कोलेजियम नहीं, न्यायपालिका से जुड़े मुद्दे चिंता का विषय : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में न्यायिक अधिकारियों के पांच हजार से अधिक पद रिक्त हैं और विधायिका एक के बाद दूसरा नया कानून बना रही है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करने वाली कोलेजियम की कार्यशैली नहीं बल्कि निचली अदालतों में बड़ी संख्या में न्यायिक अधिकारियों के पदों की रिक्तियां और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे मुद्दे न्यायपालिका के लिए चिंता का विषय है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने देश में बच्चों से दुष्कर्म मामलों की संख्या में तेजी से हुई वृद्धि से संबंधित मामले पर विचार के दौरान अपनी नाराजगी जताई और कहा कि राष्ट्रीय राजधानी से दूर के स्थानों पर न्यायिक अधिकारियों को बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में काम करना पड़ता है।
पीठ ने सवाल किया, 'त्रिपुरा, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में वास्तविकता क्या है? मध्य प्रदेश जैसे राज्य अभी भी आरोपी और पीडि़त के बीच कोर्ट में एक पर्दा डालकर काम करने में यकीन करते हैं।' पीठ ने कहा कि दिल्ली में साकेत की जिला कोर्ट जैसे कोर्ट कक्षों की तुलना देश के दूसरे हिस्सों के कोर्ट कक्षों से नहीं की जा सकती।
इसे भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गैर-समझौतावादी अपराधों में सुलह को रिकॉर्ड में लेने की अनुमति नहीं दी सकती
पीठ ने कहा, 'साकेत की अदालत में आपके पास गवाह के लिए कक्ष हो सकता है लेकिन हम उन राज्यों की बात कर रहे हैं जहां ये सुविधाएं नहीं हैं। हमारे यहां ऐसे स्थान भी हैं जहां मजिस्ट्रेट चार फुट के कमरे में बैठते हैं। हमने यह देखा है और अदालतों की यही हकीकत है।'
शीर्ष अदालत ने कहा कि देश में न्यायिक अधिकारियों के पांच हजार से अधिक पद रिक्त हैं और विधायिका एक के बाद दूसरा नया कानून बना रही है। न्यायाधीश पर मुकदमो का बोझ बढ़ रहा है और तमाम कानूनों में प्रावधान किया जाता है कि इससे संबंधित मामलों में छह महीने या एक साल के भीतर निर्णय हो।
पीठ ने कहा, 'कोई भी न्यायिक सुविधाओं और संरचनाओं पर ध्यान नहीं दे रहा है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो न्यायपालिका के लिए अधिक चिंताजनक हैं न कि कोलेजियम।'