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चीन के खिलाफ भारत के साथ जापान, जानिए- और कौन-कौन देंगे साथ

जिन देशों की सीमाएं चीन से लगती हैं और उनके साथ चीन का विवाद है वे भी भारत के समर्थन में खुलकर नहीं आ सकते, क्योंकि उनके चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते हैं।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 18 Aug 2017 04:10 PM (IST)Updated: Mon, 21 Aug 2017 12:32 PM (IST)
चीन के खिलाफ भारत के साथ जापान, जानिए- और कौन-कौन देंगे साथ
चीन के खिलाफ भारत के साथ जापान, जानिए- और कौन-कौन देंगे साथ

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारत और चीन की सेनाएं डोकलाम में पिछले करीब 2 महीने से आमने-सामने हैं। दोनों देश अपनी-अपनी सेनाओं को एक कदम भी पीछे हटाने को तैयार नहीं हैं। चीन के साथ डोकलाम विवाद का भारत कूटनीतिक हल निकालने की कोशिश कर रहा है। भारत को अपनी इन कोशिशों में सफलता भी मिलती दिख रही है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तो पहले ही भारत के साथ थे, अब चीन के पड़ोसी देश जापान ने भी भारत का समर्थन किया है। शीर्ष अधिकारियों के अनुसार जापान ने अपने राजनयिक चैनल के जरिए इस मामले में भारत का पक्ष लिया है। इस मामले में एक खास बात यह भी है कि अगले महीने 13 से 15 सितंबर के बीच प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत यात्रा पर आ रहे हैं।

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भारत में जापान के राजदूत केंजी हीरामात्सू और उनकी राजनयिकों की टीम ने पिछले कुछ समय में जापान की स्थिति के बारे में भारत सरकार और भूटान सरकार को बताया है। बता दें कि हीरामात्सु को भूटान में भी राजदूत के रूप में मान्यता हासिल है। उन्होंने अगस्त की शुरुआत में ही भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे से मुलाकात करके उन्हें बताया था कि जापान और सरकार के शीर्ष अधिकारियों का भूटान को समर्थन है। हालांकि जानकार इसे सिर्फ नैतिक समर्थन मान रहे हैं और उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय फोरम में किसी भारत के समर्थन की घोषणा नहीं की है। 

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जापान का भी है चीन से विवाद

चीन और भारत के बीच डोकलाम विवाद को जापान बेहद करीब से देख रहा है। जापान का मानना है कि दोनों देशों के बीच जारी गतिरोध पूरे क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है। बता दें कि चीन के साथ जापान का भी इसी तरह का क्षेत्रीय विवाद चल रहा है। टोक्यो का यह मानना है कि विवादित क्षेत्रों में शामिल सभी दलों को बल द्वारा यथास्थिति को बदलने के एकतरफा प्रयासों का सहारा नहीं लेना चाहिए। 

पूरी सीमा पर चीन दिखा रहा दादागिरी

भारत एक तरफ जहां इस समस्या का कूटनीतिक हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ सीमा पर भी सेना का जमावड़ा किया जा रहा है। डोकलाम विवाद के बाद उत्तराखंड में बाड़ाहोती और जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में भी चीन के साथ तनाव बढ़ गया है। भारत ने इन क्षेत्रों में भी सेना को मुस्तैद कर दिया है। उधर चीन की तरफ से लगातार धमकियां मिल रही हैं। लद्दाख में मशहूर पैंग्योंग झील के किनारे इसी हफ्ते की शुरुआत में चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की।

भारतीय सैनिकों ने उन्हें रोका तो चीनी सैनिकों ने पथराव कर दिया, जिसके बाद भारतीय सौनिकों ने भी करारा जवाब दिया और उन्हें सीमा से बाहर खदेड़ दिया। दोनों ओर से की गई पत्थरबाजी में सैनिकों को मामूली चोटें आई हैं। लेकिन बाद में चीन ने यहां किसी तरह की घुसपैठ की कोशिश से साफ इनकार भी कर दिया। उत्तराखंड के बाराहोती में भी चीनी सैनिकों ने हाल के दिनों में घुसपैठ की है। यही नहीं चीनी हेलिकॉप्टर भी इस इलाके में भारतीय सीमा में उड़ान भरते देखे गए हैं। इलाके में बकरियां और भेड़ें चराने गए चरवाहों को भी चीनी सैनिकों ने वहां से भगा दिया।

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गली के गुंडे जैसा है चीन का स्वभाव

निश्चित तौर पर चीन एक महाशक्ति है। वह एशिया महाद्वीप से इकलौता देश है जो संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य है। दुनियाभर में उसकी कंपनियों का बोलबाला है। दुनियाभर में मोबाइल के छोटे-छोटे उपकरणों से लेकर युद्धक पोत और लडाकू विमान तक चीन बना रहा है। चीन को अमेरिका के बाद दूसरी महाशक्ति माना जाता है। लेकिन जानकार उसकी हरकतों को 'गली के गुंडे' जैसी करार देते हैं। जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा और क्षेत्रफल के लिहाज से तीसरा सबसे बड़ा देश है चीन। दुनिया के 14 देशों से चीन की सीमाएं (22000 किमी) लगती हैं। उत्तर कोरिया, रूस, मंगोलिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, म्यांमार, लाओस और वियतनाम में से लगभग सभी के साथ उसका सीमा विवाद चल रहा है। कुछ देशों को छोड़कर ज्यादातर पड़ोसियों को चीन अक्सर धमकी देता रहता है।

समुद्री सीमा में भी गुंडई करता है चीन

ताइवान को चीन अलग देश मानने से ही इनकार करता रहा है और उसके साथ चीन का विवाद भी काफी पुराना है। पूर्वी चीन सागर में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ चीन का विवाद है। दक्षिण चीन सागर में भी वह दादागिरी दिखाने से बाज नहीं आता और फिलिपीन्स व वियतनाम के साथ उसका विवाद जगजाहिर है। संयुक्त का सदस्य होने के बावजूद चीन समुद्री सीमा को लेकर उसके कानूनों की खुलेआम अवहेलना करता है। खासकर दक्षिण चीन सागर जो एक अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र है को चीन अपना बताता है। चीन की इसी दादागिरी को लेकर जहां एक ओर वियतनाम और फिलिपींस परेशान हैं, वहीं अमेरिका भी यहां दखल दे रहा है।

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चीन से परेशान सभी, लेकिन साथ नहीं देगा कोई

इस मामले में Jagran.Com ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. सुब्रतो मुखर्जी से खास बात की। डॉ. मुखर्जी ने जापान द्वारा भारत को समर्थन दिए जाने को सिर्फ नैतिक समर्थन बताया। उन्होंने कहा, चाहे जापान हो या कोई अन्य देश, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुलकर भारत का समर्थन नहीं करेगा। डॉ. मुखर्जी ने बताया कि जापान का काफी ज्यादा निवेश चीन में है और अगर जापान ने खुले तौर पर भारत का समर्थन किया तो उसके निवेश को नुकसान पहुंचेगा। जिन देशों की सीमाएं चीन से लगती हैं और उनके साथ चीन का विवाद है वे भी भारत के समर्थन में खुलकर नहीं आ सकते, क्योंकि उनके चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते हैं और इसी लिए वह भारत-चीन विवाद पर चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने कहा, दक्षिण-पूर्व के जिन देशों के साथ चीन का विवाद है वे भी उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (पूर्व में ओबीओआर) सम्मेलन में शामिल हुए। यहां तक कि अमेरिका भी उसमें शामिल होने के लिए पहुंचा था, सिर्फ भारत ही इसमें नहीं गया। उन्होंने कहा, जिस बांग्लादेश को बनाने के लिए भारत ने पाकिस्तान से जंग लड़ी वह तक भारत-चीन विवाद पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

अपनी लड़ाई हमें खुद लड़नी पड़ेगी

पूर्व राजनयिक ने कहा, चीन के साथ सीमा विवाद हमारी अपनी लड़ाई है और इसे हमें ही लड़ना होगा। इसके लिए उन्होंने सुझाव दिया कि हमारे नेताओं और सेना को बयानबाजी नहीं करनी चाहिए। इस मामले में धीरे चलना चाहिए। अपनी ताकत बढ़ानी चाहिए और लंबे समय की रणनीति पर काम करना चाहिए। कूटनीतिक तरीके से हर समस्या का समाधान निकालना चाहिए, लड़ाई से बचने का एक ही तरीका है और वह है कूटनीति। हमें खुद पर भरोसा रखना चाहिए, साथ ही सीमा पर तैयारी भी करते रहना चाहिए, लेकिन इसको लेकर हो-हल्ला मचाने की कतई जरूरत नहीं है। सीमा विवाद को कोल्ड वार की स्थिति में ले जाना चाहिए। सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं तो खड़ी हैं, उकसावे के चीन के सामने डटे रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा 'कोल्ड वार नेवर बिकेम हॉट...' इसलिए स्थिति को शांत बनाए रखने की जरूरत है।

भूटान भी यूएन में नहीं उठाएगा मुद्दा

डॉ. सुब्रतो मुखर्जी ने बताया कि भारत और भूटान के बीच साल 2007 में समझौते की समीक्षा हुई, जिसके तहत भूटान की सुरक्षा की जिम्मेदारी अब भारत की नहीं है। भूटान अब अपनी पॉलिसी खुद बना सकता है। अभी तो भूटान के बुलावे पर भारतीय सेना डोकलाम में पहुंची है। भूटान भी संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है वह चाहे तो चीन के साथ ताजा सीमा विवाद को यूएन में उठा सकता है, लेकिन वह ऐसा नहीं करेगा। वह भी चीन से सीधा लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता। उन्होंने बताया कि चीन के विवाद को सुलझाने के लिए भारत का सुझाव एकदम सही है कि आप भी अपनी सेना हटा लो, हम भी हटा लेते हैं। लेकिन चीन इसके लिए तैयार नहीं है। चीन का कहना है कि भारत बिना शर्त अपनी सेना डोकलाम से हटाए, लेकिन वह अपनी सेना के वहां रहने या हटने के बारे में कुछ नहीं कहता।

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