UN की एक रिपोर्ट से दुखी होकर पीएम ने की थी 'स्वच्छ भारत मिशन' की शुरुआत
1954 से ही भारत सरकार गांवों में स्वच्छता के लिए कोई न कोई कार्यक्रम चलाती रही है। इस दिशा में ठोस कदम 1999 में सरकार ने उठाया था।
डॉ. नीलम महेंद्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को तीन साल पूरे हो गए हैं। स्वच्छ भारत अभियान के दो हिस्से हैं, एक सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर साफ सफाई तथा दूसरा गांवों को खुले में शौच से मुक्त करना। स्वच्छता का यह अभियान इन 70 सालों में भारत सरकार का देश में सफाई और उसे खुले में शौच से मुक्त करने का कोई पहला कदम हो ऐसा भी नहीं है। 1954 से ही भारत सरकार गांवों में स्वच्छता के लिए कोई न कोई कार्यक्रम चलाती रही है। इस दिशा में ठोस कदम 1999 में सरकार ने उठाया था। तब खुले में मल त्याग को पूरी तरह समाप्त करने के उद्देश्य से ‘निर्मल भारत अभियान’ की शुरुआत की गई, जिसका नाम ‘संपूर्ण स्वच्छता अभियान’ रखा गया था।
इस सबके बावजूद 2014 में आई यूएन की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की करीब 60 फीसद आबादी खुले में शौच करती है और इसी रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की। सवाल है कि गांव तो छोड़िये क्या शहरों की झुग्गी झोपड़ियां भी खुले में शौच से मुक्त हो पाएंगी? एक तरफ हम स्मार्ट सिटी बनाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ महानगर में रहने वाले लोग तक कचरे की बदबू और गंदगी से फैलने वाली मौसमी बीमारियों जैसे डेंगू चिकनगुनिया आदि को ङोलने के लिए मजबूर हैं।1हाल ही में दिल्ली के गाजीपुर में कचरे के पहाड़ का एक हिस्सा धंस जाने से दो लोगों की मौत हो गई। दरअसल स्वच्छ भारत, जो कि कल तक गांधी जी का सपना था, आज वह मोदी का सपना बन गया है, लेकिन इसे इस देश का दुर्भाग्य कहा जाए या फिर अज्ञानता कि 70 सालों में हम मंगल ग्रह पर पहुंच गए,परमाणु ऊर्जा संयंत्र बना लिए,हर हाथ में मोबाइल फोन पकड़ा दिए लेकिन हर घर में शौचालय बनाने के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं?
किसी बुरे सपने से कम नहीं देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह वक्त
गांधी जी ने 1916 में पहली बार अपने भाषण में भारत में स्वच्छता का विषय उठाया था और 2014 में प्रधानमंत्री इस मुद्दे को उठा रहे हैं। स्वच्छता 21वीं सदी के आजाद भारत में एक ‘मुद्दा’ है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन 2019 में भी अगर यह एक मुद्दा रहा, तो अधिक दुर्भाग्यपूर्ण होगा। देश को स्वच्छ करने का सरकार का यह कदम वैसे तो सराहनीय है, लेकिन इसको लागू करने में शायद थोड़ी जल्दबाजी की गई और तैयारी भी अधूरी रही। अगर हम चाहते हैं कि निर्मल भारत और स्वच्छता के लिए चलाए गए बाकी अभियानों की तरह यह भी एक असफल योजना न सिद्ध हो तो जमीनी स्तर पर ठोस उपाय करने होंगे।
Amazing! हमारी सोच से कहीं आगे की है ये बात, शायद ही होगा आपको विश्वास
सबसे पहले तो भारत एक ऐसा विशाल देश है, जहां ग्रामीण जनसंख्या अधिक है और जो शहरी पढ़ी लिखी कथित सभ्य जनसंख्या है, उसमें भी सिविक सेन्स का आभाव है। उस देश में एक ऐसे अभियान की शुरुआत जिसकी सफलता जनभागीदारी के बिना असंभव हो, बिना जनजागरण के करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी युद्ध को केवल इसलिए हार जाना क्योंकि हमने अपने सैनिकों को प्रशिक्षण नहीं दिया था। इस देश का हर नागरिक एक योद्धा है उसे प्रशिक्षण तो दीजिए। और सबसे महत्वपूर्ण बात, अगर आपको पेड़ काटने के लिए आठ घंटे दिए गए हैं तो छ घंटे आरी की धार तेज करने में लगाएं।
सिर्फ कागजों तक ही सिमटे हैं देश में बने नियम-कानून, जबकि हकीकत है कुछ और
इसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है देश के नागरिकों को चाहे गांव के हों या शहरों के, उन्हें सफाई के प्रति उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक करना होगा क्योंकि जब तक वे जागरूक नहीं होंगे, हमारे निगम के कर्मचारी भले ही सड़कों पर झाड़ू लगाकर और कूड़ा उठाकर उसे साफ करते रहें, लेकिन हम नागरिकों के रूप में यहां वहां कचरा डालकर उन्हें गंदा करते ही रहेंगे। इसलिए जिस प्रकार कुछ वर्ष पूर्व युद्ध स्तर पर पूरे देश में साक्षरता अभियान चलाया गया था, उसी तरह युद्ध स्तर पर पहले स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।