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कांग्रेस में राहुल युग की शुरुआत, चुनौतियां भी नहीं हैं कम

राहुल गांधी को आखिरकार निर्विरोध कांग्रेस पार्टी का अध्‍यक्ष चुन लिया गया है। गुजरात विधानसभा चुनाव के बीच में मिलने वाली यह जिम्‍मेदारी उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होने वाली है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 11 Dec 2017 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 12 Dec 2017 10:20 AM (IST)
कांग्रेस में राहुल युग की शुरुआत, चुनौतियां भी नहीं हैं कम
कांग्रेस में राहुल युग की शुरुआत, चुनौतियां भी नहीं हैं कम

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। राहुल गांधी को आखिरकार निर्विरोध कांग्रेस पार्टी का अध्‍यक्ष चुन लिया गया है। गुजरात विधानसभा चुनाव के बीच में मिलने वाली यह जिम्‍मेदारी उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होने वाली है। गुजरात चुनाव इसकी पहली कड़ी है। इसके साथ उन्‍हें पार्टी की कमान सौंपने की लंबे समय से चली आ रही मांग भी अब पूरी हो गई है। राहुल गांधी को अध्‍यक्ष पद पर बिठाना पहले ही औपचारिकता भर था। इसके बाद 4 दिसंबर को जब नामांकन का समय आया तब भी उनके सामने कोई प्रतिद्वंदी नहीं था। तभी यह साफ हो गया था उन्‍हें निर्विरोध ही चुना जाएगा। लेकिन, अब जबकि उन्‍हें पार्टी का अध्‍यक्ष निर्वाचित कर दिया गया है तो सबसे बड़ी बात ये है कि राहुल गांधी को प्रेसिडेंट बनाने में आखिर इतनी देरी क्यों हुई और राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान देने के बाद उनके सामने वो कौन-कौन सी चुनौतियां सामने होंगी जिससे राहुल को दो-चार होना पड़ेगा? आइये जानने का प्रयास करते हैं।

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प्रेसिडेंट के बाद राहुल की चुनौतियां

पार्टी की तरफ से कई बार राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद बनाने की असफल कोशिशों के बाद आखिरकार राहुल गांधी पार्टी की कमान संभालने जा रहे हैं। पार्टी में शीर्ष पद की अहम जिम्मेदारी के बाद राहुल गांधी के पास अपने आपको साबित करने का बेहतर मौका होगा। आइये बताते हैं वो कौन सी बातें है जो राहुल गांधी की नई भूमिका में उनके लिए मददगार साबित होंगी।

नए नेताओं को मौका देना

हाल के दिनों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने जो कहा उससे यह जाहिर होता है कि कांग्रेस बदल रही है। पार्टी अध्यक्ष के चुनाव पर बोलते हुए अय्यर ने कहा था- ‘मैं ऐसा मानता हूं कि कांग्रेस में सिर्फ दो लोग ही अध्यक्ष बन सकते हैं- मां या बेटा।’ मणिशंकर अय्यर के इस कठोर बयान के बाद ये बात बिल्कुल साफ है कि गांधी परिवार के पुराने वफादारों को आनेवाले दिनों में कुछ खास अहमियत नहीं दी जाएगी। राहुल गांधी अब कांग्रेस के पुराने वफादारों की जगह नए नेताओं पर विश्वास कर रहे हैं। सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिधिंया का पार्टी में कद बढ़ना इसी बात का संकेत है कि सोनिया के विश्वासपात्र रहे लोगों को बहुत ज्यादा तवज्जो वे नहीं देने जा रहे हैं।

कांग्रेस के पुराने नेता पारंपरिक मतदाताओं के अंकगणित से ऊपर की नहीं सोच पा रहे हैं जबकि भारत दिनों दिन काफी परिवर्तन कर रहा है। ऐसे में नए सलाहकारों के समूह से राहुल गांधी को नई पीढ़ी से जुड़ने में मदद मिलेगी और एक नयी रिवायत शुरु होगी जिसकी उन्हें अभी सख्त जरुरत है। जाहिर तौर पर कांग्रेस के पुराने वफादार जिनमें कई जमीन से जुड़े नेता हैं उनकी जगह राहुल के नए सलाहकारों के आने से राहुल की चुनौतियां और बढ़ जाएगी क्योंकि उनमें से कई लोग ऐसे होंगे जिनका कोई जनाधार नहीं होगा। लेकिन, केवल नई सोच के साथ नए नेताओं की बदौलत कांग्रेस को बदला जा सकता है।

नए अवतार में वोटरों को खींचने की चुनौती

देर से ही सही लेकिन राहुल गांधी राहुल गांधी सोशल मीडिया में एक आक्रामक और महत्वाकांक्षी नेताओं के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है जो उनके पुराने और अड़ियल राजनेता से पूरी तरह अलग है। राहुल की तरफ से जीएसटी को गब्बर सिंह कहने पर लोगों में उस पर काफी चर्चा हुई थी। उन्होंने अपने भाषणों में आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल कर आम लोगों से जुड़ने की कोशिशें की। राहुल अपने नए अवतार से नए लोगों को अपनी ओर खींचा है लेकिन उन्हें इस बारे में अभी बहुत कुछ करने की जरुरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार कांग्रेस की वर्षों पुरानी धार्मिक और जातिगत समीकरण पर चोट करते आए हैं। कांग्रेस को ऐसी बहुत कम उम्मीद है कि वह सुरक्षित इस पुरानी काल दोष-युक्त नीति से बाहर निकल पाएगी।

प्रभावशाली भाषण की शैली में बदलाव की जरुरत

राहुल गांधी लगातार पीएम मोदी पर जोरदार हमला कर रहे हैं और पहली बार उसका कुछ असर भी देखा जा रहा है। लेकिन, उन्हें नई रणनीति के साथ सामने आना होगा। राहुल का गुजरात के चुनावी कैंपेन के दौरान वहां के मंदिरों में जाना और आर्थिक मुद्दों को उठाना कांग्रेस की पुरानी नीति के बदलने का संकेत है जहां वो पहले सिर्फ अल्पसंख्यक और दलित वोटबैंक पर ही विश्वास करती थी। तो वहीं अब भी लोगों के बीच अपने विज़न को बताने में नाकाम साबित हो रहे हैं। उन्हें इस बात को जनता के सामने साफ करने की जरूरत है कि वो आर्थिक मोर्चे पर क्या करना चाहते हैं और मोदी सरकार जो कर रही है उससे वह कैसे बेहतर है।

नेहरु-गांधी विरासत की छवि से बाहर निकलना

अक्सर राहुल को लेकर लोगों में यह भावना है कि वे अपने दादा जवाहर लाल नेहरु की राजनीतिक विरासत को ढो रहे हैं। राहुल गांधी समाजवाद की विचारधारा को ढो रहे हैं जिसमें आज भारतीय जनता की कोई रुचि नहीं है। पीएम मोदी गरीब और महत्वाकांक्षी लोगों तक अपनी बातों को आसानी से पहुंचाने में महारत हासिल है। जबकि, राहुल गांधी को विरासत में मिली राजनीति की छवि को तोड़ना होगा। अगर वह उसमें परिवर्तन करना चाहते हैं तो ये चीज उन्हें आम लोगों के बीच अपने भाषण में दिखानी होगी अपने अतीत को दफन करना होगा।

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