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पॉकेटमारी के शिकार लोगों के मसीहा

अमृतसर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की जेब तराशने वाले पॉकेटमार 'ईमानदार' बताए जा रहे हैं। 'ईमानदार' सिर्फ इसलिए क्योंकि वह सिर्फ पैसे के यार हैं। पर्स से पैसे निकालने के बाद अन्य बचे सामानों को लेटर बॉक्स में डाल देते हैं, ताकि सामान मालिक तक पहुंच सके। पॉकेटमारी का शिकार लोगों के लिए मुख्

By Edited By: Published: Sun, 07 Sep 2014 10:01 AM (IST)Updated: Sun, 07 Sep 2014 10:02 AM (IST)
पॉकेटमारी के शिकार लोगों के मसीहा

अमृतसर, [अशोक नीर]। अमृतसर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की जेब तराशने वाले पॉकेटमार 'ईमानदार' बताए जा रहे हैं। 'ईमानदार' सिर्फ इसलिए क्योंकि वह सिर्फ पैसे के यार हैं। पर्स से पैसे निकालने के बाद अन्य बचे सामानों को लेटर बॉक्स में डाल देते हैं, ताकि सामान मालिक तक पहुंच सके। पॉकेटमारी का शिकार लोगों के लिए मुख्य डाकघर के दो कर्मचारी वरदान साबित हो रहे हैं। वे प्राप्त सामान को लोगों तक पहुंचाते हैं।

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श्री हरिमंदिर साहिब व अन्य धार्मिक स्थलों पर घूमने आने वाले श्रद्धालुओं का पर्स जब ऐसे पॉकेटमार चुराते हैं तो उसमें से पैसे निकालने के बाद बाकी सामान चौक फव्वारा व शहर के अन्य लेटर बॉक्स में डाल देते हैं। डाकघर के कर्मचारी जब लेटर बॉक्स से डाक निकालने आते हैं तो उसमें पर्स व खुला सामान देखकर उन्हें साथ ही ले आते हैं। जेब कटने के बाद श्रद्धालु भी कभी कभार ही शिकायत करते हैं और दुखी मन से कड़वी यादें लेकर घर लौट जाते हैं।

अमृतसर के मुख्य डाकघर के दो कर्मचारी जगजीत सिंह व रणजीत सिंह लेटर बॉक्स में मिले पर्स व खुले सामान को उसके मालिक तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इनके पास दर्जनों शिनाख्ती कार्ड, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस व अन्य दस्तावेज पड़े हैं। जगजीत सिंह ने एक पासपोर्ट दिखाते हुए कहा कि यह कर्नाटक के किसी व्यक्ति का है, जिसे वह डाक से उसके घर पहुंचाएंगे। कुछ दिन पहले उन्होंने भारतीय सेना के अधिकारी का पहचान पत्र अमृतसर छावनी जाकर लौटाया था। पहचान पत्र खो जाने पर उसे सैन्य अधिकारियों ने सजा दे रखी थी। इससे वह काफी दुखी था। जब उनके घर में पहचान पत्र पहुंचा तो न केवल उनकी साख बहाल हुई, बल्कि डाक विभाग का उन्होंने धन्यवाद भी किया।

जगजीत सिंह कहते हैं कि जब उन्हें डाक में पर्स मिलता है तो उसमें से संपर्क नंबर खोजा जाता है, ताकि फोन पर जानकारी देकर सामान लौटाया जा सके। फोन नंबर पता न चलने पर बैरंग लिफाफे से सामान भेजा जाता है। कई बार संबंधित व्यक्ति बैरंग लिफाफा देखकर उसे वापस लौटा देते हैं। डाक विभाग में टिकट लगाकर लिफाफा भेजने का प्रावधान नहीं है। उन्हें तब काफी खुशी महसूस होती है, जब किसी का सामान वापस मिलता है तो वह कहता है..थैंक्स।

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