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तिरंगा फहराने के कुछ ही देर बाद शहीद हुए प्रमोद कुमार, पांच साल की बेटी ने दी मुखाग्नि

आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए कमांडेंट प्रमोद कुमार को चित्तरंजन स्थित अजय नदी घाट पर पांच वर्षीय पुत्री हरना ने मुखाग्नि दी।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 16 Aug 2016 04:52 PM (IST)Updated: Tue, 16 Aug 2016 05:21 PM (IST)
तिरंगा फहराने के कुछ ही देर बाद शहीद हुए प्रमोद कुमार, पांच साल की बेटी ने दी मुखाग्नि

श्रीनगर/ मिहिजाम। तिरंगे को सलामी देते हुए कमांडेंट प्रमोद कुमार जब देश की एकता व अखंडता को बनाए रखने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने की शपथ ले रहे थे, कोई नहीं जानता था कि चंद घड़ियों के बाद वह अपनी इस शपथ को अपने प्राणों की आहुति देकर पूरा करेंगे।

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आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए कमांडेंट प्रमोद कुमार का पार्थिव शरीर मिहिजाम स्थित आवास पर मंगलवार सुबह 10 बजे लाया गया। सबसे पहले शहीद कमांडेंट के पार्थिव शरीर को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। परिवार के सदस्यों ने शहीद को श्रद्धांजलि दी, इसके बाद 11: 30 बजे हजारों की संख्या में भीड़ के साथ अंतिम यात्रा श्मशान के लिए निकल पड़ी है। चित्तरंजन स्थित अजय नदी घाट पर पांच वर्षीय पुत्री हरना ने मुखाग्नि दी।

गौरतलब है कि स्वतंत्रता दिवस की सुबह ग्रीष्मकालीन राजधानी के नौहटटा में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए कमांडेंट प्रमोद कुमार की शहादत की कहानी किसी भी फिल्म निर्माता को प्रेरित कर सकती है। सुबह साढ़े आठ बजे डीआईजी कार्यालय कर्णनगर में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और इस अवसर पर अपने संबोधन में उन्होंने अधिकारियों व जवानों को देश की एकता व अखंडता के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने जवानों को संबोधित करते हुए कहा हम यहां कश्मीर सिर्फ आतंकियों से ही नहीं लड़ना है बल्कि पथराव का भी हमे सामना करना है। इसलिए मैं आपसे अाह्वान करता हूं कि अपने कर्तव्य का पूरी निष्ठा, समर्पण की भावना से निर्वाह करते हुए देश की एकता ,अखंडता व स्वतंत्रता को बनाए रखें।

जिस समय वह जवानों को संबोधित कर रहे थे, उसी दौरान नौहटटा में जामिया मस्जिद के पास आतंकी हमला हो गया था। समारोह के संपन्न होते ही जैसे उन्हें हमले का पता चला, वह बिना एक पल गंवाए मौके पर पहुंचे। उन्होंने वहां एक इमारत में छिपे आतंकियों को मार गिराने के लिए खुद अपने जवानों की अगुआई की और इस दौरान एक आतंकी को आमने सामने की लड़ाई में मार गिराते हुए वह गंभीर रुप से जख्मी हो गए। उनकी गर्दन में गोली लगी थी। कमांडेंट प्रमोद कुमार को उसी समय सेना के 92बेस अस्पताल में ले जाया गया,जहां करीब दो घंटे बाद उन्होंने दम तोड़ दिया।

अंतिम यात्रा में पाकिस्तान के खिलाफ लगे नारे

अंतिम यात्रा में लोग पाकिस्तान के खिलाफ जमकर नारेबाजी कर रहे थे। सीआरपीएफ डीआइजी दुर्गा प्रसाद, एसडीजी संदीप लखटकिया, डीआइजी दुर्गापुर आरएनएस भड़, डीआइजी सीआरपीएफ धनबाद सुरेश शर्मा, जीआरपी के डीआइजी सुरेश शर्मा, जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी, सूबे के कृषि मंत्री रणधीर सिंह, बराबनी विधायक विधान उपाध्याय, भाजपा जिला अध्यक्ष आदि साथ चल रहे थे। इसके पूर्व सोमवार को जानकारी मिलने बाद मिहिजाम के पालबगान स्थित आवास पर शहीद के परिजनों से मिलने जामताड़ा उपायुक्त रमेश दूबे पहुंचे, उन्होनें माता-पिता को सांत्वना दी।
जानिए, कौन थे शहीद कमांडेंट प्रमोद कुमार
प्रमोद कुमार ने इंटरनल सिक्यूरिटी एकेडमी सीआरपीएफ माउंट आबू से प्रशिक्षण प्राप्त किया था। उनकी पहली पदस्थापन असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर बिहार के मुजफ्फरपुर में वर्ष 1998 मे हुई थी। प्रमोद कुमार 29वें बैच के कैडर थे। बाद में बोकारो, रांची, मोकामा व कोलकाता में भी पदस्थापित रह चुके हैं। शहीद प्रमोद अपने पीछे माता, पिता, पत्नी व पांच वर्षीय पुत्री हरना को छोड़ गए हैं। इनके पिता चिरेका से 12 वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जो कि इस समय बीमार चल रहे हैं। प्रमोद चार बहनों में सबसे बड़े थे। उनका पैतृक गांव बिहार के पटना जिला अंतर्गत बख्तियारपुर में है।

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