Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Supreme Court: प्रिंस ऑफ आर्कोट के खिताब और प्रिवी पर्स पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, वकील विष्णु शंकर जैन ने रखी दलीलें

    By Jagran News Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Sat, 06 Jan 2024 06:47 AM (IST)

    खिताब और प्रिवी पर्स (राजाओं की दी जाने वाली पेंशन) समाप्त होने के बावजूद प्रिंस आफ आर्कोट का वंशानुगत पद जारी रखने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस याचिका पर केंद्र और तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। तमिलनाडु चेन्नई के रहने वाले एस. कुमारवेलु ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है।

    Hero Image
    प्रिंस ऑफ आर्कोट के खिताब और प्रिवी पर्स पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। खिताब और प्रिवी पर्स (राजाओं की दी जाने वाली पेंशन) समाप्त होने के बावजूद प्रिंस आफ आर्कोट का वंशानुगत पद जारी रखने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस याचिका पर केंद्र और तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वकील विष्णु शंकर जैन ने रखी दलीलें

    तमिलनाडु चेन्नई के रहने वाले एस. कुमारवेलु ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है। हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद एस. कुमारवेलु ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। शुक्रवार को मामला न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और अरविंद कुमार की पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा था।

    कोर्ट ने वकील विष्णु शंकर जैन की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया है कि इस मामले में महत्वपूर्ण कानून का मुद्दा शामिल है। कानूनी सवाल यह है कि क्या भारत का संविधान लागू होने के बाद भी ब्रिटिश सरकार द्वारा लेटर पेटेंट के जरिये कुछ लोगों को दिया गया विशेष दर्जा या खिताब जारी रखा जा सकता है। क्या विशेष दर्जा और वंशानुगत पद जारी रखने की संविधान के तीसरे भाग में इजाजत है।

    संविधान के ये अनुच्छेद सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देते हैं

    क्या प्रिंस ऑफ आर्कोट का वंशानुगत टाइटिल जारी रखना और वित्तीय अनुदान (राजाओं को दी जाने वाली पेंशन) जारी रखने की संविधान के अनुच्छेद 14,15 व 16 में इजाजत है। मालूम हो कि संविधान के ये अनुच्छेद सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देते हैं।

    याचिका में यह भी कानूनी सवाल उठाया गया है कि आखिरी पुरुष उत्तराधिकारी की मृत्यु के बाद भी क्या भारत सरकार संविधान के अनुच्छेद 18 का उल्लंघन करके प्रिंस ऑफ आर्कोट का टाइटिल दे सकती है। दाखिल याचिका में कहा गया है कि प्रिंस आफ आर्कोट का वंशानुगत पद जारी रखना संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 का उल्लंघन है। कहा गया कि 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होने के बाद से वंशानुगत पद या टाइटिल अथवा इस तरह के खिताब समाप्त हो चुके हैं और इन्हें जारी नहीं रखा जा सकता।

    कहा गया, भारत सरकार ने लेटर पेटेंट की गलत व्याख्या समझी है

    याचिकाकर्ता का कहना है कि ब्रिटिश सरकार लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए उन्हें या उनके परिवार व सदस्यों को विशेष दर्जा, ग्रांट और टाइटल देती थी। कहा गया है कि भारत सरकार ने लेटर पेटेंट की गलत व्याख्या समझी है और प्रिंस आफ आर्कोट का वंशानुगत पद और वित्तीय अनुदान (प्रिवी पर्स) जारी रखा है। जबकि लेटर पेटेंट के मुताबिक ये सिर्फ उस व्यक्ति के जीवत रहने तक जारी रह सकता है जिसका कि उसमें जिक्र है और आखिरी क्लेमेंट की मृत्यु के बाद लेटर पेटेंट की शर्तें समाप्त हो जाती हैं।

    याचिका में और भी बहुत सी दलीलें देते हुए प्रिंस आफ आर्कोट के वंशानुगत पद को जारी रखने और प्रिवी पर्स जारी रखने को चुनौती दी गई है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा प्रिंस आफ आर्कोट का नाम अल-हज नवाब गुलाम मोहम्मद अब्दुल अली खान बहादुर (9 अगस्त, 1951 को जन्मे) को जुलाई, 1993 से यह खिताब हासिल है। उन्हें सालाना 1.50 लाख रुपये की राजनीतिक पेंशन मिलती है।

    comedy show banner
    comedy show banner