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Result Scam : 1977 में भी हाइकोर्ट की दखल पर बदली थी मेरिट लिस्ट

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की परीक्षा में कदाचार कराने, कॉपियों के मूल्यांकन में हेराफेरी और खाने-कमाने का धंधा वर्षो से चल रहा है। 1977 में भी समिति का चेहरा टॉपरों को लेकर दागी साबित हो चुका है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 07 Jun 2016 08:31 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jun 2016 06:41 PM (IST)

पटना [चन्द्रशेखर]। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की मेरिट लिस्ट में गड़बड़ी पर मची हायतौबा के बीच पुराने मामलों की चर्चा भी तेज हो गई है। 1977 में भी एेसा ही मामला सामने आया था जब बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने रिश्तेदार को टॉप कराने के लिए रिजल्ट में छेड़छा़ड़ करा दी थी। गड़बड़ी का मामला कोर्ट तक पहुंचा तो कॉपियों की पूरी जांच हुई। फिर टॉपर बदला गया।

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रिजल्ट में गड़बड़ी का यह मामला तब छठी रैंक पर रहे छात्र राजीव रंजन ने उठाया। इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी। हाइकोर्ट ने तब एक से सौ रैंक तक वालों की कॉपी दोबारा जांचने के आदेश दिए। इसके बाद एक से लेकर दसवें रैंक तक स्थिति बदल गई थी और राजीव रंजन को ही टॉपर घोषित किया गया।

1977 में टॉप-100 में रहने वाले छात्र डा.शैलेन्द्र ने बताया कि राजीव रंजन नेतरहाट के छात्र थे। वे नेतरहाट में शुरू से ही हर क्लास में टॉप करते थे। जब बोर्ड का रिजल्ट निकला तो उन्हें छठे स्थान पर कर दिया गया। राजीव को रिजल्ट देख हैरानी हुई। उन्होंने तत्काल उच्च न्यायालय में परीक्षा परिणाम को चुनौती दी। जब न्यायालय ने उनकी कॉपी देखी तो पता चला कि जान-बूझकर कॉपी के साथ छेड़छाड़ की गई है।

उस वक्त के टॉपर रहे राजीव रंजन ने बाद में साइंस कालेज में दाखिला लिया और इंटर के बाद उन्होंने आइआइटी की प्रवेश परीक्षा भी पास की परंतु वहां दाखिला नहीं लेकर साइंस कालेज से बीएससी की। वे आइआइएम की प्रतियोगी परीक्षा में भी सफल हुए।

राजीव रंजन ने बाद में सिविल सेवा की परीक्षा में भी बिहार का नाम रौशन कर टॉप टेन में स्थान बनाया। इस समय वे तमिलनाडु के अपर मुख्य सचिव सह हाइवे व पोर्ट विभाग के प्रधान सचिव हैं। डा.शैलेन्द्र ने बताया कि उस वक्त सभी दस विषय पर राउंड टेबल पर टॉप टेन रैंक वाले छात्रों के बीच डिबेट कराया जाता था।राजीव ने सभी विषयों का गोल्ड मेडल जीता था।


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