नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। देश की पहली मेड इन इंडिया कार ‘हिन्दुस्तान 10’ का एक विज्ञापन इंटरनेट पर अक्सर देखने को मिलता है। उस विज्ञापन में लिखा था, “हिन्दुस्तान 10 देश की पहली कार है जिसे खास तौर पर भारतीय परिस्थितियों के मुताबिक तैयार किया गया है। अब इसे हमारे डिस्ट्रीब्यूटर शोरूम में देख सकते हैं।” उस दौर में यह कल्पना भी नहीं की गई होगी कि आने वाले सात दशकों में भारत दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमोबाइल मार्केट में शामिल होगा, यहां तमाम विदेशी कार-बाइक का शोरूम बन जाएगा जिनकी चमक-दमक सबको हतप्रभ कर रख देगी। भारत की ऑटोमेटिव इंडस्ट्री में कामयाबी की पटकथा संघर्षों से भरी, लेकिन प्रेरणादायक है। आंकड़े खुद इस बात की पुष्टि करते हैं। दोपहिया उत्पादन में भारत पहले और कार उत्पादन में दुनिया में तीसरे स्थान पर है। कारों की बिक्री के मामले में भारत चौथा बड़ा देश है। यही नहीं, भारत दुनिया के सौ से अधिक देशों को कार निर्यात भी कर रहा है।

हैम्बर्ग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक शोधपत्र में महिपत राणावत और रजनीश तिवारी ने बताया है कि 1950 में देश में करीब 4,000 वाहन बने थे। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) के मुताबिक 2021-22 में देश में 22.93 करोड़ वाहनों का उत्पादन हुआ, इनमें 1.77 करोड़ दोपहिया हैं। इस तरह सात दशकों में देश में वाहनों का उत्पादन 5,700 गुना बढ़ा है। स्टेटिस्टा के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 1951 में कुल तीन लाख वाहन सड़कों पर चला करते हैं।

भारत में वाहन उद्योग की शुरुआत 1940 के दशक में हुई। 1947 में आजादी के बाद इस उद्योग को कलपुर्जों की आपूर्ति के लिए भारत सरकार और निजी क्षेत्र की तरफ से इकाइयां लगाने के प्रयास किए गए। हालांकि राष्ट्रीयकरण और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले लाइसेंस राज के कारण 1950 और 1960 के दशक में इस उद्योग की वृद्धि काफी धीमी रही। 1970 के बाद वाहन उद्योग ने विकास करना आरंभ किया लेकिन वह मुख्य रूप से ट्रैक्टर, व्यावसायिक वाहनों और स्कूटरों तक सीमित था। कारें तब भी विलासिता की वस्तु थीं।

1980 के दशक में, कई जापानी निर्माताओं ने मोटरसाइकिलों एवं हल्के व्यावसायिक वाहनों के उत्पादन के लिए संयुक्त उद्यम स्थापित किए। उसी समय भारत सरकार ने जापान की सुज़ुकी को छोटी कारों के निर्माण के मकसद से संयुक्त उद्यम स्थापित करने के लिए चुना। 1991 में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद और साथ ही लाइसेंस राज के धीरे-धीरे कमजोर होने पर कई भारतीय एवं बहुराष्ट्रीय कार कम्पनियां भारतीय बाजार में उतरीं।

हिन्दुस्तान मोटर्स की धमक

1947 में आजादी के तुरंत बाद, भारत सरकार ने ऑटोमोबाइल उद्योग की मदद के लिए कंपोनेंट निर्माण उद्योग खड़ा करने की कोशिश की। 1960 से 1980 के दशक तक भारतीय बाजार में हिंदुस्तान मोटर्स का वर्चस्व था, जिसकी एंबेसडर कार का बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा था। 1980 के दशक के मध्य में हर साल 24,000 एंबेसडर कारें बिकती थीं, लेकिन 2013-14 में यह संख्या घटकर केवल 2,500 यूनिट रह गई। एंबेसडर का प्रोडक्शन 1958 से 2014 तक चला। उस साल फरवरी में एंबेसडर ब्रैंड को फ्रेंच कार कंपनी पूजो ने खरीद लिया। फ्रेंच कंपनी और सीके बिड़ला ग्रुप के मालिकाना हक वाली हिंदुस्तान मोटर्स के बीच यह सौदा करीब 80 करोड़ रुपए में हुआ।

मारुति की एंट्री से बदला बाजार का गणित

ऑटो बाजार में क्रांति लाने वाली गाड़ियों की बात हो और मारुति 800 का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। मारुति 800 वह क्रांतिकारी वाहन था जिसने एक भारतीय के कार का मालिक होने के सपने को साकार किया। मारुति 1983 में इस कार को लेकर आई थी। इसने 30 सालों तक भारतीय बाजार पर राज किया और देश में सबसे अधिक बिकने वाली कारों में एक है। मारुति ने 2014 में 800 मॉडल का उत्पादन बंद कर दिया।

हुंडई ने दी मारुति को टक्कर

कोरियाई ऑटो कंपनी हुंडई 1997 में सेंट्रो लेकर आई तो उसने इसे भारत की फ़ैमिली कार के रूप में प्रमोट किया। हुंडई सेंट्रो उस समय सच में हर फ़ैमिली की पहली पसंद बन गई थी। इस कार ने हैचबैक सेगमेंट में झंडे गाड़े। Hyundai ने Santro को कई मेकओवर दिए और यह कंपनी की हमेशा सबसे ज्यादा बिक्री वाली कार रही।

लाइसेंस राज खत्म होने पर कारों की बिक्री बढ़ी

मोटर वाहन इंडस्ट्री को 1991 में नई औद्योगिक नीति की घोषणा के साथ ही लाइसेंस मुक्त कर दिया गया। यात्री कार उद्योग को 1993 में लाइसेंस मुक्त किया गया। उसके बाद देश में कार बाजार भी तेजी से बढ़ा। कार बिक्री के आंकड़े देखें तो 1995 में 3.12 लाख कारों की बिक्री हुई थी। यह 2003-04 में 10 लाख के पार पहुंच गई। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) के अनुसार पिछले वित्त वर्ष, यानी 2021-22 में 30.69 लाख कारों की बिक्री हुई। वैसे, 2018-19 में यह आंकड़ा 33.77 लाख तक पहुंच गया था।

2000 का दशक रहा बेहतर 

साल 2000 से 2010 तक के बीच लगभग हर बड़ी कार कंपनी ने देश के विभिन्न हिस्सों में मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज खड़ी कर दी थी। इस दौरान टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा काफी मजबूत हो चुकी थीं। टाटा मोटर्स ने 1998 में पहली पीढ़ी की सफारी (7 सीटर) लॉन्च की और महिंद्रा ने अपनी ऐतिहासिक एसयूवी स्कॉर्पियो को साल 2002 में लॉन्च किया था। दोनों ही कंपनियों के लिए यह मॉडल गेम चेंजर साबित हुए।

दोपहिया वाहनों का सबसे बड़ा बाजार

भारत, चीन को पछाड़ कर विश्व का सबसे बड़ा दोपहिया बाजार बन चुका है। सियाम के अनुसार 2021-22 में 1.34 करोड़ दोपहिया वहान देश में बिके। 2018-19 में 2.11 करोड़ दोपहिया वाहनों की बिक्री का भी रिकॉर्ड बना था, यानी 58 हजार वाहन रोजाना।

उत्पादन, निर्यात और आयात

भारत विश्व में छोटी कारों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बनकर उभरा है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, भारत के मजबूत इंजीनियरिंग आधार और कम लागत तथा कम ईंधन खपत वाली कारों के निर्माण में विशेषज्ञता के कारण अनेक वाहन निर्माता कम्पनियों जैसे हुंडई मोटर्स, निसान, टोयोटा, फॉक्सवैगन तथा सुज़ुकी की उत्पादन सुविधाओं का विस्तार हुआ है। साल 2009 में जापान, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड के बाद भारत पैसेंजर कारों के चौथे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में उभरा। 2010 में भारत एशिया का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक और 2011 में उत्पादन के मामले में दुनिया का छठा सबसे बड़ा देश बन गया।

सियाम के पूर्व तकनीकी निदेशक के.के. गांधी कहते हैं कि भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग ने पिछले 75 सालों में कई तरह की चुनौतियों का सामने करने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर के बेहतर और किफायती उत्पाद बनाने वाले उद्योग के तौर पर पहचान हासिल की है। आज भारत बेहतरीन ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के साथ ही 4 मीटर से छोटी गाड़ियों का उत्पादन करने वाला बड़ा हब बन चुका है। आजादी के समय हमारी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री तकनीक और पुर्जों के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर थी। पर आज देश की कई ऑटोमोबाइल कंपनियां देश की जरूरत को पूरा करने के साथ ही गाड़ियों का निर्यात भी कर रही हैं।

बढ़ रही हैं इलेक्ट्रिक कारें

बीते कुछ समय में प्रदूषण कम करने के लिए इलेक्ट्रिक कारों को बढ़ावा देने से उनका इस्तेमाल बढ़ा है। लेकिन इलेक्ट्रिक कारों को लेकर लोगों की सबसे बड़ी चिंता इसकी चार्जिंग को लेकर रहती है। इसमें तकनीक तो सहायक साबित हो रही है, अब इसके चार्जिंग स्टेशनों में भी लगातार इजाफा हो रहा है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार साउथ कोरिया में हर दो इलेक्ट्रिक व्हीकल पर एक चार्जिंग स्टेशन है। मैक्सिको में हर तीन, चीन में छह, जापान में 10, ब्रिटेन में 13, अमेरिका में 18 और न्यूजीलैंड में हर 52 इलेक्ट्रिक व्हीकल पर एक चार्जिंग स्टेशन है। भारत में हर 23 इलेक्ट्रिक व्हीकल पर एक चार्जिंग स्टेशन है।

फ्लाइंग कार

आपको गुड़गांव या नोएडा से दिल्ली आने-जाने में घंटों जाम में बिताने पड़ते हैं, तो आपके लिए अच्छी खबर है। जल्द ही उड़ने वाली कार से यह दूरी कुछ ही मिनटों में पूरी कर सकेंगे। भारत के कुछ युवाओं की स्टार्टअप टीम विनता एयरोमोबिलिटी ने हाइब्रिड फ्लाइंग कार तैयार की है। इसे आने वाले समय में शहरों में ट्रांसपोर्ट के भविष्य के तौर पर देखा जा रहा है। कंपनी ने हाल ही में अपनी हाइब्रिड फ्लाइंग कार का प्रोटोटाइप केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिखाया। उन्होंने इसे एशिया की पहली हाइब्रिड फ्लाइंग कार बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार आने वाले समय में आम लोगों और मेडिकल इमरजेंसी सर्विसेज को एक जगह से दूसरी जगह जल्द से जल्द पहुंचाने में काफी उपयोगी साबित होगी।

India@100 : 2047 तक देश में 100 फीसदी इलेक्ट्रिक व्हीकल!

सेंटर फॉर ऑटो पॉलिसी एंड रिसर्च के कंवीनर के.के. गांधी कहते हैं कि सियाम ने श्वेत पत्र पेश करके 2047 तक देश में 100 फीसदी इलेक्ट्रिक व्हीकल लाए जाने बात कही है। ऐसे में आजादी के 100 साल पूरे होने पर देश एक बड़ी उपलब्धि हासिल करेगा। हालांकि सरकार जीरो एमिशन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इलेक्ट्रिक व्हीकल के साथ ही हाइड्रोजन व्हीकल को भी बढ़ावा देने पर विचार कर रही है।

टेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन फोरकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल (TIFAC) ने ‘फोरकास्टिंग पेनिट्रेशन ऑन इलेक्ट्रिक टू व्हीलर्स इन इंडिया’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की। इसमें आठ अलग-अलग परिस्थितियों की परिकल्पना की गई है और इनकी मदद से इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स के भविष्य में झांकने की कोशिश की गई है।

फेडरेशनल ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) के पूर्व अध्यक्ष निकुंज सांघी कहते हैं, भारत में 1945 तक एक भी गाड़ी नहीं बनती थी, सिर्फ आयात की जाती थीं। इसके बाद महिंद्रा और टाटा ने भारत में गाड़ियों को असेम्बल करना शुरू किया। लेकिन आज भारत गाड़ियां बनाने के मामले में दुनिया में चौथे स्थान पर पहुंच चुका है। भारत में निर्मित गाड़ियां पूरे विश्व में खरीदी जा रही हैं। भारत ऑटोमोबाइल क्षेत्र में अब सिर्फ गाड़ियां बनाने में नहीं, शोध और अनुसंधान के मामले में भी बहुत आगे है। ऐसा माना जा रहा है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल के मामले में कुछ ही सालों में भारत एक अग्रणी देश हो जाएगा।

टाइफैक ने जिन परिस्थितियों की कल्पना की है, उनमें एक के अनुसार 2027 तक सड़कों पर जो दोपहिया होंगे वे शत प्रतिशत इलेक्ट्रिक होंगे। रिपोर्ट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे, निर्माण क्षमता, नीतियों और तकनीकी-विकास की प्राथमिकताओं का भी जिक्र है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रौद्योगिकी या तकनीक में सुधार और बैटरी की लागत में कमी इलेक्ट्रिक गाड़ी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है।

चुनौती और समाधान

के.के. गांधी कहते हैं कि देश में गाड़ियों की संख्या बढ़ने के साथ प्रदूषण भी एक बड़ी चुनौती बन गया। हमारी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री ने इस समस्या पर काम करना शुरू कर दिया है। धीरे-धीरे गाड़ियों में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने से प्रदूषण घटा है। अगले 25 सालों में भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग प्रदूषण मुक्त गाड़ियां बनाने लगेगा। 2047 तक देश में इलेक्ट्रिक गाड़ियों और हाइड्रोजन (ईंधन सेल) के ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होने से प्रदूषण न के बराबर होगा। वहीं गाड़ियों के सुरक्षा मानकों को और बेहतर बनाने के लिए इंडस्ट्री की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।