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PFI पर ऐसे ही नहीं कसा केंद्रीय जांच एजेंसियों का शिकंजा, इसके पीछे देश विरोधी घटनाओं की लंबी है फेहरिस्‍त

PFI यानि पापुलर फ्रंट आफ इंडिया बन तो गया था 2007 में ही लेकिन पहली बार इसकी संदिग्ध भूमिका सबके सामने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुए हिंसा के बाद आई। NIA ने PFI के खिलाफ इसी सप्ताह आपरेशन आक्टोपस को अंजाम दिया।

By Monika MinalEdited By: Published: Sat, 24 Sep 2022 11:55 PM (IST)Updated: Sun, 25 Sep 2022 07:13 AM (IST)
PFI पर ऐसे ही नहीं कसा केंद्रीय जांच एजेंसियों का शिकंजा

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान ही पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (PFI) पहली बार खुलकर सबके सामने आया था। 22 सितंबर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की छापेमारी में जब्त कागजातों से इसके विनाशक साजिश का पता चला है जो भारत को पूरी तरह बर्बाद करने का है। यह संगठन साल 2046 तक देश में शरीयत कानून लाने का मंसूबा लिए बैठी है।

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2017 में केरल पुलिस ने संगठन के खिलाफ मामला दर्ज किया था। दरअसल PFI के दो सदस्यों को तुर्की में गिरफ्तारी के बाद भारत प्रत्यर्पित किया गया था क्योंकि वे IS में शामिल होने के लिए सीरिया जाने के फिराक में थे। खुफिया एजेंसियों की मानें तो कन्नूर जिले से PFI के 40-50 सदस्य सीरिया जाकर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गए थे।

केरल में आए दिन मर्डर और दंगे के पीछे है PFI

SIMI (Students Islamic Movement of India) पर प्रतिबंध लगने के बाद PFI अस्तित्व में आया। PFI पर केरल में होने वाले कई मर्डर, दंगे आदि का आरोप है साथ ही इसके तार आतंकी संगठनों से जुड़े बताए जाते हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने PFI के खिलाफ इसी सप्ताह आपरेशन आक्टोपस को अंजाम दिया जिसके तहत देश भर में संगठन के कई ठिकानों पर छापेमारी की गई। जांच एजेंसी का कहना है कि इन कागजातों के अनुसार PFI देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त है। यह कई ऐसे ट्रेनिंग कैंप चला रही है जहां युवाओं को आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

बीते 15 सालों से उत्तर प्रदेश में आतंक फैला रहा PFI

उत्तर प्रदेश में PFI पर आरोप है कि यह पिछले 15 सालों से न केवल आतंक फैलाने की गतिविधियों में लिप्त है बल्कि युवकों को भी कट्टरपंथियों के साथ मिलकर उकसाने का काम कर रही है। टेरर फंडिंग से लेकर सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने तक में जुटी इस संगठन ने SIMI पर रोक लगने के बाद 2008 से अपना जाल बुनना शुरू कर दिया था। एजेंसियों की मानें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली, बिजनौर व मुजफ्फरनगर में इसने अपनी जिला कार्य समिति बनाई। पूर्वी उत्तर प्रदेश के लखनऊ व कानपुर में इसका कार्य समिति है। PFI के खतरनाक इरादों के बारे में जब पता चला तो 2019 में तत्कालीन DGP ओपी सिंह ने केंद्र सरकार से इसे प्रतिबंधित करने की मांग की थी।

2007 में हुआ था जन्म

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केरल में मजबूती से जड़ जमाने वाली पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (PFI) का गठन साल 2007 में हुआ था। दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों नेशनल  डेमोक्रेटिक फ्रंट (केरल), कर्नाटक फोरम फार डिग्निटी और तमिलनाडु में मनीता नीति पासाराय (Manitha Neethi Pasarai) के विलय के बाद इसका गठन हुआ। तमिलनाडु, कर्नाटक व केरल के तीन संगठनों को एकसाथ मिलाकर एक नए संगठन को बनाने का फैसला साल 2006 में केरल के कोझीकोड में हुई मीटिंग में लिया गया था। PFI के गठन का औपचारिक एलान बेंगलुरु की रैली में 2007 को किया गया था। 

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