इमरान के लिए नोबेल की मांग करने वाले पढ़ लें ये खबर, शांति दूत नहीं हैं वो; ये रहे सबूत
पाकिस्तान में इमरान खान को नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग हो रही है। यहां हम आपको सिलसिलेवार ढंग से बताएंगे कि क्यों इमरान खान को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन (Abhinandan) की सकुशल वतन वापसी हो गई है। गुलाम कश्मीर में उनका मिग-21 विमान 27 फरवरी की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसके बाद पाकिस्तान (Pakistan) ने अभिनंदन को 1 मार्च देर रात भारत आने दिया। यानि करीब तीन दिन तक पाकिस्तान ने अभिनंदन वर्तमान को अपने कब्जे में रखा और फिर दिनभर के ड्रामे के बाद रात करीब साढ़े 9 बजे उन्हें भारत को सौंपा। अब पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान के इस कथित 'पीस जेस्चर' के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग हो रही है। भारत में भी कुछ लोग हैं जो पाकिस्तान की इस फर्जी मुहिम का समर्थन कर रहे हैं। यहां हम आपको सिलसिलेवार ढंग से बताएंगे कि क्यों इमरान खान को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए।
पाकिस्तान का प्रोपगेंडा
इमरान खान को नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिलना चाहिए इस पर भी बात करेंगे। पहले जान लेते हैं, पाकिस्तान का वो प्रोपगेंडा... जिसके जरिए वह इमरान खान को शांति का दूत साबित करना चाहता है। दरअसल विंग कमांडर अभिनंदन को भारत भेजने के बाद पाकिस्तान इस मामले को भुनाने की कोशिश में जुटा है। पाकिस्तान में राजनीति से जुड़े कई लोग मांग कर रहे हैं कि विंग कमांडर अभिनंदन को भारत भेजकर दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए इमरान खान को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाए। इसके लिए पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में बकायदा एक प्रस्ताव भी पेश किया गया है। यही नहीं, इस संबंध में पाकिस्तान में ऑनलाइन याचिकाएं भी डाली जा रही हैं।
शांति दूत नहीं हैं इमरान खान
14 फरवरी तो अभी तक आप नहीं भूले होंगे। जब पूरी दुनिया प्यार का संदेश दे रही थी, वेलेंटाइन डे मना रही थी... ठीक उसी दिन आतंकियों ने CRPF के काफिले पर हमला किया। आतंकवादियों के इस कायरतापूर्ण हमले में हमारे 40 वीर सैनिक शहीद हो गए थे। अभी इस घटना को एक घंटा भी नहीं हुआ था और पाकिस्तान में मौजूद जैश-ए-मुहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ले डाली। पूरी दुनिया ने Pulwama Terror Attack की आलोचना की। पूरी दुनिया इस दुख की घड़ी में भारत के साथ खड़ी नजर आयी, लेकिन पाकिस्तान अपनी ढपली, अपना राग पर चला। इमरान खान कई दिन बाद सामने आए और उन्होंने पुलवामा आतंकी हमले में पाकिस्तान के हाथ से साफ इन्कार कर दिया, जबकि जैश ने इसकी जिम्मेदारी ली थी। अगर इमरान खान शांति दूत हैं तो फिर उन्हें जैश के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात करनी चाहिए थी।
सीजफायर का उल्लंघन क्यों?
अगर इमरान खान शांति दूत हैं तो फिर सीमा रेखा पर लगातार सीजफायर का उल्लंघन क्यों हो रहा है। क्यों पाकिस्तानी सैनिक अकारण बिना उकसावे की कार्रवाई करते हैं। क्यों पाकिस्तानी गोले जम्मू-कश्मीर में निर्दोष लोगों की जान ले रहे हैं। पिछले 8 दिन से हर दिन कई-कई बार पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर का उल्लंघन हो रहा है। शुक्रवार एक मार्च तक ही यानि सात दिन में 60 से ज्यादा बार पाकिस्तान की तरफ से युद्ध विराम का उल्लंघन हुआ है। 'शांति के दूत' इमरान खान, जिन्हें कुछ लोग नोबेल शांति पुरस्कार दिलाना चाहते हैं वे अपनी सेना को भारत में गोलाबारी करने से रोक भी नहीं रहे हैं। एक ऐसा शख्स जो अपनी सेना को निर्दोषों पर गोलाबारी करने से रोक भी नहीं पा रहा, उसे नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग करना ही बेमानी और हास्यास्पद बात है।
शांतिदूत ने सीमापार क्यों भेजे अपने वायुदूत
भारत ने 26 फरवरी को पाकिस्तान और गुलाम कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई की। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सेना या वहां के आम लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, पाकिस्तान भी यही दावा कर रहा है कि भारत के 1000 किलो बम खाली खेतों में गिरे थे। पाकिस्तानी मीडिया चैनलों के अनुसार वहां आतंकी कैंप थे ही नहीं और सिर्फ एक कौवे की मौत हुई है। अगर पाकिस्तानी मीडिया की इस रिपोर्ट में जरा सी भी सच्चाई है तो फिर कथित 'शांति दूत' इमरान खान ने 27 फरवरी को क्यों भारतीय सीमा में अपने लड़ाकू विमान भेजे? क्यों उनके लड़ाकू विमान भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाना चाहते थे? वो तो भला हो भारतीय वायुसेना का जिन्होंने पाकिस्तानी F16 विमानों को खदेड़ दिया और एक को मार भी गिराया।
सेना नहीं सुनती इमरान की
इमरान खान नेशनल असेंबली में शांति की बात करते हैं, टीवी चैनल पर शांति की बात करते हैं, लेकिन उनकी सेना सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन करती है। उनकी वायुसेना के विमान भारत में घुसपैठ करते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इमरान खान सच में शांति चाहते हैं, लेकिन सेना उनकी नहीं सुन रही है। अगर ऐसा है तो भी इतने कमजोर प्रधानमंत्री को तो बिल्कुल शांति पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए, जो अपनी सेना को ऑर्डर भी नहीं दे सकता। सेना तो सेना, उनकी अपनी धरती पर पल रहे आतंकवादी भी उनकी नहीं सुनते। अगर ऐसी कमजोर शख्सियत के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग हो रही है तो यह इन प्रतिष्ठित पुरस्कारों की भी तौहीन होगी।