बस्तर की इस शेरनी से खौफ खाते हैं नक्सली, नक्सलियों ने कर दी थी पति की हत्या
पांडुराम की विधवा आदिवासियों को जागरूक कर मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास कर रहीं है।
रीतेश पांडेय, जगदलपुर। लाल आतंक से लहूलुहान बस्तर में पांडुराम नामक एक जागरूक आदिवासी ने लाल खौफ के आगे सिर झुकाने से इंकार कर दिया। बतौर ग्राम प्रतिनिधि वह कोलेंग गांव के अन्य ग्रामीणों को भी जागरूक करने में जुट गया। कर्तव्यबोध से संपन्न पांडुराम ने नक्सलियों की धमकी की परवाह नहीं की। लोगों को समझाते रहे कि नक्सलियों की बातों में न आएं और विकास की मुख्यधारा से जुड़ें..। नक्सलियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। यह मुहिम यहीं थम जाती, संदेश जाता कि नक्सलियों से टकराने का यही अंजाम होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दशाय ने ऐसा होने नहीं दिया। पांडुराम ने जागरूकता की जो मशाल जलाई थी, उनकी विधवा ने उसे बुझने नहीं दिया। अब इसकी लौं इतनी तेज हो चुकी है कि खौफ इसकी जद में आते ही खाक हो जाता है।
मिशन जारी है..:
दशाय ने पति को तो खो दिया पर हिम्मत नहीं खोई। नक्सलियों को पीछे धकेलती हुई यह शेरनी दिवंगत पति के मिशन को आगे बढ़ा रही है। लाल गलियारे की लपटें उन्हें झुलसाना चाहती हैं, मगर दशाय का अदम्य साहस ही है कि वह इसका डटकर मुकाबला कर रही हैं। गांव से लाल खौफ का खात्मा कर ग्रामीणों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना उनका एकमात्र संकल्प है। बाधाएं कैसी भी हों उन्हें बांध नहीं पातीं। इस फौलादी महिला का मिशन जारी है।
लाल आतंक का गढ़ है यह गांव
संभाग मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत कोलेंग दरअसल घोर नक्सल प्रभावित इलाका है। यहां से तुलसी डोंगरी के उस पार ओडिशा की सीमा लग जाती है। गांव में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व दूरसंचार जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। इसे लेकर ग्राम प्रतिनिधि पांडुराम (58) लोगों को जागरूक कर प्रशासन से लगातार संपर्क कर रहे थे। 21 अप्रैल 2015 को नक्सलियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इस घटना से पांडुराम की पत्नी दशाय व्यथित हो उठीं। लेकिन ठान लिया कि पति के अधूरे काम को पूरा करके ही रहेंगी। राज्य सरकार ने उन्हें आश्रम में रसोइए की नौकरी भी दी लेकिन, पति के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। दशाय आज नक्सलियों के लिए खुली चुनौती बनी हुई हैं।
विकास ही एकमात्र लक्ष्य
दशाय पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन उन्होंने यह जान लिया है कि विकास कैसे होता है। ग्रामीणों को शासन-प्रशासन की विभिन्न योजनाओं से जोड़ने का प्रयास करती हैं। इसमें कोई समस्या हो तो समाधान के लिए ब्लाक मुख्यालय से लेकर जनपद मुख्यालय तक पहुंचती हैं। ग्रामीणों को मुख्यधारा में लाने के लिए संगोष्ठियां करती हैं, जनजागरण अभियान चलाती हैं। यह नक्सलियों को खुली चुनौती है, लेकिन दशाय को इसकी रत्ती भर परवाह नहीं। सड़क-बिजली-पानी और चिकित्सा सुविधाओं के लिए की गई उनकी मेहनत रंग लाने लगी है।
पांडुराम की विधवा दशाय बताती हैं, 'पति नहीं रहे तो अब मौत का भय भी नहीं रहा। पति के संकल्प को आगे बढ़ाने के लिए, गांव के विकास के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हूं। युवाओं के सहयोग से नक्सलियों के खिलाफ जागरूकता अभियान भी इसी उद्देश्य से चला रही हूं। विकास शुरू हो गया है। उम्मीद है कि जल्द ही नक्सलवाद यहां से पूरी तरह खत्म हो जाएगा।'
उनकी हिम्मत काबिल-ए-तारीफ
एसपी बस्तर आरिफ एच शेख बताते हैं, 'दशाय बाई की हिम्मत काबिले तारीफ है। पुलिस ऐसे ग्रामीण जनप्रतिनिधियों, जिनकी आस्था लोकतंत्र में है, उनकी हिफाजत के लिए पूरी ताकत लगा रही है। सुरक्षा कर्मी मुस्तैदी से सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं। दशाय की सुरक्षा के लिए पुलिस तत्पर है।'
पूरा हो रहा पांडुराम का सपना
पांडुराम ने गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, सड़क, बिजली और सुरक्षा के लिए सतत संघर्ष किया। उन्होंने 24 दफा जगदलपुर पहुंचकर जिला प्रशासन को आवेदन सौंपा और सड़क बनाने की गुहार लगाई। इसके बावजूद भी मांग पूरी न होने पर राष्ट्रपति भवन को फैक्स किया था। पांडुराम के इसी संघर्ष का नतीजा है कि वर्तमान में कोलेंग तक सड़क बन रही है। इसमें उनकी विधवा दशाय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है।
यह भी पढ़ें: नक्सल प्रभावित क्षेत्र के केंद्रीय फंड में कटौती से ममता क्षुब्ध