सरकारी अधिकारी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर लगेगा प्रतिबंध? SC में फैसला सुरक्षित
सरकारी अधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने टॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अन्य पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनीं।
नई दिल्ली, एजेंसी। सरकारी अधिकारी के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध की मांग को लेकर दायर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस एसए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अन्य पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनीं। पीठ में जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और बी वी नागरत्ना भी शामिल थे।
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने पूछा, 'हम विधायकों के लिए आचार संहिता कैसे बना सकते हैं? हम विधायिका और कार्यपालिका की शक्तियों पर क्या अतिक्रमण करेंगे।' वहीं, अटॉर्नी जनरल ने बेंच को बताया कि मौलिक अधिकार में प्रतिबंधों में कोई भी जोड़ या संशोधन संवैधानिक सिद्धांत के मामले में संसद से आना चाहिए।
मेहता ने कहा कि ये मुद्दा एक एकेडमिक पश्न से ज्यादा है। क्या किसी विशेष बयान के खिलाफ कार्रवाई के लिए अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए रिट दायर की जा सकती है।
संविधान पीठ के पास भेजा गया था मामला
गौरतलब है कि तीन जजों की बेंच ने पांच अक्टूबर को 2017 को इस मामले को विभिन्न मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए संविधान पीठ के पास भेजा था। इसमें ये भी शामिल था कि क्या कोई सरकारी अधिकारी या मंत्री संवेदनशील मामलों पर विचार व्यक्त करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा कर सकता है। याचिका में तर्क दिया गया था कि कोई मंत्री व्यक्तिगत विचार नहीं रख सकता और उसका बयान सरकार की नीति के साथ होना चाहिए।
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