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ईवे बिल की उलझन को जल्द दूर करना जरूरी

भारत में ट्रकों का 60 फीसद समय रास्ते की अड़चनों मसलन, टोल, व्यापार कर, चुंगी, आरटीओ, पुलिस व यातायात पुलिस आदि के झमेलों में जाया होता है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Fri, 30 Jun 2017 06:26 PM (IST)Updated: Fri, 30 Jun 2017 06:26 PM (IST)
ईवे बिल की उलझन को जल्द दूर करना जरूरी
ईवे बिल की उलझन को जल्द दूर करना जरूरी

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भले ही शुरुआती दो महीने में जीएसटी के तहत ईवे बिल का लागू होना टल गया हो, लेकिन जब तक इसकी उलझन पूरी तरह सुलझ नहीं जाती लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्ट सेक्टर पर जीएसटी को पूरी तरह लागू करने में थोड़ा वक्त लग सकता है।

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जीएसटी भारतीय परिवहन क्षेत्र में सुधार का वाहक बन सकता था। परंतु ट्रांसपोर्टर लाबी के सुधार विरोधी रवैये के कारण इसके लाभ सीमित रहेंगे। चूंकि अभी अधिकांश ट्रांसपोर्टरों का ज्यादातर कारोबार देसी तौर-तरीकों से चलता है जिसमें टैक्स बचाने की हर तरकीब आजमाई जाती है, लिहाजा वे ऑनलाइन ईवे बिलों से डरे हुए हैं। इससे उनका पूरा लेनदेन सामने आ जाएगा और उनकी टैक्स चोरी की कोई चाल काम नहीं आएगी।

जीएसटी काउंसिल ने मसौदा नियमों में ईवे बिल के लिए एक ट्रक द्वारा दिन में तय की जाने वाली न्यूनतम दूरी को आधार बनाया है। यदि सामान पहुंचने में देरी होती है या रास्ते में वाहन बदला जाता है तो ई-वे बिल रद हो जाएगा और ट्रक वाले को नया ईवे बिल बनाना होगा। यह नियम पचास हजार रुपये से अधिक मूल्य के सभी सामानों को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने पर लागू होगा। ट्रांसपोर्टर इस व्यवस्था को लेकर आशंकित हैं। उनका कहना है कि ईवे बिल की अड़चनों से सामान की डिलीवरी में देरी होगी और खर्च बढ़ेगा।

भारत में ट्रकों का 60 फीसद समय रास्ते की अड़चनों मसलन, टोल, व्यापार कर, चुंगी, आरटीओ, पुलिस व यातायात पुलिस आदि के झमेलों में जाया होता है। केवल 40 फीसद समय ट्रकों के संचालन के लिए मिलता है। इससे परिवहन की लागत वैश्रि्वक मानकों के मुकाबले तीन गुना तक बढ़ जाती है। ऐसे में जीएसटी का फायदा तभी मिल सकता है जब रास्ते की तमाम चेकपोस्ट को हटा दिया जाए और ट्रकों की बेरोकटोक आवाजाही के इंतजाम किए जाएं। परंतु जीएसटी के मसौदा नियमों से इस समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। उलटे बार-बार ईवे बिल तैयार करने से छोटे आपूर्तिकर्ताओं तथा ट्रांसपोर्टरों की परिवहन लागत और बढ़ जाएगी।

ईवे तैयार करने के लिए ट्रांसपोर्टरों को कंप्यूटर लगाने के साथ दक्ष लोग रखने पड़ेंगे और जब-जब वाहन एक गोदाम से दूसरे गोदाम को रवाना होगा, नया ईवे बिल जेनरेट करना पड़ेगा। इससे एक ही कंसाइनमेंट के कई आर्डर बनेंगे जिन्हें एक साथ क्लब करना संभव नहीं होगा। पंजीकृत आपूर्तिकर्ताओं को जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) के पोर्टल पर जाकर प्रत्येक कंसाइनमेंट का आनलाइन बिल जेनरेट करना होगा। ट्रांसपोर्टर को सामान सौंपते वक्त वह आपूर्तिकर्ता द्वारा प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर ईवे बिल तैयार करेगा।

इन आंकड़ों की पुष्टि 72 घंटे के अंदर करनी होगी। अन्यथा ईवे बिल रद हो जाएगा। तीन और स्थितियों में बिल रद हो जाएगा : 1. यदि वाहन खराब हो जाता है या रास्ते में रोक लिया जाता है तथा ट्रक वाला 30 मिनट के भीतर इसका ब्यौरा नहीं देता। 2. यदि वाहन नियमानुसार निर्धारित समय सीमा के भीतर गंतव्य पर नहीं पहुंचाने। 3. यदि सामान की ढुलाई पोर्टल पर दी गई जानकारी और ईवे बिल जेनरेट होने के अनुसार 24 घंटे के भीतर शुरू नहीं होती।

यदि ड्राइवर को रास्ते में कोई समस्या होती है तो उसे जीएसटीएन पोर्टल के जरिए इसकी सूचना देनी होगी। यह सभी ड्राइवरों के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि एक तो सारे ड्राइवर इंटरनेट के प्रयोग में दक्ष नहीं हैं। दूसरे रास्ते में तमाम जगहों पर इंटरनेट कनेक्टिविटी की दिक्कत आएगी। मसौदा नियमों में किसी ट्रक द्वारा दूरी के आधार पर सामान पहुंचाने की समय सीमा भी दी गई है। उदाहरण के लिए 100 किलोमीटर के लिए एक दिन और 300 किलोमीटर के लिए तीन दिन। यदि इस समय सीमा में सामान नहीं पहुंचाने तो नया ईवे बिल जनरेट करना पड़ेगा।

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