Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जानें, दिल्ली से नई दिल्ली बनने में दिसंबर का महीना क्यों था खास

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Sat, 09 Dec 2017 03:53 PM (IST)

    राजधानी दिल्ली का सफर कभी स्वर्णिम उजालों सा तो कभी स्याह दास्तानों सा रहा। उजड़ी भी तो बसी भी इसके साथ ही विकास की दौड़ में गिरती और संभलती रही।

    जानें, दिल्ली से नई दिल्ली बनने में दिसंबर का महीना क्यों था खास

    नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। राजधानी दिल्ली का सफर.. कभी स्वर्णिम उजालों सा तो कभी स्याह दास्तानों सा है। कभी उजड़ी तो कभी बसी। विकास की दौड़ में कभी गिरी तो कभी सम्हली। इस दौरान दिल्ली ने बहुत कुछ देखा और सहा भी। शायद यही कारण है कि कभी नौ दिल्ली, दस बादली, किला वजीराबाद जैसी कहावतें भी कही गई। दिल्ली के इतिहास में दिसंबर माह की खासी अहमियत है क्यों कि इसी माह अंग्रेजों ने मुगलों की दिल्ली को बतौर राजधानी स्वीकार किया। अंग्रेजों ने राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया।1911में दिल्ली दरबार सजाया गया। पूरे शहर को सजाया गया। दिल्ली में एक बार में शायद पहली बार इतनी भीड़ उमड़ी थी। दरबार में ना केवल दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा की गई बल्कि लुटियन दिल्ली की रूपरेखा तैयार की गई।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दिल्ली दरबार के बहाने नई दिल्ली की कहानी
    दिल्ली दरबार के बहाने नई दिल्ली बनने की कहानी से रूबरू होंगे। पहला दिल्ली दरबार सन 1877 में लार्ड लिटन ने आयोजित किया। जिसमें महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। जबकि दूसरा दिल्ली दरबार सन1903 में आयोजित हुआ। जिसमें बादशाह एडवर्ड सप्तम की ताजपोशी की घोषणा की गई थी। तीसरा दरबार दिल्ली में सन 1911 दिसंबर में आयोजित किया गया। बादशाह जॉर्ज पंचम और उसकी महारानी इस अवसर पर भारत आये थे और उनकी ताजपोशी का समारोह भी हुआ था।


    बंगाल के लोग ब्रिटिश सरकार से थे नाराज

    इतिहासकारों की मानें तो सन 1857 के आंदोलन के बाद बंगाल में अंग्रेजों के बाद जबरदस्त आक्रोश था। इसी वजह से राजधानी स्थानांतरित करने की योजना बनाई गई। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि समारोह में खलल पड़े इसलिए राजधानी स्थानांतरित करने की बात की आखिरी समय तक किसी को भनक तक नहीं लगने दी गई। दिल्ली को सजाया गया ऐसी चंद घटनाएं होती हैं जो वर्तमान के साथ भविष्य को व्यापक पैमाने पर प्रभावित करती हैं। उनमें दिल्ली दरबार शुमार है। इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि पूरे शहर को सजाया गया था। उस समय तक नई दिल्ली का नामों निशान नहीं था। चांदनी चौक, जामा मस्जिद, सीताराम बाजार सरीखे बाजार प्रसिद्ध थे। अंग्रेजों ने पुरानी दिल्ली से सदर बाजार, पहाडग़ंज व सुदूर उत्तर की तरफ कैंप लगाए। जबकि आयोजन शांति स्वरूप त्यागी मार्ग माडन टाउन के पास के पास कारनेशन पार्क था। देश भर की रियासतों के महाराज आए थे। न्यू साउथ वेल्स के स्टैकी वैडी ने तब लिखा था कि करीब 25 स्कवायर मील एरिया पर कैंप बनाए गए थे। जबकि यह जमीन करीब एक साल पहले तक निर्जन थी। पूरे शहर को लाइटों से सजाया गया था। शहर की नाकेबंदी की गई थी। सोने, चांदी से लदे हाथी, आकर्षक परिधानों में महाराज दिल्ली दरबार में देश भर की रियासतों के महाराजा, रानियों को आमंत्रित किया गया था।

    1911के दिल्ली दरबार में राजा-महाराजा हुए शामिल

    हैदराबाद, नेपाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ग्वालियर, कपूरथला, भूटान, मैसूर समेत अन्य रियासतों के राजा आए थे। आयोजन इतना भव्य था कि इसके लिए शहर से दूर बुराड़ी इलाके को चुना गया और अलग-अलग राच्यों से आए राजा-रजवाड़े, उनकी रानियां, नवाब और उनके कारिंदों सहित भारतभर से अतिविशिष्ट निमंत्रित थे। लोगों के ठहरने के लिए हज़ारों की संख्या में लगाए गए अस्थाई शिविरों के अलावा दूध की डेरियों, सब्जियों और गोश्त की दुकानों के रुप में चंद दिनों के लिए शहर से दूर मानो एक पूरा शहर खड़ा किया गया था। कैंप तीन लाख लोगों की क्षमता वाले थे लेकिन कहा जाता है कि साढ़े सात लाख लोगों से ज्यादा लोग दिल्ली दरबार देखने दिल्ली पहुंचे थे।


    12 दिसंबर 1911 को लगा था दिल्ली दरबार

    इतिहासकार कहते हैं कि राजा महाराजा हाथी,घोड़े,पालकी,रथ पर सवार होकर गुजरते थे। लोग देखने के लिए दोनों तरफ लाइन लगाए हुए थे। सोने,चांदी से लदे राजाओं को देखना लोगों के लिए एक नया अनुभव था। राजा अपने अपने क्षेत्र अंतर्गत परिधान पहने हुए थे। दरबार में महत्वपूर्ण निर्णय आरवी स्मिथ कहते हैं कि 12 दिसंबर को दिल्ली दरबार लगा था। उस दिन सुबह से ही पूरी दिल्ली में चहल पहल थी। जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी हाथी पर बैठकर दरबार पहुंची। उन्होंने विशेष रूप से बनी मुगल डिजाइन में मुकुट पहनी थी। उनकी सवारी चांदनी चौक, जामा मस्जिद से गुजरी। जिस रास्ते से किंग जॉर्ज और क्वीन मैरी का काफि़ला गुजऱा वो आज भी उन्हीं के कारण किंग्सवे कैंप के रूप में जाना जाता है। किंग के लिए विशेष रूप से यहां रेलवे लाइन तक बिछायी गई थी। बकौल स्मिथ जिस ट्रेन पर किंग बैठे थे, उसका इस्तेमाल पंडित जवाहर लाल नेहरू की शादी के दौरान बारातियों को ले आने के लिए किया गया था।

    12 दिसंबर 1911 की सुबह करीब एक लाख लोग दरबार में मौजूद थे। राबर्ट ग्रांट ने अपनी पुस्तक द इंडियन समर में द मेकिंग आफ न्यू दिल्ली की व्याख्या करते हुए लिखा है कि उस समय दिल्ली की जनसंख्या 4 लाख थी जबकि दरबार में इससे ज्यादा लोग शरीक हुए थे। दिल्ली की गलियों में उस दिन घुमने का अपना अनुभव बयां करते हुए मिस्टर वैडी ने लिखा है कि एक साथ एक समय में सड़कों पर इतनी विविधता वाले लोगों को देखना अद्भूत था। बादशाह जॉर्ज पंचम और उसकी महारानी मुख्य स्टेज पर बैठी थी। दरबार के अंत में भीड़ के सामने ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम ने जब ये घोषणा की,तब लोग एकाएक यह समझ भी नहीं पाए कि चंद लम्हों में वो भारत के इतिहास में जुडऩे वाले एक नए अध्याय का साक्ष्य बन चुके हैं।


    दिल्ली में महल निर्माण के लिए राजाओं ने मांगी अनुमति

    आरवी स्मिथ कहते हैं कि दरबार के बाद किंग और महारानी लाल किले के पीछे झरोखों पर आए। उन्हें देखने के लिए रिंग रोड की तरफ लाखों की संख्या में लोग इक्टठा थे। रियासतों को मिला महल बनाने की अनुमति सुुमंत कुमार भौमिक लिखते हैं कि दिल्ली दरबार के बाद ही नई दिल्ली की संरचना गढ़ी गई। रियासतों के राजाओं को यहां महल बनाने की इजाजत दी गई। ऐसा नहीं था कि इसके पहले राजा यहां महल बनाने के इच्छुक नहीं थे। सन 1905 में सबसे पहले त्रिपुरा के राजा ने जमीन का एक टुुकड़ा खरीदने की इच्छा जताई थी। हालांकि अनुुमति नहीं मिल पायी थी। लेेकिन दिल्ली दरबार में अनुमति मिलने के बाद ऐसे प्रस्तावों की बाढ़ सी आ गई। जून 2012 तक तो सिरोही, ओरछा, भरतपुर,जोधपुर,धौलपुर, देवास, जींद, कपूरथला, मिराज सीनियर, बीकानेर,कोल्हापुर, कश्मीर और बहावलपुर रियासतों ने आवेदन किया। महल निर्माण की अनुमति के साथ ही लुटियंस दिल्ली की संकल्पना साकार लेने लगी थी।

    सिविल लाइंस में नई दिल्ली बसाने की थी चाह

    आरवी स्मिथ बताते हैं कि अंग्रेज पहले सिविल लाइंस में नई दिल्ली बसाना चाहते थे। किंग्सवे कैंप में भी योजना बनाई गई थी। इसीलिए तो किंग की ताजपोशी यहीं हुई थी। हालांकि बाद में रायसीना हिल्स चुना गया। लाइटों से जगमगा उठी दिल्ली दरबार के पहले और बाद में सार्वजनिक अवकाश घोषित हुआ और हर तरफ पुलिस की नाकेबंदी ने आम लोगों को खास लोगों के स्वागत के लिए पहले ही सावधान कर दिया। दरबार के अगले दिन राजधानी दिल्ली बनी। जश्न के रुप में लाइटों से जगमगा उठी और इस मौके पर अंग्रेज प्रशासन ने आम लोगों से भी अपने घरों को रौशन करने का आग्रह किया। इसके लिए शहर में अतिरिक्त बिजली का विशेष इंतजाम किया गया था। 
    यह भी पढ़ें: पेट खाली और सपनों से भरी आंखें, देश के लिए सोना जीतना चाहती हैं ये बहनें

    comedy show banner
    comedy show banner