Jagran Trending | Biodiversity crisis | जैव विविधता पर अपार संकट, चेत जाओ वरना रहने लायक नहीं रहेगी ये धरती
International Day for Biological Diversity औद्योगीकरण अनियोजित विकास जैविक दबाव मनुष्य की बढ़ती लिप्सा ने प्राकृतिक संपदा के विवेकहीन शोषण से मूक वन्य प्राणियों के आवास स्थलों को क्षति पहुंचाकर पर्यावरण असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर हमारी अमूल्य जैव विविधता के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। International Day for Biological Diversity : इंसान ने प्रकृति से खिलवाड़ कर खुद पर और इस धरती पर रहने वाले असख्ंय जीव जंतुओं के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इसका असर जैव विविधता पर पड़ रहा है। वन्यजीवों की आबादी में गिरावट का सीधा अर्थ ये है कि हमारी धरती हमें चेतावनी दे रही है कि हमारा तंत्र पूरी तरह से फेल हो रहा है। समुद्रों और नदियों की मछलियों से लेकर, मधुमक्खियों तक जो हमारी कृषि फसलों के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं, वह अब नष्ट हो रही हैं। वन्यजीवों में कमी होना सीधे मानव के पोषण, खाद्यान्न सुरक्षा और करोड़ों लोगों की आजीविका पर प्रभाव डालता है। औद्योगीकरण, अनियोजित विकास, जैविक दबाव, मनुष्य की बढ़ती लिप्सा ने प्राकृतिक संपदा के विवेकहीन शोषण से मूक वन्य प्राणियों के आवास स्थलों को क्षति पहुंचाकर पर्यावरण असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर हमारी अमूल्य जैव विविधता के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। आइए इस कड़ी में जानते हैं कि इसका सीधा असर मानव जाति पर कैसे पड़ रहा है। इसके दीर्घकालिक परिणाम क्या होंगे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
1- पर्यावरणविद विजयपाल बघेल का कहना है कि बीते पांच दशकों में हुई विकास की अंधी दौड़ में जैव विविधता को सबसे अधिक क्षति पहुंची है। इसके चलते पशु पक्षियों की कई प्रजातियां या तो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि दस में से सात जैव विविधता की प्रजातियां करीब-करीब खत्म हो चुकी हैं। ताजे पानी में रहने वाली करीब 84 फीसद प्रजातियों में कमी आई है। भारत में 12 फीसद स्तनधारी जीव और तीन फीसद पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं, जबकि 19 फीसद उभयचर या जलथलचर वाले जीव खतरे में हैं। उन्होंने कहा कि धरती पर रहने वाले जीव जंतुओं की करीब 68 फीसद प्रजातियां नष्ट हो गई हैं। इनमें हवा, पानी और जमीन पर रहने वाले सभी छोटे और बड़े जीव शामिल हैं।
2- पर्यावरणविद बघेल के अनुसार दक्षिण अमेरिका और केरेबियन में करीब 94 फीसद से अधिक जैव विविधता में कमी आई है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में करीब 45 फीसद तक इसमें गिरावट दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि ताजे पानी में रहने वाली तीन प्रजातियों में से एक विलुप्त होने की कगार पर है। भारत के संदर्भ में भी ये स्थिति विकट है। देश में वर्ष 2030 तक पानी की मांग आपूर्ति के हिसाब से दोगुनी होगी। हालात काफी खराब हैं। 20 में से 14 नदियों के तट सिकुड़ रहे हैं। उनके मुताबिक भारत के एक तिहाई नम भूमि वाले क्षेत्र बीते चार दशकों के दौरान खत्म हो चुके हैं। चक्रवाती तूफानों की वजह से दक्षिणी अरब प्रायद्वीप में जबरदस्त बारिश देखने को मिल रही है। ये बाद में टिड्डी दलों के प्रजनन स्थल बनते हैं। गर्मियों में जबरदस्त लू के चलते और भारत, पाकिस्तान के कुछ इलाकों को सूखे की मार झेलनी पड़ रही है।
3- उन्होंने कहा कि जैव विविधता के खत्म होने का असर तापमान पर भी पड़ रहा है। मानव बस्ती और विकास के चलते जंगल साफ हो रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं। जैव विविधता घटने के कारण पृथ्वी लगातार गर्म हो रही है। धरती का तापमान बढ़ने के कारण ही अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड समेत कनाडा के ग्लेशियरों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इन ग्लशियरों के पिघलने से समुद्रों का जलस्तर बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस सदी के अंत तक इन ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्रों के जलस्तर में दो सेंटीमीटर की वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि औद्योगिक प्रदूषण के कारण इस शताब्दी के अंत तक धरती का तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इससे भीषण गर्मी के साथ ही वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन में भारी गिरावट और समुद्र का जल स्तर बढ़ने से करोड़ों लोग प्रभावित होंगे। तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को हर कीमत पर रोकना होगा।
4- उन्होंने कहा कि मानवीय विकास के रास्ते में यह सबसे बड़ी चुनौती है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण तापमान में वृद्धि के लिए घटती जैव विविधता के लिए पूरी तरह से मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से बांग्लादेश, मिस्न, वियतनाम और अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रों में खाद्यान्न उत्पादन को तगड़ा झटका लगेगा, जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों में सूखा कृषि उपज के लिए भारी तबाही मचाएगा। इससे दुनिया में कुपोषण के मामलों में वृद्धि होगी। इसके साथ ही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तूफान और चक्रवातों का प्रकोप बढ़ेगा।