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Budget 2023: पहले कभी नहीं चली सब्सिडी पर ऐसी कैंची; खाद्य, उर्वरक और ऊर्जा पर एकमुश्त 28.2 फीसद की कटौती

Budget 2023 वर्ष 2023-24 के बजट में सरकार का कुल सब्सिडी बिल 3.74 लाख करोड़ रुपये का रहा है जो वर्ष 2022-23 के संभावित सब्सिडी बिल 5.22 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 28 फीसद कम है। File Photo

By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyPublished: Thu, 02 Feb 2023 08:29 PM (IST)Updated: Thu, 02 Feb 2023 08:29 PM (IST)
खाद्य, उर्वरक और ऊर्जा पर एकमुश्त 28.2 फीसद की कटौती

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खाद्य, उर्वरक और ऊर्जा सब्सिडी पर जिस तरह की कैंची चलाई है, वैसा उदाहरण कम से कम पिछले पांच वर्षों में देखने को नहीं मिला है। वर्ष 2023-24 के बजट में सरकार का कुल सब्सिडी बिल 3.74 लाख करोड़ रुपये का रहा है जो वर्ष 2022-23 के संभावित सब्सिडी बिल 5.22 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 28 फीसद कम है।

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सब्सिडी बिल में हुई यह कमी निश्चित तौर पर सरकार के वित्तीय प्रबंधन का एक बड़ा हथियार है जिसके जरिए वह राजकोषीय घाटे को 5.9 फीसद पर रखने की मंशा रखती है। अच्छी बात यह है कि इस कटौती का असर आम जनता पर नहीं पड़ेगा। उन्हें सस्ती दर पर खाद्यान्न और किसानों को उर्वरक उपलब्धता में कोई समस्या नहीं होने जा रही।

जानकारों का कहना है कि सरकार ने वैश्विक माहौल और देश के खाद्यान्न स्टाक को देख कर ही सब्सिडी में कटौती करने का फैसला किया है। आम जनता को इस कटौती का परोक्ष तौर पर भी फायदा यह होगा कि राजकोषीय घाटे के कम होने से समग्र तौर पर महंगाई को थामने में भी मदद मिलती है। एसबीआइ की विशेष रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले चार वर्षों में ऊर्जा, खाद्य व उर्वरक सब्सिडी में सालाना औसतन 13.7 फीसद की वृद्धि की गई है जबकि अब पहली बार एकमुश्त 28.2 फीसद की कटौती की जा रही है।

पिछले चार वर्षों में सिर्फ पेट्रोलियम सब्सिडी में ही औसतन 38.1 फीसद की कटौती की गई है जबकि अन्य सभी उर्वरक सब्सिडी में औसतन 19.9 फीसद और खाद्य सब्सिडी में 14.3 फीसद की वृद्धि की गई है। अगर मोदी सरकार के पहले वर्ष यानी वर्ष 2014 से तुलना करें तो वर्ष 2023-24 के लिए वित्त मंत्री ने सब्सिडी की जो राश आवंटित की है वह सिर्फ चार फीसद ज्यादा है।

इस तरह से सब्सिडी आवंटन के मामले में सरकार ने घड़ी की सूइयों को पीछे की तरफ ले जाने का माद्दा दिखाया है। लेकिन तब जीडीपी (इकोनोमी) का आकार काफी कम था। वर्ष 2021 की ही बात करें तो जीडीपी के मुकाबले कुल सब्सिडी का आकार 3.6 फीसद थी जो वर्ष 2024 में घट कर 1.2 फीसद रह जाएगी।

इकरा रेटिंग एजेंसी की प्रमुख अर्थशास्त्री अदिती नायर का कहना है कि सब्सिडी में कटौती का अनुमान था और सरकार ने उसी के हिसाब से कदम उठाये हैं। वजह यह है कि अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी जींसों की कीमतें कम हुई हैं और हाल ही में पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को राष्ट्रीय खाद्य कानून में मिला दिया गया है। इससे सब्सिडी बिल को घटाने में मदद मिली है।

बजट के आंकड़ों को देखें तो उक्त दोनों मदों में कुल खाद्य सब्सिडी बिल वर्ष 2022-23 में 2.87 लाख करोड़ रुपये की रही थी जो वर्ष 2023-24 में घट कर 1.97 लाख करोड़ रुपये हो गया है। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि सब्सिडी में कटौती बाहरी माहौल को देख कर दिया गया है और इसे वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को अगर घटा कर 4.5 फीसद या इससे नीचे लाना है तो सब्सिडी के स्तर को नीचे ही रखना होगा।

ऐसे में सवाल यह है कि क्या सब्सिडी बिल में कमी से आम जनता को खाने पीने की चीजें या किसानों को उर्वरक महंगा मिलेगा? इसका जवाब फिलहाल नहीं में है। सरकार पहले ही ऐलान कर चुकी है कि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश के 80 करोड़ जनता को निर्धारित मात्रा में अनाज (कम से कम सात किलो हर महीने) मुफ्त में मिलता रहेगा। दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक की कीमतें काफी कम हो गई है। भारत अपनी जरूरत का अधिकांश उर्वरक बाहर से खरीदता है।

ऐसे में आयातित लागत कम होने की संभावना है। लिहाजा उर्वरक सब्सिडी कम होने से भी किसानों को कीमत का कोई बोझ नहीं उठाना पड़ेगा। जहां तक ऊर्जा सब्सिडी की बात है तो गैस, पेट्रोल, डीजल की कीमतें बाजार के हवाले हो चुकी हैं। आगामी वित्त वर्ष के लिए सिर्फ इस मद में सब्सिडी की राशि 2,257 करोड़ रुपये रखी गई है।

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