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India China Tension: चीन को पहला बड़ा झटका, रेलवे ने रद किया 471 करोड़ का ठेका

भारतीय रेलवे ने चीनी फर्म बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिज़ाइन इंस्टीट्यूट ऑफ सिग्नल एंड कम्युनिकेशन कंपनी लिमिटेड के साथ चल रहे कॉन्ट्रैक्ट को रद कर दिया है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 04:37 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jun 2020 07:23 PM (IST)
India China Tension: चीन को पहला बड़ा झटका, रेलवे ने रद किया 471 करोड़ का ठेका

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय रेलवे ने एक बड़ा फैसला लेते हुए ईस्टर्न फ्रेट कारिडोर प्रोजेक्ट से चीन की कंपनी का ठेका रद्द करने का फैसला किया है। रेलवे के इस फैसले को भारत और चीन के बीच बढ़ी तनातनी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। चीनी कंपनी के ढीले रवैए और खराब प्रदर्शन को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। चीन की बिजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट आफ सिगनलिंग एंड कम्यूनिकेशन ग्रुप कंपनी रेलवे के ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर प्रोजेक्ट में कानपुर से दीन दयाल नगर (मुगलसराय) के बीच 417 किमी की दूरी में सिगनल बिछाने का काम कर रही थी।

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लद्दाख में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारत-चीन के बीच हुए खूनी संघर्ष के बाद पैदा हुए हालात में भारतीय रेलवे का यह फैसला काफी अहम माना जा रहा है। हालांकि रेलवे ने चीनी कंपनी के खराब प्रदर्शन को लेकर उसे पहले से ही लगातार चेतावनी देती रही है। इसीलिए भारतीय रेलवे ने चीनी कंपनी के खराब प्रदर्शन और धीमी प्रगति के खिलाफ कार्रवाई के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए से विश्व बैंक को अवगत करा दिया। उसने यह पत्र 20 अप्रैल 2020 को ही विश्व बैंक को भेज दिया था। ईस्टर्न फ्रेट कारिडोर प्रोजेक्ट में विश्व बैंक का पैसा लगा है। चीन की बिजिंग रेलवे रिसर्च एंड सिग्नल कम्यूनिकेशन कंपनी को 417 किमी लंबाई में सिग्नलिंग और कम्यूनिकेशन लाइन बिछाने के लिए 471 करोड़ का ठेका जून 2016 में दिया गया था।

चार साल बाद भी चीनी कंपनी ने मात्र 20 फीसद कार्य ही पूरा किया है। मौका मुआयना के दौरान कंपनी के जिम्मेदार अधिकारी और इंजीनियर तक नहीं मिलते थे, जिससे काम ठप हो गया था। फ्रेट कारिडोर प्रोजेक्ट के लोगों का कहना है कि मांगने पर भी कंपनी की ओर से तकनीकी और इलेक्ट्रानिक इंटरलॉकिंग डाक्यूमेंट तक उपलब्ध नहीं कराये गये। वास्तविक तौर से लाइन पर न कोई काम हो रहा था और न ही स्थानीय एजेंसी से कोई संपर्क। बैठकों में तय किये गये कार्यो पर कभी अमल नहीं किया गया।

चीनी कंपनी के इस ढीले ढाले और लापरवाहीपूर्ण रवैए पर विश्व बैंक के साथ कई मर्तबा बैठकें की गई, लेकिन वहां से कोई स्पष्ट रुख नहीं दिखाया गया। चीन की कंपनी के साथ अनुबंध खत्म न होने की वजह से कानपुर और दीनदयाल उपाध्याय नगर के बीच का सारा काम लंबित हो गया। इसी के मद्देनजर डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर कारपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए चीन की कंपनी के साथ करार को समाप्त करने का फैसला लिया है। इसकी जानकारी विश्व बैंक को देते हुए उससे अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) की अपेक्षा की गई है। लेकिन विश्व बैंक से एनओसी ने नहीं प्राप्त हुई तो यह करार 30 जून 2020 को खत्म हो जाएगा।

बता दें कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक संघर्ष के बाद देश में चीनी उत्‍पादों के बहिष्‍कार की मांग जोर पकड़ती जा रही है। लद्दाख संघर्ष में भारत के 20 सैनिकों को जान गंवानी पड़ी थी, दूसरी ओर खबरों के मुताबिक चीन के भी करीब 43 सैनिकों की इस संघर्ष में मौत हुई है।

इससे पहले भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने भी यह फैसला किया था कि बीएसएनएल के 4G इक्विपमेंट को अपग्रेड करने के लिए चीनी सामान का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।  मंत्रालय ने बीएसएनएल से कहा है कि सुरक्षा कारणों के चलते चीनी सामान का इस्तेमाल नहीं किया जाए। विभाग ने इस संबंध में टेंडर पर फिर से काम करने का फैसला किया है। विभाग निजी मोबाइल सेवा ऑपरेटरों से चीनी कंपनियों द्वारा बनाए गए उपकरणों पर उनकी निर्भरता को कम करने के लिए भी विचार कर रहा है।


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