बच्चों को नशे से बचाने के लिए बने राष्ट्रीय योजना : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को इससे बचाने के लिए सरकार को चार महीने में समग्र राष्ट्रीय योजना तैयार करने का निर्देश दिया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। स्कूली बच्चों में शराब और नशे की बढ़ती लत पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को इससे बचाने के लिए सरकार को चार महीने में समग्र राष्ट्रीय योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा कितने बच्चे नशे की चपेट में है और इस समस्या से कैसे निपटा जाए यह पता लगाने के लिए कोर्ट ने सरकार को छह महीने के भीतर सर्वे करने को भी कहा है।
ये निर्देश बुधवार को मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बच्चों के लिए काम करने वाले गैर सरकार संगठन बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जारी किये। यह संगठन नोबेल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का है।
कोर्ट ने स्कूली बच्चों में पनपती नशे की आदत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब वे नशे के आदी हो जाते हैं तो उन्हें नशीले पदार्थो के कारोबार में जाने के लिए उकसाया जाता है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह स्कूली बच्चों में बढ़ती शराब और नशे की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए चार महीने में समग्र राष्ट्रीय योजना तैयार करे। इसे तैयार करते समय सरकार एक ऐसा खाका तैयार करे जिसमें हर उम्र के बच्चे के लिए तैयार पाठ्यक्रम में नशीले पदार्थ, शराब और तंबाकू से दूर रखने के उपाय शामिल हों। नशा मुक्ति केंद्र स्थापित करने की बात हो।
'नशा हटाओ, पलायन रोको पहाड़ बचाओं' की आवाज हुई बुलंद
इस बारे में जुविनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधान लागू करने की प्रक्रिया दी गई हो और केन्द्रीय कैबिनेट से मंजूर नशीले पदार्थ के खिलाफ कार्ययोजना को लागू करना शामिल हो। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि नशा मुक्ति नीति का उद्देश्य पूरा होने के लिए जरूरी है कि इसके बारे में सही सही आंकड़े हों। बिना सही आंकड़ों के यह पता नहीं चलेगा कि कौन से क्षेत्र इसके ज्यादा प्रभावी हैं। इससे निबटने के लिए कितने प्रशिक्षित लोग चाहिये होंगे और इलाज, काउंसलिंग और पुनर्वास की कितनी जरूरत है।
कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह छह महीने में सर्वे करके आंकड़े एकत्र करे। कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा है कि वह नशे और नशीले पदाथरें के दुष्प्रभाव के प्रति जागरुकता लाने के लिए इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने पर भी विचार करे।
बचपन बचाओ आंदोलन ने सुप्री मकोर्ट मे अर्जी दाखिल कर बच्चों में शराब व नशीले पदाथरें की बढ़ती आदत रोकने के लिए सरकार को दिशा निर्देश जारी करने की मांग की थी। अर्जी में मांग की गई थी कि बच्चों में नशे की आदत रोकने के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की जाए जिसमें नशे के आदी बच्चों की पहचान, नशे के मामलों की जांच, बच्चों की काउंसलिंग और उनके पुनर्वास आदि सभी मुद्दों पर ध्यान दिया जाये।
नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जागरुक करने के लिए इसे स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये। प्रत्येक जिले में नशा मुक्ति केंद्र और पुनर्वास केंद्र स्थापित किये जाएं। स्कूलों में नशीले पदाथरें का कारोबार रोकने के लिए स्टैन्डर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर बनाया जाए। कितने बच्चे और युवा नशे की चपेट में हैं इसका पता लगाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे कराया जाये।
छापा मामले में साक्ष्य के बिना सुनवाई नहीं करेगा सुप्रीम कोर्ट