विशेष अदालत में विचाराधीन कैदियों से पूछताछ की अनुमति नहीं दे सकती मजिस्ट्रेट कोर्ट: कर्नाटक उच्च न्यायालय
कर्नाटक हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के उस आदेश को रद कर दिया है जिसमें उसने ईडी को विशेष अदालत के एक मामले में न्यायिक हिरासत में बंद पांच विचाराधीन कैदियों से पूछताछ करने की अनुमति दी थी।
बेंगलुरु, प्रेट्र: कर्नाटक हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के उस आदेश को रद कर दिया है जिसमें उसने ईडी को विशेष अदालत के एक मामले में न्यायिक हिरासत में बंद पांच विचाराधीन कैदियों से पूछताछ करने की अनुमति दी थी। मामला डिविजनल क्लर्क लिपिक हर्षा डी से जुड़ा है, जिसे इस साल के शुरुआत में पुलिस सब-इंस्पेक्टर भर्ती घोटाले में गिरफ्तार किया गया था।
मनी लांड्रिंग प्रिवेंशन एक्ट के तहत पूछताछ की मांग
हर्षा डी के खिलाफ पहला मामला कालाबुरागी के चौक पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। इसे बाद में सीआइडी को स्थानांतरित कर दिया गया था। इस मामले में दूसरा केस जुलाई 2022 में यहां हाई ग्राउंड्स पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। वह इस साल की शुरुआत में पहली गिरफ्तारी के बाद से हिरासत में है। अगस्त में ईडी ने मैजिस्ट्रेट कोर्ट में अर्जी दाखिल कर हर्षा और चार अन्य से मनी लांड्रिंग प्रिवेंशन एक्ट के तहत पूछताछ करने की इजाजत मांगी थी।
आदेश के खिलाफ खटखटाया हाई कोर्ट का दरवाजा
सितंबर में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी थी। इसे चुनौती देते हुए हर्ष ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वरिष्ठ वकील संदेश जे चौटा ने तर्क दिया कि चूंकि एक विशेष अदालत ने हर्ष को न्यायिक हिरासत में भेजा था। सिर्फ यह अदालत ही किसी जांच एजेंसी को उससे पूछताछ करने की अनुमति दे सकती थी। मजिस्ट्रेट कोर्ट के पास इसका अधिकार नहीं था। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा कि आवेदन ही मजिस्ट्रेट के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं था। मैजिस्ट्रेट कोर्ट के पास बयानों को रिकार्ड करने का निर्देश देने की शक्ति भी नहीं थी।
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