भारत को पहले ही प्रयास में मंगल तक पहुंचाने वाले डॉ.के राधाकृष्णन का आज है जन्मदिन
भारत के लिए पहली ही बार में चंद्रयान-1 को मंगल तक पहुंचाने वाले वैज्ञानिक डॉ.के राधाकृष्णन का आज जन्मदिन है। उनके ही प्रयास से ये यान वहां तक पहुंचा था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। क्या आपको पता है कि भारत को पहले ही प्रयास में मंगल तक इसरो के किस वैज्ञानिक ने पहुंचाया था। यदि आपका उनका नाम नहीं जानते तो हम आपको उनका नाम और उनकी अन्य उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। इसरो के अधिकतर वैज्ञानिक उनको डॉ.के.राधाकृष्णन के नाम से जानते हैं, उनका पूरा नाम डॉ कोप्पिल्लील राधाकृष्णन है। उनका जन्म 29 अगस्त 1949 को हुआ था। वो एक प्रमुख एवं प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक हैं तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके मार्गदर्शन में इसरो ने मंगलयान को प्रथम प्रयास में ही मंगल तक पहुंचाने का करिश्मा कर दिखाया। डॉ॰ राधाकृष्णन ने 30 अक्टूबर को डॉ॰ जी माधवन नायर की सेवानिवृत्ति के पश्चात् उनका स्थान लिया था।
शिक्षा और व्यक्तित्व
डॉ॰ राधाकृष्णन ने केरल विश्वविद्यालय से 1970 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग किया है। इन्होंने इसरो में अपना कार्यकाल विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, तिरुवनंतपुरम में एवियॉनिक्स इंजीनियर के रूप में 1971 से शुरू किया। वे विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर रह चुके हैं। डॉ॰ राधाकृष्णन ने बतौर इसरो अध्यक्ष अपनी पहली प्राथमिकता साल के अंत में उड़ने वाले जीएसएलवी के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन को तैयार करना बताया था और अपने इस उद्देश्य में वे सफल भी रहे। वो एक टेक्नोक्रेट हैं। वो बहुत ही मिलनसार और अंतर्मुखी गुणों के साथ गतिशील और परिणाम उन्मुख प्रबंधक रहे।
केरल में जन्मे और चांद पर पहुंचाया चंद्रयान
डॉ. राधाकृष्णन का जन्म इरिंजालकुड़ा, केरल में 29 अगस्त, 1949 को हुआ था। उन्होंने केरल विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि (1970) प्राप्त की। भारतीय प्रबंधन संस्थान, बंगलौर (1976) से पीजीडीएम पूरा किया और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (2000 ) से "सम स्ट्रैटेजीस फार इंडियन अर्थ ऑबर्वेशन सिस्टम" शीर्षक शोधप्रबंध पर डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। वे भारतीय विज्ञान नेशनल एकेडमी (FNASc)और भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी (FNAE)के फैलो भी रहे। भारत इंजीनियर्स संस्था के मानद आजीवन फेलो रहे। विद्धुत और दूरसंचार इंजीनियर संस्था, भारत के मानद फेलो; और एस्ट्रोनॉटिक्स के इंटरनेशनल अकादमी के सदस्य हैं।
उड्डयानिकी इंजीनियर के रूप में अपने कैरियर शुरूआत
उन्होंने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में उड्डयानिकी इंजीनियर के रूप में अपने कैरियर शुरूआत की एवं अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रणाली, अंतरिक्ष अनुप्रयोगों और अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रबंधन के डोमेन में इसरो में कई निर्णायक पदों पर कार्य किया। वे इसरो के प्रक्षेपण वाहन प्रौद्योगिकी के शीर्ष केंद्र विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी, के निदेशक रहे।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में अपने संक्षिप्त कार्यकाल (2000-2005) में वे महासागर सूचना सेवा के लिए भारतीय राष्ट्रीय केंद्र (आईएनसीओआईएस) के संस्थापक निदेशक और भारतीय राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी प्रणाली के पहले परियोजना निदेशक रहे। वे अंतर- सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग के उपाध्यक्ष (2001-05), हिंद महासागर ग्लोबल महासागर अवलोकन प्रणाली के संस्थापक अध्यक्ष (2001-06) और सकल संयुक्त राष्ट्र के कार्य समूह के अध्यक्ष (2008-2009) सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। अक्टूबर 2009 से, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में डॉ. राधाकृष्णन के मजबूत नेतृत्व के साक्ष्य में इन पर ध्यान केंद्रित किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन को दुनिया के शीर्ष 10 वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया गया, इसकी सूची जर्नल 'नेचर'ने तैयार की है। ऐसा पहली बार हुआ है जब जर्नल नेचर ने भारत में काम कर रहे किसी भारतीय को इस सूची में जगह दी है।
इसरो मैन कहलना पसंद
डॉ. के. राधाकृष्ण्न को रोजेट्टा फ्लाइट ऑपरेशन, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के निदेशक एंड्रीया एकोमाजो के साथ शीर्ष 10 वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया गया है। 24 सितंबर 2014 को हुए सफल मंगल मिशन के तहत मंगल की कक्षा में पहले ही प्रयास में मंगलयान भेजने वाली एशियाई देशों में भारत की उपलब्धि पर डॉ. राधाकृष्णन का नाम इसके लिए चयनित किया गया है।
डॉ. राधाकृष्णन साल 2009 से इसरो के चेयरमैन हैं। राधाकृष्णन व्रिक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के भी निदेशक रह चुके हैं, उन्हें बेहतरीन लीडर माना जाता है। मार्स मिशन को सफल बनाने में योगदान अभूततपूर्व है. मार्स मिशन की सफलता के बाद जब राधाकृष्णन से पूछा गया कि क्या आप 'मार्स मैन' कहलाना पसंद करेंगे? तो उन्होंने कहा कि इस मिशन को सफल बनाने का श्रेय पूरे टीम को जाता है इसीलिए मैं 'इसरो मैन' कहलाना ही पसंद करुंगा।
सूची में शामिल अन्य वैज्ञानिक
'कैंसर ड्रग थेरेपी' के लिए सूजेन टोपालियन,
'रोबोटिक्स' में भारतीय मूल की राधिका नागपाल,
'इबोला वायरस के लिए जेनेटिक सिक्वेंसिंग' में सेख हुमार खान,
'अंतरिक्ष के गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन'के लिए डेविड स्पर्गल,
फील्ड मेडल जीतने वाली पहली महिला वैज्ञानिक मरियम मिर्जाखानी,
आईस बकेट चैलेंज की शुरुआत करने वाले पीट फ्रेट्स,
इंब्रोयोनिक सेल सिस्टम का अध्ययन करने वाले मजायो ताकाहासी
रेलियन सॉफ्टवेयर का आविष्कार करने वाले सोजोर्स स्कीर्स का नाम शामिल है।
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