अपनों की कारगुजारी जेटली और अंबिका पर पड़ी भारी
नरेंद्र मोदी की देश भर में चली हवा के बीच उनके बेहद करीबी अरुण जेटली की हार ने भाजपा की जीत को कुछ फीका बना दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों जेटली को लाख वोट से हार मिली है। जेटली को प्रदेश के अकाली-भाजपा की शीर्ष टीम का पूरा साथ तो मिला मगर सात साल की प्रदेश सरकार की
जागरण ब्यूरो, चंडीगढ़। नरेंद्र मोदी की देश भर में चली हवा के बीच उनके बेहद करीबी अरुण जेटली की हार ने भाजपा की जीत को कुछ फीका बना दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों जेटली को लाख वोट से हार मिली है। जेटली को प्रदेश के अकाली-भाजपा की शीर्ष टीम का पूरा साथ तो मिला मगर सात साल की प्रदेश सरकार की एंटी इन्कम्बेंसी केंद्र की दस साल की एंटी इन्कम्बेंसी पर भारी पड़ी।
अमृतसर के चुनाव नतीजे ने साफ कर दिया है कि अमृतसर के शहरी वोटर ने भाजपा को पूरी तरह नकार दिया। शहर के पांचों हलकों में जेटली पिछड़े जबकि कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के विधानसभा क्षेत्र मजीठा में अमरिंदर सिंह 20686 वोट से पिछड़े। यहां तक कि साथ लगते कांग्रेस विधायक सुखबिंदर सिंह सरकारिया के हलके राजासांसी में भी कैप्टन अमरिंदर 11000 वोट से पीछे रहे। शहर के पांच हलकों में अमरिंदर ने जो बढ़त ली थी वह इतनी थी कि गांवों की कमी उसे नहीं खली।
अकाली दल अमृतसर दक्षिण से विधायक व सीपीएस इंद्रबीर बुलारिया के हलके में जेटली 22000 वोट से पीछे रहे। अटारी में भी गठबंधन पिछड़ा। भाजपा, खासकर उसके मंत्रियों की कारगुजारी से शहरी लोग नाखुश थे और उन्होंने इस नाराजगी को जेटली पर उतारा। जेटली की इस हार के बाद कैबिनेट मंत्री अनिल जोशी ने भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने का ऐलान किया है। जोशी को पहले ही यह आभास था कि उनके हलके में सब ठीकठाक नहीं है। उनके हलके में हुई जेटली की चुनावी सभाओं में भी कम हाजिरी से साफ था कि यह हलका उनके हाथ से निकल चुका है। यहां पूरे पंजाब की तरह रेत-बजरी एक बड़ा मुद्दा था और यह महकमा जोशी के पास ही है।
जेटली की हार में केवल भाजपा ही नहीं बल्कि अकाली दल भी बराबर शरीक रहा। सरकार में मुख्य भागीदार अकाली दल ही है और सरकार के फैसलों से जनता की नाराजगी इस चुनाव में सामने आ गई। रेत-बजरी, नशे और टैक्सों के मुद्दे पर लोग अकाली दल से भी नाराज थे। इसके अलावा नवजोत सिद्धू के साथ जोशी के रवैये से भी शहर खफा था। सिद्धू ने चुनाव प्रचार से दूर रह कर जेटली की मुश्किल और बढ़ाई थी।
कांग्रेस के चार दिग्गजों की हार
इस लोकसभा चुनाव में कई बड़े नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा है। इनमें एक खास हैं मनप्रीत सिंह बादल। इस बार उन्होंने ऐन चुनाव के मौके पर पीपीपी छोड़ कांग्रेस का दामन थामा मगर बठिंडा लोकसभा हलके से उन्हें फिर हार झेलनी पड़ी।
मनप्रीत के अलावा कांग्रेस के चारों दिग्गजों को हार देखनी पड़ी है। इनमें सबसे बड़ी हार रही प्रदेश प्रधान प्रताप सिंह बाजवा की जो 136065 वोट से हारे। कांग्रेस की ही अंबिका सोनी 23697, सुनील जाखड़ 31420 और परनीत कौर 20942 वोट से हारे।
अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढसा ने इस बार हार का नया रिकार्ड बनाया जो संगरूर में 211721 के सूबे में सबसे बड़े अंतर से हारे। अकाली दल की ही सांसद परमजीत कौर गुलशन को 172516 जैसे बड़े अंतर से हार मिली। लाख वोट के अंतर से ज्यादा की हार खडूर साहिब में कांग्रेस के हरमिंदर सिंह गिल की हुई जो यह सीट 100569 वोट से हारे।
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