Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कौन थे RSS के संस्‍थापक केशव बलिराम हेडगेवार? जिन्हें कर्नाटक में पाठ्यक्रम से किया जा रहा अलग

    By Anurag GuptaEdited By: Anurag Gupta
    Updated: Fri, 16 Jun 2023 12:45 AM (IST)

    मौजूदा राजनीतिक दौर में हमेशा आरएसएस का जिक्र तो होता ही है। ऐसे में हम आपको बता दें कि जब जब आरएसएस का उल्लेख होगा उस वक्त हेडगेवार को याद किए जाएगा क्योंकि यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने ग्रैंड ओल्ड पार्टी को अलविदा कहा था।

    Hero Image
    RSS के संस्‍थापक केशव बलिराम हेडगेवार (फाइल फोटो)

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कर्नाटक की सिद्दरमैया सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार उर्फ डॉ के.बी. हेडगेवार से संबंधित सामग्री हटाने का निर्णय लिया है। इसी के साथ ही एक बार फिर से कांग्रेस बनाम आरएसएस विवाद ने जन्म ले लिया। ऐसे में आज हम जानेंगे कि आखिर के.बी. हेडगेवार कौन हैं? उन्होंने आरएसएस की स्थापना कैसे की थी? इत्यादि।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मौजूदा राजनीतिक दौर में हमेशा आरएसएस का जिक्र होता है। ऐसे में हम आपको बता दें कि जब जब आरएसएस का उल्लेख होगा उस वक्त हेडगेवार को याद किए जाएगा, क्योंकि यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने ग्रैंड ओल्ड पार्टी को अलविदा कहते हुए साल 1925 में 17 लोगों के साथ मिलकर राष्ट्रवाद की परिधि में आरएसएस नामक संगठन की स्थापना की थी।

    अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाले हेडगेवार बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे। ऐसे में उनकी चिट्ठी से जुड़ा हुआ एक किस्सा आपको बताएंगे... यह किस्सा उनके निधन के 14 रोज बाद का है। जब माधव सदाशिव गोलवलकर उर्फ गुरु गोलवलकर ने हेडगेवार के आदेशानुसार पत्र को पढ़ा था और चौंक गए थे।

    क्या है पूरा किस्सा?

    हेडगेवार का 21 जून, 1940 को नागपुर में निधन हुआ था। उन्होंने निधन से एक दिन पहले गुरु गोलवलकर को एक चिट्ठी सौंपी थी। यह चिट्ठी को डॉक्टर साहब के निधन के 14 दिन बाद खोली गई और इसने सभी के होश उड़ा दिए, क्योंकि इस चिट्ठी के जरिए हेडगेवार ने अपना उत्तराधिकारी चुना था। आसान भाषा में कहें तो डॉक्टर साहब ने अगले सरसंघचालक के नाम से पर्दा उठाया था।

    बंगाल से डॉक्टरी पढ़ने वाले हेडगेवार का उत्तराधिकारी अप्पाजी जोशी को समझा जा रहा था, लेकिन गुरु गोलवलकर का नाम किसी ने नहीं सोचा था। आखिरी चिट्ठी में हेडगेवार ने लिखा था, इससे पहले कि तुम मेरे शरीर को डॉक्‍टरों के हवाले करो, मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि अब से संगठन को चलाने की पूरी जिम्‍मेदारी तुम्‍हारी होगी। गुरु गोलवलकर ने यह चिट्ठी 3 जुलाई, 1940 को संघ के तमाम बड़े नेताओं के सामने पढ़ी।

    प्रारंभिक जीवन

    • डॉक्टर साहब का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।
    • बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के रहे डॉ. हेडगेवार अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करते थे। उन्होंने 10 साल की उम्र में ही रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की 50वीं जयंती पर बांटी गई मिठाई को फेंक दिया था और विदेशी राज्य की खुशियां मनाने से इनकार कर दिया था।
    • ऐसा ही एक किस्सा 16 वर्ष की उम्र से भी जुड़ा हुआ है। दरअसल, क्लास में अंग्रेजी निरीक्षक निगरानी के लिए स्कूल पहुंचा उस वक्त उन्होंने सहयोगियों के साथ मिलकर वंदे मातरम का नारा लगाया था। उनका यह हौसला देखकर अंग्रेज पिनक गया। जिसकी वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था।
    • डॉ. हेडगेवार ने पूना के नेशनल स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की थी।
    • डॉ. हेडगेवार ने 1910 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता का रुख किया था। उस वक्त वो क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे और वहां उन्होंने उनसे काफी कुछ सीखा।
    • मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर साहब 1915 में नागपुर लौट गए और ग्रैंड ओल्ड पार्टी 'कांग्रेस' में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।
    • 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में डॉ. हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता को लक्ष्य बनाने वाला प्रस्ताव रखा। हालांकि, वह प्रस्ताव पारित नहीं हुआ।
    • 1921 में डॉक्टर साहब ने असहयोग आंदोलन में भागीदारी निभाई थी और एक साल जेल की सजा काटी थी, लेकिन बाद में कांग्रेस और महात्मा गांधी से उनका मोहभंग हो गया था।
    • डॉक्टर साहब के जीवन में बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर उर्फ वीर सावरकर का गहरा प्रभाव रहा है।

    प्रेरणादायक बातें:

    • संघ का कार्य व्यक्तियों को जोड़ने का है, तोड़ने का नहीं।
    • अच्छे संस्कारों के बिना देशभक्ति की भावना पैदा नहीं होती।
    • हिंदू समाज को संगठित और जागृत करना ही राष्ट्र जागृति हैं और यह राष्ट्रहित में है।
    • भावनाओं में बहकर या आवेश में आकर कई लोग सामाजिक हितों के लिए खड़े हो जाते हैं, लेकिन मुश्किल वक्त में पीछे हट जाते हैं। ऐसे लोगों के साथ समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता।
    • राष्ट्र सेवा सर्वोपरि है।

    आरएसएस की स्थापना विजयादशमी के दिन 1925 में हुई थी। संघ के संस्थापक सदस्यों में विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी शामिल थे। हालांकि, संघ अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता है, बल्कि इसे विजयादशमी उत्सव के रूप में मनाया जाता है और उसमें शक्ति की उपासना की जाती है।