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Happy Mothers Day 2020: दूर हो या पास, हमारी हर मुश्किल में मजबूत ढाल बन जाती है मां

मां का अहसास ही उनका स्पर्श है। उनकी आंखें देखती भी हैं और मन की लहरों की हलचल को सुन भी लेती हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 10 May 2020 10:39 AM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 10:39 AM (IST)
Happy Mothers Day 2020: दूर हो या पास, हमारी हर मुश्किल में मजबूत ढाल बन जाती है मां
Happy Mothers Day 2020: दूर हो या पास, हमारी हर मुश्किल में मजबूत ढाल बन जाती है मां

सीमा झा। इन दिनों बादलों की तरह हो गए हैं मन के भाव। कोई तो जरिया हो जो ये उमड़ते-घुमड़ते स्याह बादल बरस जाएं और मिल जाए आराम! यही सोच रही हैं आप तो कहीं और जाने की क्या जरूरत, जब मां के रूप में यह जरिया पहले से ही मौजूद है हमारे पास। वह घर पर हैं या कहीं दूर, क्या फर्क पड़ता है। कोई भी मुश्किल हो, मां बन जाती हैं एक मजबूत ढाल। घर से दूर रह रहे बच्चों के लिए तो मां का अहसास ही उनका स्पर्श है। उनकी आंखें देखती भी हैं और सुन भी लेती हैं मन की लहरों की हलचल को। किसी मनोवैज्ञानिक की तरह बिन कहे सलाह देने वाली मां की यही तो पहचान है, जो वक्त के हर मोड़ पर बच्चों के लिए खुद को बदलती और जाती है।

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मां से दूर रह रहीं मीडियाकर्मी सुमन कहती हैं, मैंने ज्यादा वक्त मां से दूर ही बिताया है। जब भी कोई परेशानी हुई तो उनसे शेयर करने की सोचती हूं, पर अचानक ख्याल आता है कि मां तो यही कहती। चुप हो जाती हूं और उन्हें अपने भीतर महसूस करती हूं।

जो हम पर गुजरी है 

उर्वशी (बदला हुआ नाम) कोरोना सर्वाइवर हैं उनकी दो किशोर बेटियां भी हैं कोरोना सर्वाइवर हैं। उर्वशी कहती हैं, कौन जानता है जिंदगी का कौन सा लम्हा कैसा होगा। पूरे एक माह हमने अस्पताल में बिताए। मुझे और मेरी बेटियों को कोई समस्या नहीं थी, सिवाय इसके कि हम कोरोना पॉजिटिव थे। हालांकि मैंने अहसास किया है कि मेरी ताकत और बढ़ गई है, जो हम पर गुजरी है, किसी और पर यह आफत न आए।

और बड़ी हो रही हूं

लेखिका रुचि भल्ला कहती हैं, मेरा बेटा बाइस साल का है। उसका बाहर जाना बंद है। उसका परीक्षा परिणाम आना था, वो नहीं आया। मैं देखती हूं कि वह सोशल मीडिया से जुड़कर अपने युवा मन को ढांढ़स तो देता है, लेकिन कितना शोर मचा रहता है उसके अंदर। मैं यह जानती हूं कि वह अपने स्तर से लड़ रहा है, लेकिन यह लड़ाई उसकी अकेली नहीं है। उसे भरोसा दिलाती हूं कि हम सब योद्धा हैं और इस भंवर से निकलने की कोशिश में हैं। बेटे के साथ-साथ मैं और भी बड़ी हो रही हूं मां के रूप में।

आगे की तैयारी है

ऑर्गेनिक फार्मर रमा भारती कहती हैं, शुरुआती दिनों में समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हुआ। हमें बाहर घूमने जाना था। हम सब उत्साहित थे, पर अचानक सारे प्लान कैंसिल हो गए। इससे मेरे दोनों किशोर बेटों को धक्का लगा। जीवन पर लगा यह ब्रेक और घर की चारदीवारी में ही दिन बिताना, कल्पना से परे है सब कुछ, जो धीरे-धीरे वास्तविक रूप में ढल रहा है। स्वीकार कर लिया है अब तो, उनके चेहरे पर यह बदलाव दिख रहा है। छोटा बेटा फुटबॉलर है, चार घंटे रोज खेलता था। अब उसे बॉल छूते देखती हूं तो उसके मन में चल रही हलचल, उसकी बेबस आंखें पढ़ सकती हूं। वह जानता है मम्मी सब जान रही हैं। पहले किचन बंद रहता था, किसी को आने की इजाजत नहीं देती थी, क्योंकि बाद की सफाई डराती थी, पर अब बदल गया है यह नियम। काम बढ़ता है ठीक है, पर कम से कम ध्यान तो बंटता है बाकी दुनिया से।

मेरे दोनों बच्चे अपनी पसंदीदा चीजें बनाते हैं। यहां तक कि जन्मदिन का केक भी बनाया। राहत की बात है कि ऑनलाइन पढ़ाई शुरू है, समय धीरे-धीरे ही सही पर गुजर रहा है। मैं इसे पॉजिटिव ले रही हूं कि बच्चे आगे के लिए तैयार हो रहे हैं। भविष्य की डोर कसकर न पकड़ो मॉडल रविंदर कुहार कहते हैं, मैं एक माह पहले मुंबई से अपने घर हरियाणा आया। शुरू में डरा था कहीं मुझे कोरोना हो गया तो घरवालों को कैसे बचा पाऊंगा। इसलिए अलग रहने लगा, पर मेरे डर को मां ने समझ लिया था। उनसे कुछ छिपाना मुश्किल था। आपदा न आई होती तो मुझे कई बेहतरीन मौके मिले थे, उन्हें शुरू करना था। मां यह सब समझ रही थीं और मेरी चिंता देखकर सीधे तौर पर तो नहीं, पर यह बताने की कोशिश करती रहीं कि अभी लम्हों में जीना जरूरी है। चिंता हावी हो जाए तो भविष्य बिगाड़ सकती है। इसलिए ढीली छोड़ दो भविष्य की डोर को।

बदलते हैं मन के अहसास केरल में शिक्षक आलोक रंजन कहते हैं, सोचा था वक्त मिला है, कुछ रचनात्मक करूंगा, पर सब कुछ थमा सा जान पड़ता है। इस संकट से कौन अछूता होगा इस समय। मेरा घर बिहार में है। घर से दूर मैं केरल में रह रहा हूं। घर से दूर रहना एकबारगी मन को तन्हा कर देता है, पर जैसे ही मां याद आती हैं तो उनके किस्से याद आ जाते हैं। फिर मन के अहसास तेजी से बदलते हैं। इन दिनों उनकी वह सीख याद आ रही है, जब वे एक लड़के के रूप में रोने से मना नहीं करती थीं। मां ने मुझे खाना बनाने की प्रेरणा भी दी, जो इस वक्त काम आ रही है। मां ने यह भी कहा है कि जितना सरल रहूंगा, उतना ही मुश्किल वक्त से लड़ सकता हूं।

मां को भी अपना ख्याल रखना है

दिल्‍‍‍‍ली की मनोचिकित्सक डॉ. सुजाता मिन्हास कहती हैं कि स्त्री कई भूमिकाओं को जीती है। इन दिनों उससे अपेक्षाएं और बढ़ी हैं। उसकी खुद से भी अपेक्षा अधिक हो गई है। घर पर सबका ख्याल रखना है यानी काम भी करना है और उन्हें हिम्मत भी देनी है। यह दोहरी चुनौती है। ऐसे में वह अपना ख्याल रखना भूल जाती है। अत: गुस्सा आना स्वाभाविक है, पर मां को यह ध्यान रखना है कि उसकी प्रतिक्रिया बच्चों पर असर डालेगी। आगे चलकर यही उनका व्यवहार भी बन सकती है। संतुलित प्रतिक्रिया के लिए मां को अपने लिए भी समय निकालना है और अपना ख्याल रखना है।

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