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बिल्डरों को साइट पर ही सार्वजनिक करनी होगी प्रोजेक्ट मंजूरियां

कोर्ट ने कहा है कि ऐसा करना रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलेपमेंट) एक्ट 2016 (रेरा) में बताए गए अन्य तरीकों के अलावा होगा।

By Vikas JangraEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 11:50 PM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 11:50 PM (IST)
बिल्डरों को साइट पर ही सार्वजनिक करनी होगी प्रोजेक्ट मंजूरियां

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डरों द्वारा नियम कानूनों के खुलेआम उल्लंघन और उसके परिणामों को देखते हुए आदेश दिया है कि बिल्डर प्रोजेक्ट स्थल पर ही परियोजना को मिली मंजूरियां प्रदर्शित करेंगे। कोर्ट ने कहा है कि ऐसा करना रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलेपमेंट) एक्ट 2016 (रेरा) में बताए गए अन्य तरीकों के अलावा होगा।

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ये आदेश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने पिछले सप्ताह मुंबई के एक मामले में परियोजना से संबंधित सूचनाएं मांगने के मामले में फैसला सुनाते हुए दिये। कोर्ट ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना के व्यापारिक हित प्रभावित होने या मुकदमें का मसला होने की दलीलों पर विचार करने के बाद सूचना देने का विरोध कर रहे फेरानी होटल्स प्राइवेट लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी।

हालांकि, उस मामले के तथ्य थोड़े अलग थे लेकिन कोर्ट ने रेरा के तहत परियोजनाओं से जुड़ी मंजूरियों को सार्वजनिक करने के रेरा के प्रावधानों को उद्धत करते हुए यह कहा। आवंटियों को सक्षम अथारिटी द्वारा मंजूर किया गया परियोजना का प्लान, लेआउट प्लान, और सारा ब्योरा प्रोजेक्ट स्थल (साइट) पर प्रदर्शित कर बताएँगे या फिर अथारिटी द्वारा बनाए गए नियमों के तहत जहां बताया जाएगा वहां प्रदर्शित करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य ज्यादा पारदर्शिता लाना है। कोर्ट ने कहा कि जमीनी हकीकत को ध्यान मे रखते हुए ये निर्देश देने जरूरी हो जाते हैं कि बिल्डर परियोजना स्थल पर ही मंजूर प्लान प्रदर्शित करेगा। कोर्ट ने कहा कि इस बात का उचित प्रचार किया जाए। इसे रेरा प्रावधान लागू करने का हिस्सा मानते हुए प्रचार किया जाए।

ये मामला मुंबई में मलाड के तीन भूखंडों के डेवलेपमेंट से जुड़ा फेरानी होटल्स प्राइवेट लिमिटेड और नस्लेवाडिया के बीच चल रहे विवाद से संबंधित है। जिसमें में नुस्ले वाडिया और फेरानी होटल्स के बीच तीन भूखंडों को विकसित करने का 1995 में करार हुआ था। बाद मे 2008 में दोनों के बीच विवाद हो गया।

नस्ले वाडिया ने कानूनन करार तोड़ने को सही ठहराए जाने का मुकदमा भी दाखिल कर दिया। ये मुकदमा लंबित था कि तभी सूचना के अधिकार के तहत याचिका दाखिल कर भूखंड को विकसित करने के बारे मे मंजूर प्लान आदि का ब्योरा मांगा गया था।

बाम्बे हाईकोर्ट ने सूचना देने का आदेश दे दिया था जिसके खिलाफ फेरानी होटल्स सुप्रीम कोर्ट आया था। फेरानी का कहना था कि सूचना को व्यापक जनहित मे नहीं देखा जाएगा ये सूचना निजी लाभ के लिए मांगी गई है और इससे उसके व्यापारिक हित प्रभावित होंगे। कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत जिस प्लान को सार्वजनिक करना जरूरी है उसे व्यापारिक हितों से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने फेरानी की अपील ढाई लाख कास्ट के साथ खारिज कर दी। 


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