अमेरिकी राष्ट्रपति इतिहास में पहली बार प्रेसिडेंशियल डिबेट और रैलियों में हो रहा अभद्र भाषा का इस्तेमाल
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में अब कम ही दिन बचे हैं। ऐसे में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन प्रत्याशियों के बीच सुर बेहद तीखे हो गए हैं। ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि प्रेसिडेंशियल डिबेट केवल एक-दूसरे पर आरोप लगाने तक सीमित रही है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में अब केवल दो सप्ताह का ही समय बचा है। 3 नवंबर को वहां पर मतदान होगा। ऐसे में डेमोक्रेट हो या रिपब्लिकन प्रत्याशी, दोनों ही अपनी जीत के लिए कोई कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहते हैं। हालांकि, अब जब इतना कम समय बचा है तो जवाहरलाल नेहरू के प्रोफेसर बीआर दीपक मानते हैं कि डेमोक्रेट प्रत्याशी जो बिडेन लगातार मौजूदा राष्ट्रपति और रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप पर भारी पड़ रहे हैं। आपको बता दें कि जब से ट्रंप और बिडेन ने अपना प्रचार अभियान शुरू किया है तब से लेकर अब तक इस प्रचार में काफी कुछ बदलाव आ चुका है।
प्रोफेसर दीपक की मानें तो अमेरिकी इतिहास में ये पहला मौका है, जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए किए जा रहे चुनाव प्रचार में इस तरह की तीखी शब्दावली का इस्तेमाल किया जा रहा है। उनका मानना है कि पहले दोनों पक्षों के बीच होने वाली प्रेसिडेंशियल डिबेट में मुद्दों पर जो बहस होती थी उसमें दोनों ही तरफ से अपना-अपना पक्ष रखा जाता था। लेकिन इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। इस बार की प्रेसिडेंशियल डिबेट एक-दूसरे के ऊपर तीखे और कड़वे शब्दों से हो रही है। इस बार होने वाली डिबेट में मुद्दे गायब हैं और एक-दूसरे पर केवल आरोप लगाने का दौर ही जारी है। हाल ही में ट्रंप ने बिडेन परिवार को अमेरिकी इतिहास का सबसे भ्रष्ट परिवार बताया है तो वहीं डेमोक्रेट की तरफ से कहा गया है कि ट्रंप राष्ट्रपति के काबिल इंसान नहीं हैं।
प्रोफेसर दीपक का ये भी कहना है कि अमेरिका में डिबेट के दौरान दोनों प्रत्याशियों के बीच जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, उस तरह का ट्रेंड पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। वो इसके पीछे राष्ट्रवादी ताकतों को एक बड़ी वजह मानते हैं। उनका ये भी कहना है कि ट्रंप और बिडेन को जिताने में रूस और चीन पर्दे के पीछे खेल करने में लगे हैं। हालांकि, दोनों ने ही सामने आकर इस तरह की किसी भी हरकत का खंडन किया है। उनके मुताबिक चीन जहां बिडेन के पक्ष में है वहीं रूस ट्रंप को दोबारा जीतता हुआ देखना चाहता है।
इस चुनाव से पहले मोदी फैक्टर का भी जिक्र किया जा रहा था,लेकिन अब जबकि मतदान में कम ही दिन बचे हैं तो ऐसे में मोदी फेक्टर का असर उतना दिखाई नहीं दे रहा है, जितना कहा जा रहा था। प्रोफेसर दीपक का कहना है कि हाल ही में भारतीयों की स्थिति बताते हुए एक सर्वे भी सामने आया है जिसमें ज्यादातर भारतीयों की पसंद के तौर पर बिडेन का नाम सामने आया है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि मोदी फेक्टर ने बिल्कुल ही काम न किया हो। उनके मुताबिक, भारतीयों को डेमोक्रेट के पारंपरिक वोटर्स के तौर पर देखा जाता रहा है। इस बार भारतीय वोटर भी बंट गया है। भले ही ज्यादातर का रुख बिडेन की ही तरफ है, लेकिन इसके बाद भी 22 फीसद भारतीयों ने ट्रंप के पक्ष में रहने की बात कही है। लिहाजा मोदी फेक्टर को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
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