COVID-19: कोरोना वायरस के उपचार के लिए दुनिया ने झोंकी ताकत
COVID-19 कोरोना से लड़ाई में कौनसी दवा कारगर है कैसे करती हैं दवाएं काम क्या एचआइवी और मलेरिया की दवा इस महामारी में कारगर हैं जैसे सवालों की पड़ताल करती यह रिपोर्ट।
नई दिल्ली, जेएनएन। COVID-19: कोरोना वायरस से लड़ाई के लिए उपचार खोजने का काम दुनिया के विभिन्न देशों में चल रहा है। विभिन्न दवाओं पर शोध किया जा रहा है। कई दवाओं का वायरस के खिलाफ ट्रायल किया जा रहा है। बीबीसी के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सटीक उपचार के आकलन के लिए सॉलिडेरिटी परीक्षण शुरू किया है। वहीं ब्रिटेन सबसे बड़े रिकवरी परीक्षण में जुटा है। साथ ही दुनिया के कई देश कोरोना के इलाज के लिए शोध में जुटे हैं। कोरोना से लड़ाई में कौनसी दवा कारगर है, कैसे करती हैं दवाएं काम, क्या एचआइवी और मलेरिया की दवा इस महामारी में कारगर हैं, जैसे सवालों की पड़ताल करती यह रिपोर्ट।
यहां चल रहा है काम : दुनिया में कोरोना से मुकाबले के लिए विभिन्न देशों में काम चल रहा है। करीब 150 दवाओं पर रिसर्च की जा रही है। वायरस के खिलाफ डब्ल्यूएचओ ने सॉलिडेरिटी ट्रायल को लांच किया है, जिसका उद्देश्य सर्वाधिक भरोसेमंद उपचार को तलाशना है। बीबीसी के अनुसार इसमें चार विकल्पों की तुलना की जाएगी और उन दवाओं का पता लगाया जाएगा जो रोग को धीमा करती हैं या फिर जीवित रहने की उम्मीद बढ़ाती है। वहीं ब्रिटेन का दावा है कि रिकवरी ट्रायल दुनिया का सबसे बड़ा परीक्षण है, जिसमें 5000 से ज्यादा लोग हिस्सा बन चुके हैं। जबकि दुनिया के कई हिस्सों में रिसर्च सेंटर्स संक्रमण के बाद ठीक होने वाले व्यक्ति के रक्त के नमूनों को उपचार के रूप में देख रहे हैं।
इस तरह की दवाएं करेंगी काम : इसे लेकर तीन दृष्टिकोणों पर काम किया जा रहा है। इनमें एंटीवायरस दवाएं हैं जो शरीर के अंदर पनपने की कोरोना वायरस की क्षमता को प्रभावित करती हैं। दूसरी तरह की दवाएं इम्यून सिस्टम को शांत कर सकती हैं। मरीज गंभीर रूप से बीमार होता है तो उसका इम्यून सिस्टम खत्म हो जाती है और शरीर को क्षति होती है। तीसरी तरह की दवाओं में एंटीबॉडी है, जो कि संक्रमण से ठीक होने वाले व्यक्ति के रक्त से या लैब में तैयार की जाती है, जो वायरस पर हमला कर सकते हैं।
एचआइवी की दवाएं कितनी कारगर : इसका छोटा सा प्रमाण है कि एचआइवी की दवा लोपिनेविर और रिटोनेविर कोरोना वायरस से लड़ने में प्रभावी होंगी। हालांकि इसके परिणाम लोगों पर किए गए अध्ययन में निराशाजनक रहे हैं। यद्यपि यह परीक्षण बेहद बीमार लोगों के साथ किया गया था।
सर्वाधिक आशाजनक दवाएं : डब्ल्यूएचओ के डॉक्टर ब्रुस एल्वार्ड कहते हैं कि रेमिडेसिवियर इकलौती दवा है जिसने अपना प्रभाव दिखाया है। इस एंटीवायरल दवा को इबोला के उपचार के लिए बनाया गया था, लेकिन अन्य विकल्प ज्यादा प्रभावी साबित हुए। जानवरों पर हुए अध्ययन में इसे अन्य घातक कोरोना वायरस के इलाज में ज्यादा प्रभावी पाया गया। उम्मीद है कि यह कोविड-19 में भी ज्यादा प्रभावी होगी। शिकागो विश्वविद्यालय के लीक हुए परिणामों में भी ऐसी ही बातें सामने आई थीं। यह डब्ल्यूएचओ सॉलिडेरिटी ट्रायल की चार दवाओं में से एक है, जिसके निर्माता गिलेड भी इस पर ट्रायल कर रहे हैं।
इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाएं : यदि इम्यून सिस्टम वायरस को लेकर प्रतिक्रिया की अति तक पहुंचता है तो यह पूरे शरीर में सूजन पैदा कर सकता है। यह दवाएं कोरोना वायरस से लड़ने में इम्यून सिस्टम की मदद करती हैं लेकिन इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल शरीर के लिए घातक हो सकता है। सॉलिडेरिटी ट्रायल इंटरफेरॉन बीटा की जांच कर रहा है। इंटरफेरॉन, वायरस द्वारा हमले के दौरान शरीर द्वारा जारी रसायनों का समूह है। वहीं ब्रिटेन का रिकवरी ट्रायल डेक्सामेथासोन की जांच कर रहा है, जो सूजन को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला स्टेरॉयड है।
ये लोग इलाज में उपयोगी : जो लोग संक्रमण के बाद बच जाते हैं, उनके रक्त में एंटीबॉडी बनती है, जो वायरस पर हमला कर सकते हैं। इसमें आप रक्त प्लाज्मा लेते हैं और बीमार रोगी को थेरेपी के रूप में देते हैं। अमेरिका ने इसके जरिए 500 रोगियों का इलाज किया है। डॉक्टर अब इस तरह कर रहे इलाज यदि आप कोरोना वायरस से संक्रमित हैं, तो यह ज्यादा परेशानी का कारण नहीं है। बिस्तर पर आराम, पेरासिटामोल और तरल पदार्थ के साथ घर पर इलाज किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोगों को अस्पताल में इलाज की जरूरत होती है, इलाज के दौरान मरीजों को ऑक्सीजन दिया जाता है।