कोरोना मरीजों के लिए बने रेलवे कोच अब फिर श्रमिक स्पेशल में दौड़ेंगे, जानें क्या है कारण
कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों को अलग रखकर इलाज करने के लिए आनन-फानन में बदले गए ऐसे रेलवे कोच वार्ड अब श्रमिक स्पेशल ट्रेन के कोच बनकर दौड़ेंगे।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों को अलग रखकर इलाज करने के लिए आनन-फानन में बदले गए ऐसे रेलवे कोच वार्ड अब श्रमिक स्पेशल ट्रेन के कोच बनकर दौड़ेंगे। रेलवे बोर्ड की अनुमति के बाद परिवर्तित कोच वार्ड के 60 फीसद कोचों को अब प्रवासी मजदूरों को ढोने में लगाने का फैसला किया गया है। नियमित ट्रेनों का संचालन शुरू होने के बाद अब इन स्पेशल ट्रेनों के लिए नान एसी कोचों की कमी होने लगी है। कोरोना संक्रमित रोगियों के आइसोलेशन के लिए परिवर्तित इन कोचों को अब उनके पुराने रूप में लाने में संभवत: थोड़ा समय लग सकता है।
मामूली बदलाव में लग सकता है एक सप्ताह का समय
रेलवे के सूत्रों के मुताबिक इसमें मामूली बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी। मेडिकल वार्ड बनाने के लिए इन डिब्बों में बाथरूम और इसके विभिन्न पाकेट को अलग करने के लिए इनमें मोटे परदे लगाए गए हैं। उन्हें हटाने और ठीक करने में अधिकतम एक सप्ताह का समय लग सकता है। रेलवे बोर्ड ने अपने सभी जोनल रेलवे को पत्र लिखकर इसकी तैयारी करने का निर्देश दिया है। इसमें स्पष्ट रूप कहा गया है कि इन्हें श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के साथ दौड़ने लायक बना दिया जाए। वैसे तो कुल 5231 रेलवे कोचों में तब्दीली करते हुए उन्हें मेडिकल वार्ड बना दिया गया, जो महामारी के भीषण होने पर मरीजों को उपयुक्त चिकित्सा सुविधा के साथ क्वारंटीन करने के लिए उपयुक्त हो गया। इनमें से 60 फीसद कोच को पहले जैसा बनाने का निर्देश दिया गया है। सभी कोच नान एसी हैं। जबकि एसी कोच को फिलहाल वैसे ही मेडिकल कोच के रूप में रहने देने की हिदायत दी गई है।
कोच में किए गए थे ये बदलाव
रेलवे बोर्ड के जारी पत्र के बाद विभिन्न जोनल रेलवे में इस दिशा में काम शुरू भी कर दिया गया है। दरअसल, रेलवे कोच को मेडिकल वार्ड में तब्दील करने में बीच वाली बर्थ को हटा दिया गया है। जबकि संक्रमित रोगियों के बीच दूरी बनाए रखने के लिए प्लाईवुड की अस्थायी दीवारें भी बनाई गई हैं। रेलवे कोच में लगाए गए आक्सीजन टैंक, वेंटीलेटर और अन्य चिकित्सा उपकरणों को हटा लिया जाएगा। प्रत्येक कोच वार्ड में चार टॉयलेट की जगह अब दो हैं, जबकि दो शानदार बाथरुम बनाए गये हैं, जिन्हें अब बदला नहीं जाएगा। बाथरुम में हैंड शॉवर के साथ बाल्टी और मग भी है। इन्हें नहीं हटाया जाएगा।
पुराने रूप में लाने में एक लाख रुपये की लागत आने का अनुमान
सामान्य कोच बनाने में रेलवे पर कोई बहुत खर्च का दबाव नहीं होगा। इन कोचों को आगे कभी भी वार्ड में बदलने के लिए तैयार रखा जाएगा। इन्हें वार्ड में तब्दील करने में जहां एक कोच पर दो लाख रुपये का खर्च आया था, वहीं अब उसे पुराने रूप में लाने में एक लाख रुपये की लागत आने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने कुल 215 रेलवे स्टेशनों को इन कोचों को खड़ा करने के लिए चिन्हित कर लिया था। इस बाबत राज्यों से इनका उपयोग करने को भी कहा गया था, लेकिन अभी तक एक भी स्टेशन अथवा इन कोचों का उपयोग नहीं किया है।