चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़े विधेयक पर राज्यसभा में बवाल, चयन समिति से मुख्य न्यायाधीश को किया गया बाहर
कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में समूचे विपक्ष ने वेल में आकर जमकर हंगामा किया। आखिरकार स्थिति बिगड़ते देख सदन में मार्शलों को बुलाया गया। जिन्होंने आसन की तरह बढ़ रहे विपक्षी सांसदों को आगे बढ़ने से रोका। हालांकि भारी हंगामे व शोर - शराबे के बीच केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को सदन में पेश कर दिया।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति व सेवा संबंधी विधेयक को गुरुवार को विपक्ष के भारी हंगामे के बीच राज्यसभा में पेश किया। इसके तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब तीन सदस्यीय समिति करेंगी। जिसके प्रधानमंत्री अध्यक्ष होंगे जबकि लोकसभा में विपक्ष के नेता व पीएम द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री इसके सदस्य होंगे।
राज्यसभा में जमकर हुआ हंगामा
हालांकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर जो व्यवस्था दी थी, उसके तहत समिति में पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता के साथ मुख्य न्यायाधीश को रखा गया है। साथ ही कहा था कि जब तक केंद्र सरकार इस पर कानून नहीं बनाती है, तब तक यह व्यवस्था लागू रहेगी। इस बीच इस विधेयक को पेश किए जाने के दौरान राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ।
कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में समूचे विपक्ष ने वेल में आकर जमकर हंगामा किया। आखिरकार स्थिति बिगड़ते देख सदन में मार्शलों को बुलाया गया। जिन्होंने आसन की तरह बढ़ रहे विपक्षी सांसदों को आगे बढ़ने से रोका। हालांकि भारी हंगामे व शोर-शराबे के बीच केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को सदन में पेश कर दिया।
क्या कहना है विपक्षी दलों का ?
विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार इस विधेयक के जरिए चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने कहा इस कानून के बनने के बाद चुनाव आयोग जैसी संस्था निष्पक्ष नहीं रह पाएगा, क्योंकि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की फैसला इसके हाथ में होगा। कमेटी के तीन में से दो सदस्य तो सरकार के ही होंगे, ऐसे में बहुमत पर वह किसी को भी इस पदों पर नियुक्त कर सकेंगे।
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति
देश में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति व सेवा शर्तों को लेकर केंद्र सरकार इस विधेयक को लेकर तब आयी है, जब देश में अभी तक इसे लेकर कोई कानून नहीं था। सिर्फ एक व्यवस्था थी, जिसमें इन पदों के खाली होने पर एक सर्च कमेटी काम करती थी। जो देश के वरिष्ठ व सेवानिवृत्त नौकरशाहों के नाम को इसके लिए चयन करती थी। बाद में इन सभी नामों को पीएम के पास भेज दिया जाता था। जिसमें से किसी एक नाम को पीएम मेरिट के आधार पर राष्ट्रपति को भेज देते थे।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला
हालांकि इसी साल मार्च में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़े विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला देते हुए कहा था कि जब तक सरकार इसे लेकर कोई कानून नहीं बना देती है तब तक इसकी नियुक्ति तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी करेगी। जिसमें कोर्ट ने पीएम के साथ लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया था।
इस पूरी प्रकिया को सीबीआई निदेशक की नियुक्ति जैसी ही बनाने का सुझाव दिया था। सरकार ने इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्त की सेवा शर्तों में ही सुधार किया है। इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्त का वेतन अब कैबिनेट सचिव के स्तर का होगा।