प्रियंका ने कराई सपा-कांग्रेस की चुनावी दोस्ती
सीट बंटवारे की खींचतान में शनिवार को आए नाजुक दौर में प्रियंका ने ही सपा प्रमुख मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सीधे संपर्क साधा।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश में अपने राजनीतिक वजूद की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस सपा के साथ चुनावी गठबंधन को अपनी बड़ी कामयाबी मान रही है। साथ ही पार्टी अब इस बात को बेझिझक कबूल कर रही है कि सपा और कांग्रेस के बीच शुरू हुई सियासी दोस्ती की इस नई कहानी को लिखने में प्रियंका गांधी ने बेहद खास भूमिका निभाई है।
सीट बंटवारे की खींचतान में शनिवार को आए नाजुक दौर में प्रियंका ने ही सपा प्रमुख मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सीधे संपर्क साधा। तो सपा के नए शहंशाह ने भी कांग्रेस की 'प्रतिष्ठा' का ख्याल रखने के लिए अपनी कुछ सीटों की कुर्बानी दे दी।
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कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन में प्रियंका गांधी के अहम रोल का खुला इजहार तो खुद पार्टी के दिग्गज अहम पटेल ने भी किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने रविवार को साफ तौर पर कहा कि यह कहना गलत है कि सपा नेतृत्व से गठबंधन पर पार्टी के शीर्ष नेता बात नहीं कर रहे। पटेल ने अपने एक टिव्ट में कहा कि प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ खुद प्रियंका गांधी का गठबंधन पर सपा के शीर्ष नेतृत्व से संवाद होता रहा है।
पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक शनिवार को जब अखिलेश ने कांग्रेस हाईकमान के दूत प्रशांत किशोर को 100 से ज्यादा सीट देने से मना कर दिया और गठबंधन टूटने की नौबत आ गई। तब प्रियंका ने ही जल्दबाजी नहीं करने की सलाह देते हुए देर रात अखिलेश से संपर्क साध बीच का रास्ता निकाला। इसमें कांग्रेस 110 सीट की मांग से नीचे आयी और अखिलेश 100 से आगे बढ़े। अंतत: 105 सीटों पर शनिवार देर रात ही गठबंधन की बात बन गई। बताया जाता है कि इसमें अखिलेश की सांसद पत्नी डिंपल यादव ने भी बेहद सकारात्मक भूमिका निभाई।
अहमद पटेल के बयान से साफ है कि कांग्रेस नेतृत्व भी सपा से गठबंधन में प्रियंका की निभाई गई भूमिका को पर्दे में रखने की बजाय खुलकर सामने लाना चाहता है। बेशक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच निजी तौर पर दोस्ताना ताल्लुक हैं। मगर राहुल के मुकाबले प्रियंका ने उत्तरप्रदेश के प्रभारी कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद, राजबब्बर और प्रशांत किशोर के जरिए गठबंधन को अंजाम तक पहुंचाने में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाई। राहुल जब नए साल पर करीब दस दिन विदेश प्रवास पर थे उस दौरान प्रियंका ही सपा से गठबंधन की कसरत का संचालन कर रहीं थीं।
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लोकसभा चुनाव 2014 में करारी हार के बाद उप्र समेत देश में अपनी दरक चुकी राजनीतिक धरातल की तलाश कर रही कांग्रेस सपा से इस चुनावी गठबंधन को राष्ट्रीय परिदृश्य के लिहाज से भी बेहद अहम मान रही। पार्टी इस बात को लेकर अब राहत महसूस कर रही है कि सपा से उसका यह गठबंधन न केवल उत्तरप्रदेश में उसके विधायकों की संख्या बढ़ाएगा बल्कि इसने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए एक व्यापक सेक्यूलर गठबंधन की बुनियाद भी रख दी है।
कांग्रेस इस हकीकत को बखूबी मान रही है कि उसकी मौजूदा राजनीतिक ताकत अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन के सहारे ही वह फिलहाल अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बरकरार रख सकती है।
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