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प्रमोशन में 'क्रीमी लेयर' पर अंतरिम आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि 2006 के नागराज मामले पर पुनर्विचार का मुद्दा सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपने की जरूरत है।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 07:04 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 07:04 PM (IST)
प्रमोशन में 'क्रीमी लेयर' पर अंतरिम आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी वर्ग के सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के प्रमोशन में 'क्रीमी लेयर' का फॉर्मूला लागू किया जाए या नहीं, इसे लेकर कोई अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि 2006 के नागराज मामले पर पुनर्विचार का मुद्दा सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपने की जरूरत है।

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चीफ जस्टिस मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि एक संविधान पीठ के पास पहले से कई मामले हैं, ऐसे में वह अगस्त के पहले हफ्ते में ही सुनवाई कर सकती है। गत वर्ष 15 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ आरक्षण से जुड़े इस सीमित मुद्दे कि क्या 2006 के एम. नागराज व अन्य बनाम केंद्र सरकार के केस में सुनाए गए फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है?

त्वरित सुनवाई हो : अटॉर्नी जनरल
केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि मामले की सात सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा त्वरित सुनवाई होना चाहिए क्योंकि इस बारे में विभिन्न अदालती फैसलों के कारण असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है और रेलवे व अन्य सेवाओं में लाखों नौकरियां अटक गई हैं।

क्या है नागराज मामला
साल 2006 में नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने फैसला दिया था। इस फैसले में कहा गया था कि एससी/एसटी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण में क्रीमी लेयर का फॉर्मूला लागू नहीं किया जा सकता। 1992 के इंदिरा साहनी (मंडल आयोग) केस और 2005 के ईवी चिनैया मामले में ओबीसी में 'क्रीमी लेयर' का मामला नागराज के केस में लागू नहीं होने का साफ आदेश दिया था।

जून में दिया आरक्षण जारी रखने का आदेश
मालूम हो कि इसी साल 5 जून को शीर्ष कोर्ट ने केंद्र को बड़ी राहत देते हुए अजा-जजा श्रेणी के कर्मचारियों को प्रमोशन में नियमानुसार आरक्षण जारी रखने की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश केंद्र की इस दलील पर दिया था कि विभिन्न हाई कोर्टों के आदेशों व 2015 के ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'यथास्थिति' के आदेश से प्रमोशन प्रक्रिया ठप पड़ गई है।


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