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National Sports Day 2019: मैदान में पदक नहीं, ‘रोटियां’ जीतती हैं ये चैंपियन बेटियां

National Sports Day 2019 आज राष्ट्रीय खेल दिवस है। खेल स्वास्थ्य के लिए अहम है इसलिए पीएम मोदी आज ‘फिट इंडिया कैंपेन’ का भी शुभारंभ करने जा रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 29 Aug 2019 09:48 AM (IST)Updated: Thu, 29 Aug 2019 03:58 PM (IST)
National Sports Day 2019: मैदान में पदक नहीं, ‘रोटियां’ जीतती हैं ये चैंपियन बेटियां
National Sports Day 2019: मैदान में पदक नहीं, ‘रोटियां’ जीतती हैं ये चैंपियन बेटियां

नई दिल्ली, जागरण न्यूज नेटवर्क। Fit India Movement कुछ खिलाड़ी सिर्फ पदक जीतने के लिए नहीं लड़ते, बल्कि जीवन की चुनौतियों को चित करना भी उनका लक्ष्य होता है। उनकी भिड़ंत भूख और गरीबी से होती है। दुनिया के इस सबसे कठिनतम प्रतिद्वंद्वी को चारों खाने चित करने की जिद उन्हें हर दिन चैंपियन साबित करती है और जीवन का यह असल खेल खेलते हुए जब वे मैदानी प्रतिद्वंद्वी के सामने उतरते हैं, तब जीत उन्हें झुककर सलाम ठोंकती है। जीतने की ऐसी जिद, चुनौतियों को चित करने का ऐसा माद्दा और इस स्तर की ‘फिटनेस’ अमेरिका, चीन और जापान के खिलाड़ियों में शायद ही होती हो।

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यही वजह है कि थोड़ा-सा प्रोत्साहन मिलते ही हिमा दास दुनिया को अचंभित कर देती हैं। छोटा-सा ढाबा चलाने वाले पिता की बेटी कोमलिका बारी, ऑटो ड्राइवर की बिटिया दीपिका कुमारी... हर लक्ष्य को भेद देती हैं। इसी दिशा में बढ़ रही हैं छत्तीसगढ़ के जगदलपुर की एथलीट सुभद्रा बघेल और बिहार के कैमूर की अनु गुप्ता। अभाव में भी खेल के प्रति इनका जुनून जिद की हद तक कायम है। बस इन्हें थोड़े सहयोग की जरूरत है।

पिता को यही ऑटो खरीदकर दिया है सुभद्रा (बाएं) नईदुनिया

इनाम की राशि से पिता को खरीदकर दिया ऑटो
जगदलपुर जिले के बकावंड प्रखंड की सुभद्रा जब मैदान में दौड़ती हैं तो सोना बरसता है। पदकों की झड़ी लग जाती है। वह अब तक साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार जीत चुकी हैं। सुभद्रा ने पुरस्कार की राशि से पिता को ऑटो खरीदकर दिया। इसी इनामी राशि की बदौलत उसके भाई-बहनों की पढ़ाई छूटने से बच गई। चार भाई-बहनों में सुभद्रा सबसे बड़ी हैं। पिता संपत बघेल के पास सिर्फ दो एकड़ की खेती है। ऐसे में पद्मश्री धर्मपाल सैनी की ओर से संचालित माता शबरी कन्या आश्रम उनके लिए सहारा बना।

जगदलपुर: शबरी कन्या आश्रम परिसर में अभ्यास करती हुईं आदिवासी बालिकाएं। नईदुनिया

उन्होंने सुभद्रा का वहां दाखिला करा दिया। बेटी प्रतिभाशाली थी और खेलों में रुचि थी। दौड़ का अभ्यास शुरू किया। वह जब कक्षा तीसरी में थी तो पहली बार जिला स्तर पर दो हजार रुपये का पुरस्कार जीता। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। घर की गरीबी वह जानती थी। वह जानती थी कि बहनों और भाई को पढ़ाना पिता के लिए आसान नहीं है। उसे लगा कि दौड़कर वह पिता की चिंता दूर कर सकती है। इसके बाद खूब मेहनत की और अब तक साढ़े तीन लाख रुपये का पुरस्कार जीत चुकी हैं। पिता संपत और मां कनकदेई को अपनी बेटी पर नाज है। वे कहते हैं, ‘सुभद्रा जो कर रही है, आज बेटे भी नहीं करते। छोटी बहन बसंती भी दीदी से प्रेरित होकर मैराथन का अभ्यास कर रही है। सुभद्रा फिलहाल बीए द्वितीय की छात्रा है।

कैमूर, बिहार निवासी बहनें अनु और प्रिया। जागरण

दंगल की इनामी राशि से डाइट का इंतजाम करतीं ‘दंगल गर्ल्स’
बिहार के कैमूर जिले के दुर्गापुर प्रखंड की रहने वालीं अनु गुप्ता और प्रिया गुप्ता राष्ट्रीय स्तर की कुश्ती खिलाड़ी हैं। दोनों बहनों को ‘बिहार की दंगल गर्ल्स’ भी कहते हैं, मगर गरीबी के कारण पर्याप्त डाइट (पोषक भोजन) तक नहीं मिल पाता है। पिता भगवानशाह बेरोजगार हैं। अनु आसपास के इलाकों में दंगल लड़ती हैं और इनामी राशि से जैसे-तैसे अपने और बहन के लिए डाइट का इंतजाम करती हैं। अनु कहती हैं, ‘कुश्ती खिलाड़ी को डाइट में दूध, अंडे, फल, सोयाबीन, काजू-बादाम जैसे पौष्टिक भोजन की जरूरत होती है, मगर यहां तो परिवार का पेट पालना मुश्किल है। किसी महीने दंगल जीतने पर हजार-डेढ़ हजार रुपये मिल जाते हैं, तो कभी-कभी दूध और फल मिल जाता है।’ घर की रोजी-रोटी चले, इसके लिए अनु गांव में ही ब्यूटी पार्लर भी चलाती हैं। साथ ही, बीए-पार्ट वन में पढ़ाई भी कर रही हैं।

ब्यूटी पार्लर चला कर चला रहीं परिवार की जीविका। जागरण 

अनु कहती है, ‘इंटर पास करने के बाद राज्य सरकार की ओर से आगे की पढ़ाई के लिए मिली 10 हजार रुपये की राशि से ही ब्यूटी पार्लर खोला है। हालांकि, ग्रामीण इलाका होने के कारण कम ही महिलाएं आती हैं।’ बकौल अनु, ‘गरीबी हमारे प्रदर्शन के आड़े आ रही है। हम बहनों को कुश्ती अभ्यास के लिए मैट तक की सुविधा नहीं है। गांव से थोड़ी दूरी पर बिछियां में आवासीय कुश्ती प्रशिक्षण केंद्र है, मगर वहां सिर्फ लड़कों को ही जाने की अनुमति है। इन चुनौतियों के बावजूद हमारा लक्ष्य बिहार और देश के लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मेडल जीतना है।’
(जगदलपुर से विनोद सिंह और भभुआ, कैमूर से दिलीप कुमार मिश्र की रिपोर्ट)

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