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भारतीय इतिहास में दर्ज है 10 मई, जब मेरठ से उठी क्रांति की आंधी से हिल गई थी ब्रिटिश हुकूमत

10 मई का वो दिन जब भारतीय सिपाही विद्रोह कर चुके थे। महज दो घंटे में पूरा छावनी इलाका जल उठा। जेल तोड़ दी गईं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 10 May 2020 12:07 PM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 12:07 PM (IST)
भारतीय इतिहास में दर्ज है 10 मई, जब मेरठ से उठी क्रांति की आंधी से हिल गई थी ब्रिटिश हुकूमत
भारतीय इतिहास में दर्ज है 10 मई, जब मेरठ से उठी क्रांति की आंधी से हिल गई थी ब्रिटिश हुकूमत

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। आजादी के सुनहरे सपने लिए धधकी थी क्रांति की ज्वाला 10 मई, 1857। इतिहास में यह क्रांति की तारीख है। मेरठ छावनी से उठी क्रांति की यह ज्वाला देशभर में धधकी जिससे ब्रितानी हुकूमत की चूलें हिल गई। बहादुरशाह जफर, नाना साहब, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे सहित कई बड़े नाम इस क्रांति में कूदे, अंग्रेजों को चुनौती दी। इसे प्रथम स्वाधीनता संग्राम का नाम भी दिया गया। बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय के विद्रोह के बाद से भारतीय सिपाहियों में गोरों के खिलाफ नफरत और बढ़ गई थी। सिपाहियों के साथ देशवासियों में क्रांति की खातिर रोटी-कमल का संदेश गांव-गांव घूमने लगा था।

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अंदर ही अंदर चिंगारी सुलग रही थी। तभी बड़ी चूक मेरठ में अंग्रेज अफसरों ने कर दी। बस क्या था, क्रांति की माटी से आजादी का सुनहरा सपना दिखाने वाली ज्वाला जल उठी। आज क्रांति दिवस के मौके पर आइए, रवि प्रकाश तिवारी की इस रिपोर्ट में कुछ अहम तथ्यों को जान लेते हैं... 

क्रांति पर चली थी कार्ल माक्र्स की कलम

भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के कई अहम पड़ावों को जाने-माने दार्शनिक कार्ल माक्र्स ने बतौर पत्रकार न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून के लिए सिलसिलेवार कवर किया और मेरठ की क्रांति से लंदन तक को परिचित कराया था। कार्ल माक्र्स की 15 जुलाई की एक रिपोर्ट मेरठ में भी है। इसमें उन्होंने मेरठ छावनी में घटित घटनाक्रम का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है।

23 अप्रैल: मेरठ छावनी में भारतीय पलटन की तीसरी अश्वरोही सेना के कमांडर ने निर्देश दिया कि सभी सिपाही अगली सुबह परेड ग्राउंड में पहुंचे। नई तरह की गोली (चर्बी वाली) चलाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। उसी रात सिपाहियों ने गंगाजल और कुरान हाथ में लेकर शपथ ली कि वे नई कार्टेज की खिलाफत करेंगे।

24 अप्रैल: परेड ग्राउंड में पहुंचे 90 में से 85 सिपाहियों ने नई कार्टेज के इस्तेमाल का विरोध कर दिया। इसके बाद इन सभी के लिए 25, 26 और 27 अप्रैल को जांच बिठा दी गई और तय हुआ कि विद्रोही सिपाहियों का कोर्ट मार्शल होगा।

30 अप्रैल-7 मई: इस बीच मेरठ के कई हिस्सों में छोटी-मोटी आग लगने की घटनाएं हुईं। कई सरकारी दफ्तरों के छप्पर जलाए गए। अंग्रेज इसकी वजह गर्मी मानते रहे जबकि यह तो एक संकेत था बड़ी क्रांति का।

6-8 मई: कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया चली। 80 सिपाहियों को 10 वर्ष जबकि पांच को पांच वर्ष की सजा सुनाई गई। 9 मई: परेड ग्राउंड में सभी सिपाहियों को एकत्रित कर पहले उनसे असलहा छीने गए, फिर वर्दी उतार दी गई। सभी को जंजीरों में जकड़कर जेल भेज दिया गया। इस घटना ने शेष भारतीय सिपाहियों में आक्रोश भर दिया। इसके अलावा बाजार में उन पर लोगों और नगरवधुओं के ताने पड़े तो उनका खून भी खौल उठा।

इतिहास में दर्ज हो गई क्रांति की यह तारीख

10 मई: रविवार का दिन था। अंग्रेज छुट्टी के मूड में थे। कोई बाजार में खरीदारी कर रहा था तो कोई चर्च में प्रार्थना। तभी शाम लगभग 5.30 बजे सदर बाजार से क्रांति की ज्वाला धधक उठी। पैदल सेना के परेड ग्राउंड में फायरिंग शुरू हो गई। अंग्रेज अफसरों को निशाना बनाया गया। 6.15 बजे तक दोनों जेलें तोड़ दी गईं। भारतीय सिपाही विद्रोह कर चुके थे। अगले दो घंटे में पूरा छावनी इलाका जल उठा। शाम 7.30 के आसपास ये सभी रिठानी गांव के निकट इकट्ठे हुए और दिल्ली कूच कर गए। अगले दिन सुबह ये नावों के बने पुल को पारकर यमुना किनारे लाल किला की प्राचीर तक पहुंचे। इधर, रात के हमलों से संभलकर ब्रितानी फौज ने भी दिल्ली कूच किया, लेकिन तब तक क्रांति की चिंगारी धधक चुकी थी।

सेंटर फॉर आम्र्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली के फेलो डा. अमित पाठक के मुताबिक प्रथम स्वाधीनता संग्राम के से जुड़े कई स्मारक आज भी मौजूद हैं। उन्हें संरक्षित कर पर्यटन की दृष्टि से सहेजने की जरूरत है। फिलहाल मेरठ के शहीद स्मारक स्थित राजकीय संग्रहालय में क्रांति गाथा को चित्र प्रदर्शनी के तौर पर देखा जा सकता है। क्रांति पथ का खाका खींचा गया है, उम्मीद है स्थिति सामान्य होने के बाद इस पर सार्थक काम होगा। 

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