Move to Jagran APP

अब भारत भी होगा मलेरिया मुक्त, इस बड़े समूह ने उठाया बीड़ा

मलेरिया प्लाज्मोडियम नाम के पैरासाइट से होने वाली बीमारी है। यह मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है। भारत को मलेरिया मुक्त बनाने का बीड़ा इस समूह ने उठाया है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 18 Nov 2017 03:11 PM (IST)Updated: Sat, 18 Nov 2017 05:22 PM (IST)
अब भारत भी होगा मलेरिया मुक्त, इस बड़े समूह ने उठाया बीड़ा

जमशेदपुर, [सुधीर पांडेय]। आगामी कुछ वर्षों में भारत से मलेरिया का नामोनिशान मिट सकता है। नई जीन एडिटिंग तकनीक का प्रयोग कर मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों का डीएनए ही बदल दिया जाएगा। यह उम्मीद जगाई है टाटा ट्रस्ट ने। सामाजिक सरोकारों पर काम करने वाली टाटा समूह की यह संस्था इस उद्देश्य से एक बड़ा प्रॉजेक्ट शुरू करने जा रही है। प्रोजेक्ट सफल हुआ तो मच्छर जनित इस रोग का जड़ से उन्मूलन संभव हो जाएगा।

loksabha election banner

टाटा ट्रस्ट अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के साथ मिलकर काम कर रहा है। वहां टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स एंड सोसाइटी की स्थापना की गई है। भारत में भी इस तरह के इंस्टीट्यूट की स्थापना की जानी है। वहीं, बेंगलुरु में इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेम सेल बायोलॉजी एंड रिजेनरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) भी स्थापित किया जाएगा। इस पर अगले पांच वर्षों में 7 करोड़ डॉलर (करीब 458 करोड़ रुपये) का निवेश किया जाएगा।

संस्था के चेयरमैन रतन टाटा, मैनेजिंग ट्रस्टी आर वेंकटरामनन और इनोवेशन हेड मनोज कुमार इंस्टीट्यूट के ट्रस्टी होंगे। बेंगलुरु में यह अगले साल शुरू होगा। बता दें कि भारत में मच्छरजनित कई बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। मलेरिया पहले से तांडव मचा रहा था। बाद में डेंगू, चिकनगुनिया और जीका वायरस भी यहां दस्तक दे चुके हैं। ये बीमारियां जानलेवा साबित हो रही हैं।

टाटा ट्रस्ट्स के एक प्रतिनिधि ने बताया कि वर्ल्ड  मलेरिया रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में मलेरिया के मामलों में भारत की हिस्सेदारी 6 फीसद है। 2016 में देश में मलेरिया के लगभग 10.6 लाख मामले सामने आए थे। वर्ष 2017 में यह आंकड़ा और बढ़ेगा। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2030 तक देश को मलेरिया मुक्त बनाने का लक्ष्य तय किया है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रारंभिक शोध में यह पता चला है कि भारत में बड़े स्तर पर मौजूद मच्छर एनोफिलिस स्टेफेंसी का जेनेटिक्स बदलकर प्लासमोडियम फैल्सिपैरम नाम के पैरासाइट को रोका जा सकता है, जिसे मच्छर फैलाते हैं।

टाटा ट्रस्ट्स की ओर से बताया गया कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स एंड सोसाइटी के रिसर्चर मलेरिया की बीमारी को रोकने के लिए मॉस्किटो स्ट्रेन विकसित करने पर काम कर रहे हैं। इसके लिए वेक्टर एलिमिनेशन की जगह वेक्टर रिप्लेसमेंट का इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि योजना अभी शुरुआती चरण में है। इसे धरातल पर उतरने में अभी समय लगेगा।

जल्द होगी वैज्ञानिकों की नियुक्ति

टाटा ट्रस्ट्स इस प्रॉजेक्ट पर काम करने के लिए जल्द ही वैज्ञानिकों की नियुक्ति शुरू करेगा। यह दो-तीन वर्षों में 40-50 वैज्ञानिकों को नियुक्त कर सकता है। एक अधिकारी ने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती सही मानव संसाधन (वैज्ञानिक) को हासिल करने की है। जेनेटिक साइंटिस्ट को भारत में चुनकर ट्रेनिंग के लिए अमेरिका भेजा जा रहा है।


गणेश नीलम, जोनल मैनेजर, टाटा ट्रस्ट सह कार्यकारी निदेशक (सीआइएनआइ), पुणे।

हमारे पड़ोस में हैं मलेरिया मुक्त देश

आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि हमारे पड़ोस में ही कुछ ऐसे देश हैं, जहां से मलेरिया का नामो-निशान मिट चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन देशों को मलेरिया मुक्त घोषित किया है। विश्व में सिर्फ तीन ही ऐसे देश हैं और साल 2016 में हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका को यह उपलब्धि हासिल हुई है। इसके अलावा मालदीव और सिंगापुर दो ऐसे देश हैं जहां से मलेरिया का सफाया हो चुका है।

क्या है मलेरिया

मलेरिया प्लाज्मोडियम नाम के पैरासाइट से होने वाली बीमारी है। यह मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है। ये मच्‍छर गंदे पानी में पनपता है। आमतौर पर मलेरिया के मच्छर रात में ही ज्यादा काटते हैं। कुछ मामलों में मलेरिया अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है। ऐसे में बुखार ज्यादा न होकर कमजोरी होने लगती है और एक स्टेज पर मरीज को हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। 

क्या भारत में सफल होगा यह प्रयोग

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को अपनी प्रयोगशाला में तो करके देख लिया है और वे सफल भी रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्‍या ये तकनीक किसी जंगल में काम करेगी, जहां सदियों से मलेरिया का मच्‍छर पनप रहा है और लोगों का शिकार कर रहा है। यही जांच करने के लिए शोधकर्ताओं ने भारत को चुना है। यहां अमेरिका टाटा ट्रस्‍ट के साथ मिलकर नई तकनीक पर प्रयोग करने की योजना बना रही है, जिसके लिए 460 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। 

नैनो तकनीक से मच्छरों पर नियंत्रण

नैनो तकनीक का उपयोग दुनियाभर में बढ़ रहा है और लगभग सभी क्षेत्रों में इसे आजमाया जा रहा है। भारतीय वैज्ञानिकोंने अब नीम यूरिया नैनो-इमलशन (एनयूएनई) नामक नैनो-कीटनाशक बनाया है, जो डेंगू और मस्तिष्क ज्वर फैलाने वाले मच्छरों से निजात दिला सकता है। तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित वीआइटी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया यह नया नैनो-कीटनाशक डेंगू और मस्तिष्क ज्वर (जापानी इंसेफेलाइटिस) फैलाने वाले मच्छरों क्रमश: एडीज एजिप्टी और क्यूलेक्स ट्रायटेनियरहिंचस की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वैज्ञानिकों ने नीम के तेल, ट्विन-20 नामक इमल्शीफायर और यूरिया के मिश्रण से माइक्रोफ्लुइडाइजेशन नैनो विधि से करीब 19.3 नैनो मीटर के औसत नैनो कणों वाला नीम यूरिया इमलशन तैयार किया है।

नैनो कीटनाशक में है अद्भुत क्षमता

एनयूएनई नैनो-कीटनाशक में मच्छरों के अंडों और लार्वाओं की वृद्धि रोकने की अद्भुत क्षमता पाई गई है। अध्ययन में एनयूएनई का घातक प्रभाव इन मच्छरों के लार्वाओं की आंतों में स्पष्ट रूप से देखने को मिला है। सामान्य संश्लेषी कीटनाशकों का प्रभाव सतही स्तर तक ही पड़ता है, लेकिन नैनो प्रवृत्ति होने के कारण एनयूएनई का प्रभाव मच्छरों की कोशिकाओं से लेकर एंजाइम स्तर तक पड़ता है। यह मच्छरों के लार्वा की कोशिकाओं में मिलने वाले प्रोटीन, लिपिड, कार्बोहाइड्रेट और एंजाइमों की मात्रा को कम कर देता है, जिससे मच्छरों के प्रजनन के साथ-साथ लार्वा से मच्छर बनने और उनके उड़ने जैसे गुणों में कमी आती है। इससे नैनो-कीटनाशक की मच्छरों के प्रति प्रभावी विषाक्तता का पता चलता है, जो उनकी बढ़ती आबादी में रोक लगाने के लिए कारगर साबित हो सकती है।

यह भी पढ़ें: इस मुस्लिम बहुल देश की करेंसी पर शान से अंकित हैं हिंदुओं के पूजनीय ‘गणपति’

यह भी पढ़ें: जिसने कड़े फैसले लेने कभी परहेज नहीं किया वह थी ‘इंदिरा गांधी’ 

यह भी पढ़ें: नीलाम हो गया नेपोलियन के मुकुट पर सजा गोलकुंडा की खान का गुलाबी हीरा 

यह भी पढ़ें: 13 हजार करोड़ की लागत से बना है हादसों का यमुना-आगरा ‘एक्स़प्रेस वे’ 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.