कंक्रीट कानून के रूप में सामने आए यूसीसी, हर वर्ग के लोगों को मिले समानता
यह देश विविधता से भरा है। समान नागरिक संहिता पर पिछले कई दशक से चर्चा चल रही है। इस संबंध में सबको साथ लेकर ही एक मजबूत कानून बनाया जा सकता है। सभी पक्षों को इस पर एक मत होना चाहिए।
शाइस्ता अंबर। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि समान नागरिक संहिता की देश को जरूरत है। हालांकि यह राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। संविधान निर्माताओं ने सभी की आपसी सहमति से समान नागरिक कानून बनाने की बात कही थी। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी इस पर चर्चा चली थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला था। अब फिर यह मुद्दा चर्चा में है। यूसीसी से सभी समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने संबंधी कानूनों में एकरूपता आएगी।
हिंदू समाज ने समय-समय पर कई सुधार किए हैं और अन्य समाज को भी ऐसा करना चाहिए। मुस्लिम समुदाय में एक समय बिना दहेज शादी होती थी, लेकिन अब वहां भी यह कुरीति आ गई है। बेटी को माता-पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलना भी ऐसा ही मसला है। ऐसे बहुत से बिंदु हैं, जिन पर महिलाओं को उचित अधिकार मिलना चाहिए।
विधि आयोग के अनुसार, समाज में असमानता की स्थिति उत्पन्न करने वाली समस्त रूढ़ियों की समीक्षा की जानी चाहिए। इसलिए सभी निजी कानूनी प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करने की जरूरत है, जिससे उनसे संबंधित पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी तथ्य सामने आ सकें। वैश्विक स्तर पर प्रचलित मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से सर्वमान्य व्यक्तिगत कानूनों को वरीयता मिलनी चाहिए। हम चाहते हैं कि कोई कंक्रीट कानून बने, जिससे हर वर्ग के लोगों को समानता मिले। लैंगिक भेदभाव पूरी तरह खत्म हो। महिलाओं के लिए समान अधिकार बहुत जरूरी हैं। जिस तरह से मजहबी मान्यताओं के नाम पर उनके अधिकारों का हनन होता है, वह बहुत चिंताजनक है। महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के बिना कोई भी देश आगे बढ़ने के बारे में नहीं सोच सकता है।
इसी तरह लिंग भेद और जाति एवं संप्रदाय के आधार पर भेद किए बिना सबको समान अधिकार मिलना चाहिए। कानून सबके लिए एक जैसा हो और कानून के सामने सभी लोग बराबर हों, यही ध्येय होना चाहिए। साथ ही इस दिशा में कोई भी कदम उठाते समय देश की सामाजिक संरचना को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस दिशा में बढ़ते हुए हमेशा यह लक्ष्य होना चाहिए कि सभी वर्गो की आम सहमति बने।
यह देश विविधता से भरा है। किसी भी एक वर्ग को पीछे छोड़कर किसी भी सर्वमान्य कानून को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। समान नागरिक संहिता ऐसा ही मसला है। हर वर्ग को साथ लेकर चलना जरूरी है। हर मजहब और संप्रदाय के विचारकों एवं बुद्धिजीवियों को इस संबंध में समान राय बनाने का भी प्रयास करना चाहिए। सबको साथ लेकर ही ऐसा कंक्रीट कानून बनाना संभव होगा, जिसकी देश को जरूरत है। दशकों से चर्चा में चल रहे यूसीसी को लेकर किसी भी तरह की कमजोर कड़ी नहीं छोड़ी जा सकती है। हर कड़ी को जोड़कर ही एक मजबूत कानून को अंतिम रूप देना संभव हो सकता है। ऐसा करके ही हम अपने संविधान निर्माताओं की उम्मीदों पर खरा उतर सकते हैं।
[अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड]