चीन की टेढ़ी चाल: द्विपक्षीय समझौते को नजरअंदाज कर नहीं दी बाढ़ की सूचना
सीमा पर चल रही तनातनी के बीच चीन ने एक बार फिर दूसरे तरीके से अपनी नापाक हरकत को अंजाम दिया है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। चीन ने क्या इस बार जान बूझ कर भारत की नदियों में छोड़े जाने वाले पानी के बारे में सूचना नहीं दी है? इस सवाल का जवाब वैसे तो चीन की सरकार ही बेहतर दे सकती है लेकिन भारत सरकार की तरफ से जो सूचनाएं आ रही हैं वे चीन की मंशा पर सवाल उठाती हैं।
जानकारी यह है कि चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ी सूचना साझा करने संबंधी नियमों को ताक पर रख कर इस साल कोई जानकारी भारत को नहीं दी है। दोनो देशों के बीच हुए समझौते के मुताबिक चीन को हर साल 15 मई से 15 अक्टूबर के बीच सतलज व ब्रह्मपुत्र नदियों में पानी की स्थिति के बारे में भारत को लगातार सूचना भेजनी होती है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार का कहना है कि ''मेरी जहां तक सूचना है चीन की तरफ से इस बार कोई सूचना नहीं दी गई है। इसके पीछे कोई तकनीकी वजह है या कोई और इसकी कोई जानकारी मुझे नहीं है।'' भारत और चीन के बीच वर्ष 2013 में एक समझौता हुआ था जिसके तहत चीन इस बात के लिए तैयार हुआ था कि वह ब्रह्मपुत्र नदी में पानी की स्थिति की लगातार जानकारी भारत को देगा। उसके पहले ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन की तरफ से एक बड़े डैम बनाने की सूचना पर भारत काफी चिंतित था।
उसे दूर करने के लिए ही चीन ने यह समझौता किया था। इसमें यह भी तय हुआ था कि बाढ़ की स्थिति के बारे में शीघ्रता से सूचना का आदान प्रदान किया जाएगा। इसके बाद वर्ष 2015 में दोनो देशों ने दूसरा समझौता किया। जिसे सूचनाओं के आदान प्रदान को और सरल बनाने की व्यवस्था की गई है। चीन की तरफ से तीन तरह की जानकारी भारत को वहां से आने वाली नदियों के जल स्तर, बारिश की स्थिति और कितना पानी छोड़ा गया है, इसकी जानकारी दी जाती रही है। केंद्रीय जल आयोग इसके आधार पर ही देश में बाढ़ की स्थिति का अनुमान जारी करता है।
सूत्रों के मुताबिक चूंकि इस बार सूचना नहीं मिली है तो हो सकता है कि इसका असर बाढ़ के बारे में अनुमान लगाने पर पड़ा हो। दोनो देशों के बीच एक विशेषज्ञ स्तरीय समिति भी बनाई गई है जिसे साझा नदियों से संबंधित सूचनाओं, इन पर लगने वाली ऊर्जा परियोजनाओं आदि की जानकारी एक दूसरे को देती है। लेकिन इस समिति की अंतिम बैठक अप्रैल, 2016 के बाद नहीं हुई है। भारत और चीन के बीच नदियों को लेकर विवाद काफी पुराना है।
खास तौर पर ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर दोनो देश एक दूसरे पर आरोप प्रात्यारोप लगाते रहे हैं। चीन की तरफ से पहले कई बार ब्रह्मपुत्र को लेकर भारत को धमकी भी दी गई है। एक बार चीन के एक विशेषज्ञ ने वहां जल की समस्या को समाप्त करने के लिए तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र की धारा को ही बदलने का खाका पेश किया था। वर्ष 2000 में असम मे आई भीषण बाढ़ के लिए चीन की तरफ से बहुत ज्यादा पानी ब्रह्मपुत्र में छोड़े जाने को असली वजह माना जाता है।
भारत और चीन के बीच वर्ष 2015 में समझौता हुआ तो यह माना गया कि आगे चल कर यह ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़े एक बड़े समझौते का आधार बनेगा जिसमें बांग्लादेश को भी शामिल किया जा सकता है। लेकिन अब साफ हो गया है कि चीन की मंशा भारत आने वाली नदियों को लेकर बहुत साफ नहीं है।
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