गोरखालैंड के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश में हैं ममता: गौरांग
बिमल गौरांग ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गोरखालैंड के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश में हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र: पश्चिम बंगाल की पुलिस द्वारा भगोड़ा घोषित किए जा चुके गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता बिमल गौरांग ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गोरखालैंड के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश में हैं। इसके चलते ही पुलिस ने उनके खिलाफ अनगिनत केस दर्ज कर रखे हैं। अपने वकील के माध्यम से उन्होंने अदालत से अपील की कि उनके खिलाफ दर्ज मामलों की जांच सीबीआइ या फिर एनआइए से कराई जाए। उन्हें डर है कि वह अगर आत्म समर्पण कर देंगे तो सरकार उन्हें जेल में डाल देगी। उन्हें सालों तक जेल में रहना होगा और इस दौरान आंदोलन पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अधूरी रही, जिसके चलते फैसला किया गया कि चार दिसंबर को मामले की फिर से सुनवाई की जाएगी। गौरांग के वकील पीएस पटवालिया ने जस्टिस एके सिकरी व अशोक भूषण की बेंच के समक्ष कहा कि गौरांग व उनके साथियों पर 104 मामले दर्ज किए गए हैं। कई लोगों को पुलिस ने मार भी गिराया है। उनका कहना था कि अगर वह सामने आते हैं तो उन्हें भय है कि उनका साथ पुलिस बुरा बर्ताव करेगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में बीस नवंबर को प. बंगाल पुलिस को आदेश दिया था कि वह गौरांग के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई न करे। पुलिस इस आदेश को स्थगित कराना चाहती है। पुलिस का मानना है कि इस आदेश के चलते उसे कार्रवाई करने में परेशानी आ रही है। आंदोलन कारियों के उग्र तेवरों के चलते एक युवा पुलिस अधिकारी को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है।
गोरखालैंड को लेकर चल रहे आंदोलन ने तूल तब पकड़ा था जब प. बंगाल सरकार ने सभी स्कूलों में बंगाली को अनिवार्य कर दिया था। उसके बाद से उग्र आंदोलन हुए और पुलिस के साथ कई झड़पें भी हुईं। गौरांग का कहना है कि वह एक वीडियो के जरिये यह साबित कर सकते हैं कि पुलिस ने उनके घर में एके 47 रायफल रखवाई थी। ऐसा करने के पीछे महज उन्हें फंसाना था। गौरांग ने यह भी कहा कि ममता उनकी पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने हाल ही में गौरांग को छह माह के लिए पार्टी से निलंबित किया है। उनकी जगह बिनय तमांग को अध्यक्ष बनाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आंदोलन अपनी जगह है, लेकिन कानून हाथ में लेने की अनुमति किसी भी व्यक्ति को नहीं दी जा सकती है।
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