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नेता विपक्ष पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस

सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच तकरार का मुख्य मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। नेता विपक्ष के प्रावधान के मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को वैधानिक संस्थाओं में चयन के लिए जरूरी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के प्रावधान की व्याख्या करने का निर्णय लिया।

By Edited By: Published: Fri, 22 Aug 2014 12:20 PM (IST)Updated: Fri, 22 Aug 2014 07:33 PM (IST)
नेता विपक्ष पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस

नई दिल्ली। सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच तकरार का मुख्य मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। नेता विपक्ष के प्रावधान के मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को वैधानिक संस्थाओं में चयन के लिए जरूरी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के प्रावधान की व्याख्या करने का निर्णय लिया। खासकर जब लोकसभा में कोई भी मान्य नेता प्रतिपक्ष नहीं है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को दो हफ्ते में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। नौ सितंबर को इस पर फिर सुनवाई होगी।

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'कॉमन कॉज' नामक स्वयंसेवी संस्था की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पद के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि नेता प्रतिपक्ष सरकार से अलग राय रखने वालों की आवाज का सदन में प्रतिनिधित्व करता है।

लोकपाल कानून के तहत नेता प्रतिपक्ष एक बहुत महत्वपूर्ण अंग है। इस मुद्दे पर मौजूदा राजनीतिक स्थिति जिसमें संख्या बल के अभाव में लोकसभा में कोई प्रतिपक्ष का नेता नहीं है, इसके उद्देश्य के मुद्दे पर विचार करने की जरूरत है।

मजेदार बात यह है कि यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में ऐसे समय में उठा है जब कांग्रेस पार्टी के नेता को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता देने से इन्कार कर दिया गया है। शीर्ष अदालत लोकपाल कानून के उन प्रावधानों की जांच कर रही है जिसमें कहा गया है कि लोकपाल के चयन समिति में लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष भी शामिल रहना चाहिए। पीठ ने पाया कि इस काननू को नेता प्रतिपक्ष के अभाव में ठंडे बस्ते में नहीं रखा जा सकता और इस मुद्दे की कुछ व्याख्या जरूरी है।

इससे पहले अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि यदि कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं रहेगा तो चयन समिति में यह पद खाली रहेगा। इससे कोर्ट सहमत नहीं हुआ। इसके बाद रोहतगी ने सरकार का पक्ष रखने के लिए चार हफ्ते का समय मांगा लेकिन कोर्ट ने इस जरूरी बताते हुए दो हफ्ते का समय दिया।

इससे सवाल यह उठा है कि क्या लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को लोकपाल कानून के लिए नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जा सकता है? इससे पहले सुप्रीमकोर्ट इसी माह कांग्रेस पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष पद देने की मांग से जुड़ी एक जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर चुका है कि लोकसभा अध्यक्ष द्वारा लिया गया फैसला न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है।

याचिका दायर करने वाली स्वयंसेवी संस्था ने लोकपाल के अध्यक्ष और इसके सदस्यों के चयन की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए चयन पर रोक लगाने की मांग की है। इस पर शीर्ष अदालत ने 31 मार्च को केंद्र से जवाब मांगा था। कोर्ट ने लोकपाल नियमावली, 2014 के तहत सर्च कमेटी के गठन, सदस्यों के चयन की सेवा शर्तो और जिस तरह लोकपाल के अध्यक्ष और उसके सदस्यों की नियुक्ति करने वाली समिति का गठन होगा उसे उचित ठहराने को कहा था।

कॉमन कॉज ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से कोर्ट से लोकपाल काननू के उन नियमों को अवैध घोषित करने की मांग की थी जिनके तहत चयन की प्रक्रिया जारी है।

पढ़ें : लोकसभा में नहीं होगा नेता प्रतिपक्ष, स्पीकर ने दिया नियमों का हवाला


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