Pune Porsche Accident: क्या पुणे कार हादसे के नाबालिग आरोपी को मिलेगी वयस्कों जैसी सजा, आखिर कब दिया जाता है ऐसा फैसला; जानिए सबकुछ
Pune Porsche Car Accident पुणे में तेज रफ्तार पोर्श कार से दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर की हत्या करने वाले नाबालिग की जमानत रद कर किशोर अदालत (जेजेबी) ने उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया। नाबालिग को पहले जमानत दे दी गई थी जिसका काफी विरोध भी हुआ। अब सवाल यह है कि क्या नाबालिग आरोपी पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा या नहीं...
जागरण डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Pune Porsche Car Accident पुणे के कल्याणी नगर में अपनी तेज रफ्तार पोर्श कार से दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर की हत्या करने वाले नाबालिग बीते दिन फिर से किशोर अदालत (जेजेबी) के सामने पेश हुआ, जहां उसकी जमानत रद कर दी गई और उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया।
गिरफ्तारी के कुछ घंटों के भीतर मिली थी जमानत
इससे पहले, जेजेबी (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड) ने ही गिरफ्तारी के कुछ घंटों के भीतर ही नाबालिग को जमानत दे दी थी। जेजेबी ने नाबालिग के तौर पर मुकदमा चलाने के लिए भी पुलिस के अनुरोध को खारिज कर दिया था। इस बीच जेजेबी का फैसला भी विवाद का कारण बना।
दरअसल, जेजेबी ने आरोपी की जमानत शर्तों में दुर्घटनाओं पर 300 शब्दों का निबंध लिखने, यातायात जागरूकता बोर्डों को चित्रित करने, यातायात कांस्टेबल के साथ काम करने और काउंसलिंग लेने को भी कहा।
किशोर अदालत के फैसले का हुआ था विरोध
किशोर अदालत के फैसले के बाद इसका विरोध भी देखने को मिला। वहीं, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इसे चौंकाने वाला और आश्चर्यजनक बताया। इसके बाद जेजेबी ने नाबालिग को फिर पेश होने का नोटिस जारी किया। पेशी के बाद आरोपी की जमानत रद कर दी गई और उसे 5 जून तक बाल सुधार गृह में भेज दिया गया।
अब, सवाल यह है कि क्या नाबालिग आरोपी पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा या नहीं...
क्या कहता है कानून?
- नाबालिग पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सकता है या नहीं, इसे किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 के तहत तय किया जाता है।
- इसके अनुसार, जेजेबी को अपराध करने के लिए नाबालिग की मानसिक और शारीरिक क्षमता, अपराध के परिणामों को समझने की उसकी क्षमता, अपराध और वे परिस्थितियां जिनमें उसने कथित तौर पर अपराध किया इसका मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है।
कब मिलती है वयस्कों जैसी सजा?
- दरअसल, नाबालिग को वयस्कों की स जा देने का कानून दिल्ली में 2012 में हुए निर्भय कांड के बाद आया। इसके लिए किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसमें कहा गया है कि अगर 16 से 18 वर्ष की आयु के नाबालिगों पर जघन्य अपराध का आरोप लगता है तो उनपर वयस्कों के रूप में मुकदमे चलाया जा सकता है।
- कानून के तहत "जघन्य अपराध" क रने वाले को सात साल से अधिक जेल की सजा हो सकती है। जिन अपराधों को इस श्रेणी में रखा गया है उनमें हत्या, बलात्कार, डकैती, एसिड हमले, सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना, मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी सहित अन्य शामिल हैं।
तय करने में लग सकता है समय
किशोर अदालत में सुनवाई में नाबालिग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील प्रशांत पाटिल ने बताया कि यह तय करने की प्रक्रिया में कि क्या नाबालिग के साथ वयस्क के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिए, कम से कम तीन महीने लग सकते हैं क्योंकि मनोचिकित्सकों और परामर्शदाताओं सहित अन्य लोगों से रिपोर्ट मांगी जाती है और फिर जेजेबी अपना निर्णय देता है।