किसी बुरे सपने से कम नहीं देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह वक्त
देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह वक्त किसी बुरे सपने से कम नहीं। अर्थव्यवस्था को मुश्किल की भंवर से निकालने के लिए प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री पूरा जोर लगा रहे हैं।
अमित कुमार सिंह
देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह वक्त किसी बुरे सपने से कम नहीं। अर्थव्यवस्था को मुश्किल की भंवर से निकालने के लिए प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री पूरा जोर लगा रहे हैं, लेकिन नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं निकल रहे हैं। वैश्विक एजेंसियां भी अभी भारत को लेकर उतनी उत्साहित नहीं दिख रही हैं। तमाम मुश्किलों के बीच वित्त अरुण जेटली ने अर्थव्यवस्था की सेहत दुरुस्त करने के लिए बेलआउट पैकेज की बात कह उम्मीद जगा दी है। सवाल है कि ये सब कहीं सिक्के का सिर्फ एक पहलू तो नहीं? क्या वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के सलाहकारों को इन चीजों की आशंका पहले नहीं थी?
बहरहाल इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए अतीत के कुछ पन्ने पलटने होंगे। जरा 2008 के वित्तीय संकट को याद कीजिए जब लीमन ब्रदर्स जैसी दिग्गज अमेरिकी वित्तीय फर्म मंदी के अंधड़ में भरभरा कर ढह गई थी जिसे पूंजीवाद के सशक्त प्रतीक के तौर पर भी देखा जाता था। उसे खुद को दीवालिया घोषित करना पड़ा। क्या भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत उस वक्त से भी ज्यादा खराब है। आपको याद दिला दूं कि भारतीय दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल था जिसने 2008 की आर्थिक मंदी का न सिर्फ जमकर सामना किया, बल्कि उसे मात देने में कामयाब रहा।
अब जब अर्थव्यवस्था उस सुनामी से बचने में सफल रही थी तो इन हल्के-फुल्के झटकों से उबरने में उसे ज्यादा मुश्किल नहीं आनी चाहिए। सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी लागू करने जैसे कड़े कदम उठाए तो उनके पीछे मंशा अर्थव्यवस्था की सेहत को और बेहतर करना था, लेकिन एक नए सिस्टम को अपनाने और उससे ताल मिलाने में कुछ समय तो लगेगा। सच्चाई यही है कि अभी हालात उतने भी खराब नहीं हैं जितना हौवा खड़ा किया जा रहा है। जीएसटी अपनाने वाला भारत इकलौता देश नहीं है। हां नोटबंदी जरूर आनन-फानन में की गई। असल में इन दोनों कड़वी दवाओं का असर अर्थव्यवस्था की सेहत पर कुछ समय बाद ही नजर आएगा।
डांवाडोल स्थिति के बीच एक अच्छी खबर भी है। मॉर्गन स्टैनली ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आने वाले10 सालों में भारत की अर्थव्यवस्था 6 खरब डॉलर होने की उम्मीद है जो कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी जिसमें सबसे अहम योगदान डिजिटाइजेशन का होगा। मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक, भारत का डिजिटाइजेशन अभियान आने वाले दशक में जीडीपी की विकास दर को 50 से 75 आधार अंकों तक बढ़ाएगा। रिपोर्ट में कुछ और अहम बातों का जिक्र भी किया गया है जो ये साबित करती हैं कि जीएसटी लागू करने का फैसला सही है। आने वाले दशक में भारत की वास्तविक और सांकेतिक जीडीपी की सालाना विकास दर क्रमश: 7.1 फीसद और 11.2 फीसद हो जाएगी। इसी के साथ 2027 तक भारत 1.8 खरब डॉलर की बाजार पूंजी के साथ सूचीबद्ध वित्तीय सेवा क्षेत्र में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश होगा।
अगले 10 सालों में भारत का उपभोक्ता आधार भी बढ़कर करीब 1.5 खरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है। भारतीय अर्थव्यवस्था को सुस्ती से बाहर निकालने के लिए सरकार के पास खर्च बढ़ाने का विकल्प मौजूद है, लेकिन इससे राजकोषीय घाटे को सीमित करने का लक्ष्य पीछे छूट सकता है। अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में ढील दी जा सकती है और इसमें कोई नुकसान नहीं है। सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाने के संकेत भी दिए हैं जिसके तहत तकरीबन 50,000 करोड़ रुपये लगा जाएंगे। निश्चित रूप से इससे राजकोषीय घाटे को जीडीपी के तीन फीसद के दायरे में लाने का लक्ष्य प्रभावित होगा, लेकिन मौजूदा हालात को मद्देनजर रखते हुए घाटे के लक्ष्य के साथ कुछ छूट ली जा सकती है। साथ ही, सरकार बेजा खर्च में हरसंभव कटौती कर करे।
(लेखक बिग एफ से जुड़े हैं और आर्थिक मामलों के जानकार हैं)