नेपाल से हुए सीमा पर विवाद पर जानें क्या है पूर्व राजनयिकों और विशेषज्ञों की राय
नेपाल ने विवादित नक्शे को सदन में पास कराकर भारत के साथ वर्षों पुराने संबंधों को खराब करने की कोशिश की है। विशेषज्ञों मानते है कि भारत को विवाद सुलझाने के लिए पहल करनी होगी।
नई दिल्ली (पीटीआई)। नेपाल के नए नक्शे को लेकर भारत काफी नाराज है। इस नए नक्शे में भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाकों को नेपाल ने अपना बताते हुए विवाद खड़ा किया है। वहीं भारत ने नेपाल के दावों को खारिज कर दिया है। शनिवार को इस नए नक्शे को नेपाल के सदन में पास कर दिया गया था। हालांकि अभी इसको उच्च सदन में पास होना है। इसको लेकर विशेषज्ञों की अपनी-अपनी राय है। लेकिन विशेषज्ञ ये जरूर मानते हैं कि भारत को इस विवाद को सुलझाने के लिए नए नजरिए के साथ पहल करनी होगी।
नेपाल से लगती 1850 किमी लंबी सीमा रेखा
आपको बता दें कि भारत और नेपाल के बीच 1850 किमी लंबी सीमा रेखा है जो भारतीय राज्य सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, और उत्तराखंड की सीमा से लगती है। भारत और नेपाल के बीच वर्षों से रिश्ते बेहतर रहे हैं और दोनों ही देशों के लोग एक दूसरे के यहां पर आसानी से आते जाते रहे हैं। इसके अलावा भारत नेपाल का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर भी है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018-19 में ये करीब 57858 करोड़ रुपये का था। नेपाल के गोरखा जवान भारतीय सेना में जवान बनते आए हैं। वर्तमान में इनकी संख्या करीब 32 हजार है। ऐसे में इस तरह का विवाद निश्चिततौर पर चिंता बढ़ा देता है।
खतरनाक स्तर पर संबंध
नेपाल में भारत के राजदूत रह चुके राकेश सूद का मानना है कि मौजूदा दौर में फैसले से दोनों देशों के संबंध बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गए हैं। भारत लगातार विवाद का हल तलाशने के लिए बीते नवंबर से ही कोशिश में लगा है। उनके मुताबिक नेपाल ने अपने लिए इतना गहरा गड्ढा खोद लिया है कि अब उसको बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। हालांकि सूद ये नहीं मानते हैं कि इस विवादित मुद्दे के पीछे चीन का हाथ है, लेकिन वे इतना जरूर मानते हैं कि बीते कुछ समय में चीन का प्रभाव नेपाल में बढ़ा है। उनके मुताबिक भारत को इस विषय पर नेपाल से सीधे बात करने की जरूरत है।
ओली इसलिए दे रहे भारत विरोध को हवा
सूद के अलावा नेपाल में बतौर भारतीय राजदूत अपनी सेवाएं दे चुके रंजीत राई का कहना है कि प्रधानमंत्री केपी ओली ने स्थानीय और आतंरिक राजनीतिक को हवा देने के मकसद से नए और विवादित नक्शे के साथ आगे बढ़ने का मन बनाया है। उनके मुताबिक ऐसा करके वे नेपाल में भारत विरोधी मानसिकता को हवा देकर चुनाव में जीत हासिल करना चाहते हैं। रंजीत का कहना है कि ओली स्थानीय राजनीति के दबाव में हैं और मानते हैं कि ये मुद्दा और उनकी ये नीति दोबारा चुनाव जीताने में कारगर साबित होगी।
ओली को लग रहा डर
आर्थिक मोर्चे पर नाकामी के चलते उनके खिलाफ नेपाल में लगातार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं कोविड-19 की रोकथाम को लेकर भी उनकी आलोचना हो रही है। इतना ही नहीं नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी में यहां तक की चर्चा चल रही है कि पार्टी की लीडरशिप में बड़ा बदलाव हो सकता है। इसके चलते प्रधानमंत्री ओली कहीं न कहीं खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
ये नया नेपाल है
रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर एसडी मुनी का कहना है कि नेपाल की इस कारगुजारी के पीछे चीन का हाथ है। वह चाहता है कि नेपाल और भारत के बीच वर्षों से चले आ रहे बेहतर रिश्ते खराब हों जिसका फायदा भारत के खिलाफ वो खुद उठा सके। उनकी निगाह में इसका सबसे बड़ा संकेत यही था कि नेपाली खुद को मुखर कर रहे हैं और विशेष संबंधों की पुरानी रूपरेखा वर्तमान में धुंधली हो गई है। उन्हें अब इसकी परवाह नहीं रही है। उनके मुताबिक अब भारत को नेपाल से कुछ दूसरी तरह से निपटना होगा और कुछ और अधिक संवेदनशीलता होना होगा। उनकी निगाह में यह एक नया नेपाल है।
बातचीत की पहल करनी जरूरी
मुनी का कहना है कि 65 फीसद नेपाली युवा हैं, उन्हें बीते समय में क्या हुआ है, इसकी परवाह नहीं है। उनकी अपनी सोच और उम्मीदें हैं। जब तक भारत उनकी आकांक्षाओं के लिए प्रासंगिक नहीं होगा, वे भारत की परवाह नहीं करेंगे। सूद की ही तरह प्रोफेसर मुनी भी मानते हैं कि भारत को इस संबंध में विवाद सुलझाने के लिए आगे बढ़कर एक नए नजरिए के साथ बातचीत की पहल करने की जरूरत है।
एक नजर में
गौरतलब है कि वर्ष 2015 इक्नॉमिक ब्लोकेड के बाद से ही दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव बना रहा है। इसका फायदा चीन ने उठाया है। चीन ने न सिर्फ नेपाल को वित्तीय मदद मुहैया करवाई बल्कि वहां के शहरों से अपने शहरों को जोड़ने के लिए रोड़ नेटवर्क तैयार किया और उन चीजों को मुहैया करवाया जिस पर नेपाल पहले भारत के भरोसे रहता था। नेपाल को अपने पक्ष में करने के लिए चीन का इरादा काठमांडू से तिब्बत के ल्हासा के बीच रेल नेटवर्क तैयार करने का भी है। चीन ने नेपाल को अपने चार बंदरगाह ऑफर किए हैं जिससे वो अपने जरूरत की चीजों को मंगा सके। इससे पहले ये सामान भारत के रास्ते नेपाल पहुंचता था।
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