णय लेकर इतिहास का एक नया अध्याय लिख दिया, बल्कि इसलिए भी क्योंकि इसके बाद पाकिस्तान ने भारत को कूटनीतिक तौर पर डिग्रेड करने की जो मुहिम शुरू कर की उसमें उसे हर जगह मात मिली। गौर से देखें तो इससे पहले भारत पाकिस्तान को वैश्विक कूटनीति में अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन इसके बाद उसके वे सभी परिणाम एक साथ दिखाई दिए जिनकी उसे अपेक्षा थी।

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ऐसा करना भारत के लिए यद्यपि बड़ी चुनौती नहीं थी, लेकिन जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सिंपल हार्मोनिक मोशन करते दिख रहे थे और पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त चीन पाकिस्तान के पाले में खड़ा दिखाई दे रहा था, उसे देखते हुए भारत को अग्रगामी, रणनीतिक और काउंटर करने वाले कदम उठाने की जरूरत थी। इन कदमों की पिछले लगभग एक महीने में सभी ने न केवल आहट सुनी, बल्कि उनके अच्छे परिणाम भी देखे। इन्हीं कदमों का परिणाम है कि पाकिस्तान लगभग अनिश्चय की स्थिति में पहुंच चुका है और भारत एशिया के नेता के रूप में अपनी दावेदारी करता नजर आ रहा है।

पाकिस्तान को अलग- थलग रखने में वैश्विक कामयाबी

कश्मीर पर एक ऐतिहासिक निर्णय लेने के बाद प्रधानमंत्री जब जी-7 सम्मेलन में भाग लेने के लिए गए तो ऐसा अनुमान व्यक्त किया जा रहा था कि संभवत: भारत के सामने कुछ सवाल भी रखे जाएंगे जो भारत के लिए भावी चुनौतियां साबित हों। यह भी संभावना थी कि जी-7 के कुछ देश पाकिस्तान की पैरोकारी करें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बायरिट्ज में जिस तरह से पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भारत सफल रहा, वह एक बड़ी कूटनीतिक विजय है। बायरिट्ज में पाकिस्तान के मित्र भी अपना माइंडसेट बदलते हुए दिखे। वे सब भारत के साथ निर्णायक साझेदारी कायम करने की पहल कर रहे थे। भारत के इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि अब पाकिस्तान पर आतंकवाद को लेकर शिकंजा कसता जा रहा है। संभावनाएं प्रबल हो रही हैं कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स अगले महीने पाकिस्तान को कहीं ब्लैट लिस्ट में न डाल दे। अभी तक पाकिस्तान उसकी ग्रे लिस्ट में है। यदि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ऐसा निर्णय लेता है कि पाकिस्तान को आर्थिक ध्वंस से बच पाना मुश्किल होगा और उन स्थितियों में पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ लड़ा जा रहा छद्म युद्ध काफी कमजोर पड़ेगा।

फ्रांस से संबंधों में मजबूती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बायरिट्ज (फ्रांस) जी-7 समिट के दौरान ही संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन की यात्रा पर भी गए थे। फ्रांस में उनकी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच बातचीत हुई तथा दोनों देशों के बीच स्किल डेवलपमेंट, व्यावसायिक पाठ्यक्रम, सौर ऊर्जा और एडवांस कंप्यूटिंग पर सहयोग के साथ-साथ साइबर सिक्योरिटी, साइबर इनोवेशन, साइबर क्राइम के खिलाफ साझेदारी, डिजिटल गवर्नेंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रेगुलेशन जैसे मुद्दों पर सहमति बनी। खास यह कि नई दिल्ली और पेरिस के बीच लंबे समय से ‘शक्तियों की अनुरूपता’ (कंपैटिबिलिटी ऑफ पावर्स) का दायरा बढ़ रहा है जिसे भारत के राजनयिक प्रयासों ने रणनीतिक स्तर पर लाने की कोशिश की है।

ध्यान रहे कि फ्रांस भारत में नौवां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है। अप्रैल 2000 से अक्तूबर 2017 के बीच इसने भारत में लगभग छह अरब डॉलर का निवेश किया है, जबकि अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के बीच दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 11 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसके साथ ही फ्रांस जिस तरह से रक्षा, अंतरिक्ष, सुरक्षा और ऊर्जा से जुड़े मुद्दों पर भारत से घनिष्ठता स्थापित करना चाह रहा है उसे देखते हुए शायद यह माना जा सकता है कि फ्रांस आज उस भूमिका में आना चाहता है जिस भूमिका में कभी रूस था। हालांकि उसके अपने उद्देश्य हैं जिनमें सबसे अहम है भारत का रक्षा बाजार, लेकिन कंपैटिबिलिटी बनाने के लिए इस प्रकार की अन्योन्याश्रिता आवश्यक होती है।

मुस्लिम देशों से सुधरते संबंध

इसी बीच नरेंद्र मोदी 23 अगस्त को यूएई गए थे, जहां उन्हें आबूधाबी के प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जाएद अल नहयान ने यूएई के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ जाएद’ से सम्मानित किया। भारत और इस्लामी दुनिया के साथ संबंधों में इस समय व्यक्तिगत कूटनीति (इंडिविजुअल डिप्लोमैसी) अपने प्रभाव को स्थापित कर रही है, जो इससे पहले कभी नहीं दिखी। शायद इसी का प्रभाव कह सकते हैं कि जिस इस्लामी दुनिया, विशेषकर सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात या इस्लामी संगठन में पाकिस्तान का सिक्का चलता रहा है, अब वह बहिष्कृत महसूस कर रहा है।

पीएम को मिले अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

नरेंद्र मोदी को मिले इस सर्वोच्च सम्मान से दुनिया को यह संदेश गया कि अब भारत और खाड़ी देशों के रिश्ते सिर्फ खरीद-बिक्री या व्यापार के नहीं रह गए हैं, बल्कि ये रिश्ते अब व्यापारिक परिधियों को पार कर स्वाभाविक साझेदारी के दायरे में पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बात स्वीकार भी की कि अब द्विपक्षीय संबंधों में हमारा दृष्टिकोण समान है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यूएई, भारत के साथ तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है और दोनों ही देश भारत में 75 अरब डॉलर निवेश को लेकर प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। अगर इसमें बहरीन के किंग द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दिए गए सम्मान ‘द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां’ के साथ बहरीन की भारत के साथ बन रही कंपैटीबिलिटी को भी जोड़ लें तो स्पष्ट हो जाएगा कि इस्लामी दुनिया के साथ भारत की बॉन्डिंग इस तरह से बन रही है कि पाकिस्तान उसे किसी भी स्थिति में काउंटर नहीं कर पाएगा।

वैसे भी आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआइसी) के विदेश मंत्रियों की परिषद के 46वें सत्र में आबूधाबी में भारत ने अपनी उपस्थिति दर्जा कराकर पाकिस्तान को संदेश दे दिया था। भारत ने इस संगठन में पहली बार शिरकत की थी और इन देशों ने भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री को विशिष्ट अतिथि के तौर पर पाकिस्तान की कीमत पर बुलाया था। यही वजह थी कि पाकिस्तान ने इसके बहिष्कार की धमकी दी थी, लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया था। फिलहाल इतना कहा ही जा सकता है कि चाहे वह सऊदी अरब हो या संयुक्त अरब अमीरात या फिर इस्लामी विश्व के अन्य देश, वे उभरती हुई आर्थिक ताकत और कौशल प्रधान भारत के साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहते हैं, मौलानाओं और जेहादियों के मुल्क पाकिस्तान से नहीं।

[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]

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