छोटे किसानों को बचाना ब्रिक्स की बड़ी चुनौती
दुनिया में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, किसानों की आय को बढ़ाने, घटते प्राकृतिक संसाधनों और खाद्यान्न की बढ़ती मांग के बीच संतुलन बनाना गंभीर चुनौती है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। छोटी जोत वाले किसानों के हितों को बचाना ब्रिक्स देशों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव छोटे किसानों पर ही पड़ने वाला है, जिससे उत्पादकता घटेगी और उनकी आमदनी प्रभावित होगी। ब्रिक्स देशों ने इस पर चिंता जताते इस चुनौती से निपटने पर चर्चा की। ब्रिक्स देशों के संयुक्त घोषणा पत्र में इसे प्रमुखता से उठाया गया है। दुनिया में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, किसानों की आय को बढ़ाने, घटते प्राकृतिक संसाधनों और खाद्यान्न की बढ़ती मांग के बीच संतुलन बनाना गंभीर चुनौती है।
ब्रिक्स देशों ने इन सारे मुद्दों को समेटते हुए अपना संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी, विज्ञान और परंपरागत ज्ञान को आधार बनाने पर सहमति बनी है। सदस्य देशों के बीच इसे परस्पर आदान-प्रदान करने और सहयोग से कृषि क्षेत्र को न सिर्फ संरक्षित करने बल्कि उसे नई ऊंचाइयों तक ले जाने की मंशा जाहिर की गई। ब्रिक्स देशों के कृषि मंत्रियों के सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने समापन के मौके पर कहा कि हम अगले साल यानी 2017 में चीन में फिर मिलेंगे। उस समय अपने किये वायदों के लागू करने और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श करेंगे।
खाद्य सुरक्षा के साथ पौष्टिकता को प्राथमिकता देने पर भी सहमति बनी है। बदलती जीवन शैली और बदलते खान-पान को देखते हुए खाद्य उत्पादों के इस्तेमाल की पूरी श्रृंखला को बनाये रखना भी नई चुनौती है। इस पूरी श्रृंखला को आधुनिक बनाने में रोजगार सृजन के अवसर बनेंगे। खेती की पानी पर निर्भरता घटाने, सूखे के अनुकूल खेती और वर्षा जल संचयन को प्राथमिकता दी जाएगी।
कृषि उत्पादकता के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी आधारित तकनीक विकसित करने की बात कही गई है। गरीबी और भूख मिटाने के लिए खेती के मॉडल तैयार किया जाएगा। सम्मेलन में प्लांट फाइटोसैनेटरी जैसे मुद्दे अहम रहे। जैव विविधता को संरक्षित करने पर जोर दिया गया। कुल 18 सूत्री घोषणा पत्र में कृषि से जुड़े सभी मुद्दों को समेट लिया गया है।
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