Move to Jagran APP

भारत में बढ़ रही सुसाइड की घटनाएं, जानिए- लोग क्‍यों होते हैं आत्महत्या करने को मजबूर

आत्महत्या को रोकना सरकार का काम नहीं है। यह जिम्मेदारी तो परिवारजनों मित्रों और समाज की अधिक बनती है। यदि मन में आत्महत्या का ख्याल आ रहा है तो किसी अपने और भरोसेमंद व्यक्ति के साथ बैठकर अपने मन की सभी बातें बोल दें।

By TilakrajEdited By: Published: Thu, 01 Sep 2022 03:15 PM (IST)Updated: Thu, 01 Sep 2022 03:15 PM (IST)
आत्महत्या का विचार आना एक सामान्य समस्या है

नई दिल्‍ली, नृपेंद्र अभिषेक नृप। आज से कुछ ही दिनों बाद 10 सितंबर को वर्ल्‍ड सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाएगा, जिसका उद्देश्य आत्महत्या को रोकना है, लेकिन हाल में जारी आंकड़ों में आत्महत्या की दर में तीव्र वृद्धि देखी गई है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में 2020 में आत्महत्या के कुल 1,53,052 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में सात प्रतिशत अधिक कुल 1,64,033 मामले दर्ज किए गए थे। महाराष्ट्र में आत्महत्या के सर्वाधिक मामले दर्ज हैं। तमिलनाडु और मध्य प्रदेश दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे हैं।

loksabha election banner

आत्महत्या का विचार आना एक सामान्य समस्या है और ज्यादातर लोग इसे तब महसूस करते हैं, जब वे किसी तनाव या डिप्रेशन से गुजर रहे होते हैं। समाज की अलग-अलग संस्कृतियों और तबकों में आत्महत्या की वजहें अलग-अलग हैं, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आत्महत्या, मृत्यु का सबसे निरोध्य कारण है। यानी इसे रोका जा सकता है। आत्महत्या की कोशिशें अक्सर मदद की एक पुकार ही होती हैं और अब तो तेजी से एक मनोवैज्ञानिक इमरजेंसी के तौर पर देखी जा रही हैं। आत्महत्या को रोकने की जिम्मेदारी हम सब की है।

आत्महत्या को रोकना सरकार का काम नहीं है और सरकार यह काम कर भी नहीं सकती। यह जिम्मेदारी परिवार तथा समाज की है। सबसे ज्यादा जिम्मेदारी तो परिवार की ही है। अकेलापन, शिक्षा तथा करियर में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा, प्रेम में विफलता, बीमारियां, उम्मीदों के मुताबिक नतीजे न मिलना, घर का नकारात्मक माहौल, गरीबी, कर्ज का बोझ जैसे कई कारण हैं जो लोगों को अवसाद में ले जाते हैं। अवसाद के लक्षण बहुत साफ नजर आ जाते हैं। अवसाद में जाने के बाद संबंधित व्यक्ति के हाव-भाव, बोलचाल, उसका व्यवहार बदल जाता है। ये परिवर्तन स्पष्ट दिखते हैं, लेकिन परिवार तथा आसपास के लोग पीड़ित की बीमारी समझ नहीं पाते।

यदि मन में आत्महत्या का ख्याल आ रहा है तो किसी अपने और भरोसेमंद व्यक्ति के साथ बैठकर अपने मन की सभी बातें बोल दें। जी भर कर रोएं, ऐसा करने से आत्महत्या का सोच दिल से कम हो जाता है। यदि आप आशाहीन महसूस कर रहे हैं या ऐसा महसूस कर रहे हैं कि आप अब और जीने के लायक नहीं हैं। तो ऐसे में याद रखें कि उपचार की मदद से आप फिर से अपने जीवन के दृष्टिकोण को प्राप्त कर सकते हैं और जीवन को बेहतर बना सकते हैं। जिंदगी ख़ुद को सुधारने का एक मौका हर किसी को जरूर देती है, लेकिन सुसाइड तो जिंदगी ही छीन लेती है।

जरूरत है कि जिंदगी के महत्व को समझें और समझ कर ऐसे कुविचारों से बचें, क्योंकि इससे समस्या का समाधान नहीं होता है, उल्‍टे आपके चहेतों को जख्म देकर चला जाता है। जीवन को गंवाएं नहीं, बल्कि बचाएं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.