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Sushant Singh Rajput Death: सुशांत समेत हर वर्ष लाखों लोग क्‍यों चुनते हैं सुसाइड का रास्‍ता, जानें ऐसे कुछ सवालों के जवाब

Sushant Singh Rajput Suicide मनोचिकित्‍सक डिप्रेशन को multifactorial illness मानते हैं। इसमें कई कारण शामिल होते हैं जो सुसाइड के विचार को जन्‍म देते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 15 Jun 2020 11:43 AM (IST)Updated: Mon, 15 Jun 2020 05:16 PM (IST)
Sushant Singh Rajput Death: सुशांत समेत हर वर्ष लाखों लोग क्‍यों चुनते हैं सुसाइड का रास्‍ता, जानें ऐसे कुछ सवालों के जवाब
Sushant Singh Rajput Death: सुशांत समेत हर वर्ष लाखों लोग क्‍यों चुनते हैं सुसाइड का रास्‍ता, जानें ऐसे कुछ सवालों के जवाब

नई दिल्‍ली। बॉलीवुड एक्‍टर सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्‍महत्‍या किए जाने की खबर के बाद हर कोई ये जानना चाहता है कि ऐसा क्‍यों होता है। लाखों लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इनका जवाब हर किसी के पास हो, ये मुमकिन नहीं हैं। लेकिन इनका जवाब मनोचिकित्‍सक के पास है। इन सवालों के जवाब जानने के लिए jagran.com ने डॉक्‍टर श्‍वेतांक बंसल, से बात की। आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में हर वर्ष 8 लाख लोग आत्‍महत्‍या कर अपनी जान देते हैं। भारत दुनिया के उन चंद देशों में शुमार है जहां पर आत्‍महत्‍या करने वालों की संख्‍या दूसरे देशों के मुकाबले काफी अधिक है। 

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क्‍या है साइको सोशल मॉडल

डॉक्‍टर बंसल के मुताबिक भारत को दुनिया में सबसे अधिक डिप्रेस्‍ड नेशन (most depressed nation) माना जाता है। इस लिहाज भारत की स्थिति विश्‍व में नंबर वन की है, जो बेहद दुखद है। उनके मुताबिक बायो साइको सोशल मॉडल (psychosocial model) को तहत डिप्रेशन को एक्‍सप्‍लेन किया जाता है। इसके तीन प्रमुख कारणों में बायोलॉजिकल (biological), साइक्‍लॉजिकल (psychological effects) और सोशल फैक्‍टर (social effect) शामिल हैं।

बायोलॉजिकल फैक्‍टर

भारत की यदि बात की जाए तो करीब 52 फीसद मामलों में बायोलॉजिकल फैक्‍टर (Biological Factor) में जेनेटिक फैक्‍टर (Genetic Factor for depression) को पाया गया है। उनके मुताबक बॉयलॉजिकल चैंजेज होना जिसमें हाइपोथायरोडिज्‍म (hypothyroidism) शामिल है, डिप्रेशन में काफी कारगर भूमिका निभाता है और भारतीयों में ये काफी पाया गया है। इसके अलावा मोटापा (obesity) भी डिप्रेशन में अहम भूमिका निभाता है और 50-60 फीसद लोगों में इसकी वजह से डिप्रेशन के चांसेज बढ़ जाते हैं।

क्रॉनिक कंडिशन

इसके अलावा कुछ क्रॉनिक कंडिशन (chronic conditions) भी इसमें कारगर साबित होती हैं। इसमें डायइबिटीज (diabetes), दिल की बीमारी (heart disease) शामिल है। इन बीमारियों से ग्रसित 50-60 फीसद मरीज डिप्रेशन के शिकार होते हैं। ये कारण डिप्रेशन के रिस्‍क को कई फीसद बढ़ा देते हैं। साइक्‍लोजिकल फैक्‍टर्स (psychological effects) में हमारे दिमाग में आने वाले विचार, पर्सनेलिटी, परिवार, पढ़ाई और नौकरी का तनाव शामिल हैं।

डिप्रेशन का जेनेटिक कारण

डिप्रेशन का जेनेटिक कारण होने के पीछे हमारे शरीर में मौजूद कुछ जीन्‍स होते हैं जो डिप्रेशन के कारणों को बढ़ा देते हैं। उनके मुताबिक कई शोध में इनका आपसी संबंध पाया गया है। शोध के मुताबिक भारतीयों में इसकी तादाद काफी पाई गई है। उनके मुताबिक ये बीमारी मल्‍टीफेक्‍टोरियल इलनेस (psychological illness multifactorial measure) या एक ऐसी बीमारी है जिसके पीछे कोई एक कारण नहीं होता बल्कि कई कारण एक साथ मिलकर काम करते हैं। डॉक्‍टर बंसल के मुताबिक इसका एक कारण ये भी कि इसके मरीज शुरुआत में इसकी तरफ ध्‍यान नहीं देते हैं और जब तक ध्‍यान दिया जाता है तब तक काफी देर हो जाती है। उनके मुताबिक परिवार में किसी एक व्‍यक्ति को भी इस बीमारी का होना पूरे परिवार को अस्‍त-व्‍यस्‍त कर सकता है।

डिप्रेशन की वजह

  • इसमें व्‍यक्ति के बेहद करीबी का दूर हो जाना।
  • परिवार से दूर अकेले रहना।
  • भविष्‍य को लेकर होने वाली चिंता।
  • असुरक्षा की भावना का पैदा होना।
  • अन्‍य लोगों द्वारा अलग-थलग कर देना।
  • वित्‍तीय समस्‍या समेत पारिवारिक समस्‍या।
  • पढ़ाई का बोझ और अन्‍य लोगों की उनसे उम्‍मीद।

ये हैं लक्षण

उनके मुताबिक इस बीमारी का पता महज देखने से पता नहीं चलता है। इसका पता वो लोग लगा सकते हैं जो मरीज को लगातार देखते हैं, उसके साथ वक्‍त बिताते हैं या उसे जानते हैं।

  • मरीज के स्‍वभाव में बदलाव आना। 
  • जिस चीज को वो पहले रेगुलर करता था उसमें कमी आना।
  • एनर्जी लेवल कम होना। 
  • किसी काम में नहीं लगना।
  • अलग रहना ज्‍यादा पसंद करना।
  • भविष्‍य के प्रति असुरक्षा की भावना घर कर लेना।
  • याददाश्‍त का कमजोर होना। 
  • नींद और भूख (appetite) का पहले के मुकाबले कम या अधिक होना। 
  • आत्‍मविश्‍वास की कमी होना।
  • चुनौतियों से दूर भागना।
  • परफोर्मेंस लगातार गिरना।

डॉक्‍टर बंसल के मुताबिक कई बार इसके मरीज इनसे बचाव के लिए शराब या दूसरे नशीली दवाओं का इस्‍तेमाल करने लगते हैं। लेकिन, ये सभी चीजें डिप्रेशन को घटाने की बजाए इसका लेवल काफी बढ़ा देती हैं।

करीबी लोगों के अचानक जाने का दुख

आपको बता दें कि सुशांत सिंह राजपूत के मैनेजर ने कुछ दिन पहले ही सुसाइड किया था। क्‍या इसका कहीं कोई असर सुशांत पर पड़ा। इस सवाल के जवाब में डॉक्‍टर बंसल ने कहा कि ये हमारा उस इंसान से कितना जुड़ाव है इस पर तय होता है। वहीं उसकी मौत की वजह उन लोगों पर गहरा असर डालती है जो पहले से ही डिप्रेस्‍ड है। उनके मुताबिक किसी व्‍यक्ति के मन में सुसाइड करने का ख्‍याल अचानक और कुछ समय तक डिप्रेशन में बने रहने के बाद भी आ सकता है।

ज्‍यादा से ज्‍यादा हों बात

उनके मुताबिक इस बारे में हुए शोध में ये बात सामने आई है कि यदि ऐसे व्‍यक्तियों से सुसाइड को लेकर बात की जाती है तो उनमें इसका अटेंम्‍प्‍ट करने के चांसेज काफी हद तक घट जाता है। शोध में जो बात सामने आई है ऐसे लोग कहीं न कहीं किसी न किसी व्‍यक्ति से इसका जिक्र जरूर करते हैं। इसलिए ऐसे मरीजों से इस बारे में बात जरूर करनी चाहिए। डॉक्‍टर बंसल के मुताबिक सुशांत सिंह अकेले रहते थे जो डिप्रेशन की एक बड़ी वजह बनता है। लेकिन कई बार पर‍िवार के बीच भी इस तरह की समस्‍या आती है जब कोई व्‍यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। ऐसे में परिवार की जिम्‍मेदारी उसके प्रति काफी बढ़ जाती है। लिहाजा ऐसे व्‍यक्ति से अधिक से अधिक बात करने की जरूरत होती है। शोध बताते हैं कि ये लोग चाहते हैं कि कोई उन्‍हें धैर्यपूर्वक सुनें। लिहाजा उन्‍हें सुनें ज्‍यादा और बोलें कम। ऐसा करने से उनके मन में जो सुसाइड करने का भाव आता है वह निकल सकेगा और वो दोबारा अन्‍य लोगों से जुड़ पाएंगे।

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