गौचर समेत 7000 बीमारियों का निशुल्क होगा इलाज, जानते हैं किसकी बदौलत
कोर्ट के आदेश के बाद आखिरकार गौचर समेत करीब 7000 बीमारियों के निशुल्क इलाज का रास्ता साफ हो चुका है। इस जीत के पीछे कोई और नहीं बल्कि एक रिक्शा चलाने वाला है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। गौचर एक ऐसी जन्मजात बीमारी है जिसमें मरीज का लिवर बढ़ जाता है। इसकी सभी दवाइयां विदेशों से मंगानी पड़ती हैं, यही वजह है कि अब से पहले इसके इलाज पर खर्च लाखों में आता था जिसे वहन करना हर किसी के बस की बात नहीं होती थी। लेकिन अब यह बात पुरानी हो गई है। इसकी वजह है कि हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद गौचर समेत करीब 7000 बीमारियों का इलाज निशुल्क संभव हो पाया है। इसको लेकर 25 मई 2017 को केंद्र ने कानून बनाते हुए इन बीमारियों से लड़ने के लिए 100 करोड़ का कोष तैयार किया है। इसमें मरीजों के इलाज पर होने वाला 60 फीसद खर्च केंद्र, जबकि 40 फीसद खर्च राज्य सरकार द्वारा गठित कोष से दिया जाएगा।
कुछ ऐसी है टंपे कमेटी रिपोर्ट
गौचर से संबंधित डीके टंपे कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि इस बीमारी के इलाज पर होने वाला खर्च लाख से करोड़ रुपये तक है। इतने पैसे में दस हजार मलेरिया से पीड़ितमरीजों और करीब 400 एचआईवी पीड़ितमरीजों का इलाज किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अभी तक पहचान किए गए रेयर डिजीज में से अमेरिका में हर एक हजार लोगों में से करीब छह लोग इनसे पीड़ितहैं, वहीं जापान में इनकी संख्या प्रति हजार पर चार है। विश्व में करीब छह से आठ हजार रोग रेयर डिजीज कैटेेगरी में पहचान में आए हैं, जिनमें से करीब 450 बीमारियों से पीड़ित मरीज भारत में हैं।
निशुल्क इलाज
इस बारे में कोर्ट ने 11 अगस्त 2017 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव को इस संबंध में उठाए गए कदमों की जानकारी देने का भी आदेश दिया है। इसमें वह बताएंगे कि बिना किसी परेशानी के दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीज केंद्र द्वारा बनाए कानून का लाभ कैसे ले सकेंगे। अब देशभर में गौचर, फेबरी,पाम्पे, एमपीएस-1 सहित हजारों तरह की बीमारियों का निशुल्क इलाज हो सकेगा। आम तौर पर इन बीमारियों के इलाज में लाखों का खर्च आता है जो हर किसी के बस की बात नहीं होती है।
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आसान नहीं थी लड़ाई
लेकिन केंद्र की इस पहल के पीछे आपको इस बात की भी जानकारी होनी जरूरी है कि आखिर यह सब कैसे संभव हो पाया है। यह सब इतना आसान नहीं था। इस कानूनी लड़ाई में सबसे पहली जीत 17 जनवरी, 2014 को उस वक्त मिली थी जब कोर्ट ने गौचर समेत अन्य आनुवांशिक और दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित मरीजों के निशुल्क इलाज के लिए केंद्र व दिल्ली सरकार को नीति बनाने का आदेश दिया था। जिसकी बदौलत यह संभव हो पाया और केंद्र को पहल करनी पड़ी वह कोई बहुत पढ़ा-लिखा या कोई अमीर इंसान नहीं है, बल्कि एक रिक्शा चलाने वाला सिराजुद्दीन है।
रिक्शा चालक है सिराजुद्दीन
दरअसल, सिराजुद्दीन ने अपने पांच बच्चों को इसी बीमारी के चलते खो दिया था। अपने बच्चों की मौत का गम सहने वाले सिराजुद्दीन ने समाज के लिए वो काम कर दिखाया जो कोई पढ़ा-लिखा और अमीर आदमी भी नहीं कर सका। लेकिन सिराजुद्दीन ने सैकड़ों की जिंदगी बचाने की व्यवस्था कर दी है। उनके ना हारने वाले हौंसले के चलते 7000 तरह की आनुवांशिक और दुर्लभ बीमारियों के निशुल्क इलाज के लिए कानून बन गया है।
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बच्चे को बचाने के लिए कोर्ट से लगाई गुहार
पांच बच्चों को खोने के बाद उनका छठा बच्चा भी इसी बीमारी से पीड़ित था। अपने बच्चे को किसी भी सूरत में बचाने की कोशिश में वह कोर्ट जा पहुंचे और अपनी तंगहाली और अपने बच्चे की जिंदगी का वास्ता देकर अदालत से बच्चे का निशुल्क इलाज करवाने की गुहार लगाई। आखिर में कोर्ट ने उनकी सुनी और न सिर्फ उनके बेटे का निशुल्क इलाज करने का आदेश दिया बल्कि इसके अलावा कई अन्य बीमारियों के निशुल्क इलाज करने का भी आदेश सरकार को दिया है। सिराजुद्दीन की बदौलत लोगों को जरूर राहत मिली है जिनका कोई अपना इस बीमारी से पीड़ितहै और पैसों की कमी के चलते इलाज कराने में सक्षम नहीं है।
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क्या है गौचर बीमारी
गौचर एक जन्मजात बीमारी है जिसमें मरीज का लिवर बढ़ जाता है। इसके इलाज के लिए एन्जाइम का इंजेक्शन दिया जाता है। मौजूदा समय में इलाज पर 5 से 7 लाख रुपये का खर्च आता है। इसकी सभी दवाइयां विदेशों से मंगानी पड़ती हैं। अमेरिका में इस बीमारी से एक लाख में से एक व्यक्ति पीड़ित है, जबकि भारत में इसका कोई आंकड़ा अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। 1990 तक विश्व में इसका उपचार नहीं था। इस इलाज के लिए होने वाली एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी का खर्च भी लाखों में आता है। यदि इसका उपचार ठीक तरह से न किया जाए तो इसका असर ब्रेन तक भी पड़ सकता है। इसका कारण ग्लूकोसर ब्राइट एंजाइम (लिपिड) में गड़बड़ होता है। जिसके कारण स्पलीन और लीवर काफी बढ़ जाता है। हड्डी काफी कमजोर हो जाती है। अकड़ने लगती है और मामूली चोट से भी यह टूट जाती हैं।
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