गर्भवती होना वैकल्पिक च्वॉयस, आप छूट की नहीं है हकदार: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि महिला परीक्षार्थी गर्भवती होने की दलील देकर परीक्षा से छूट नहीं हासिल कर सकती हैं।
कोच्चि। गर्भवती होना या न होना एक वैकल्पिक च्वॉयस है। इसका परीक्षा से कोई संबंध नहीं है। आप गर्भवती होने की दलील देकर परीक्षा प्रक्रिया से छूट हासिल नहीं कर सकती हैं। इस फैसले के साथ ही केरल हाइकोर्ट के सिंगल जज की बेंच ने याची जास्मीन की याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, वर्ष 2010 में दिल्ली हाइकोर्ट ने ये फैसला दिया था कि अगर कोई महिला परीक्षार्थी गर्भवती है तो उसे छूट दी जा सकती है। दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा था कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो ये मातृत्व के साथ अपराध करने जैसा होगा।
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक कन्नूर विश्वविद्यालय की बीएड छात्रा जास्मीन को प्रशासन ने उपस्थिति कम होने की वजह से परीक्षा में शामिल नहीं होने की अनुमति दी थी। जास्मीन ने विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले के खिलाफ केरल हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी। दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल होने के लिए जास्मीन को 75 फीसद हाजिरी जरूरी थी लेकिन गर्भवती होने की वजह से उसकी हाजिरी महज 45 फीसद ही रही। जास्मीन ने गाइनेकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट का हवाला देते हुए परीक्षा में शामिल होने के लिए गुहार लगाई थी। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसकी अर्जी को ठुकरा दिया। जास्मीन के वकील ने दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले का हवाला दिया था।
1977 में भी हाइकोर्ट के दखल पर बदली थी मेरिट लिस्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने अनुच्छेद 41 और 42 का हवाला देते हुए आदेश दिया था कि महिला परीक्षार्थियों को गर्भवती होने के दौरान हाजिरी से छूट मिलनी चाहिए। ऐसा न होने पर ये एक अंसवैधानिक कदम के साथ-साथ महिला के नैसर्गिक अधिकारों का हनन होगा। लेकिन जास्मीन के वकील की दलील का जज पर असर नहीं हुआ। केरल हाइकोर्ट के जज विनोद चंदनन ने कहा कि इन दलीलों का कोई मतलब नहीं है। आप एक परीक्षा प्रणाली को अपनी शर्तों के हिसाब से चलाना चाहते हैं। जो किसी भी तरह से उचित नहीं है। जज ने कहा कि महिला परीक्षार्थियों को इस तरह की छूट देने से संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों का भी उल्लंघन होगा।