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दुनिया में भूगर्भ जल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाला देश है भारत, इसके बाद चीन और यूएस

भारत दुनिया में सबसे अधिक धरती के पानी का इस्‍तेमाल करने वाला देश है। वर्तमान में हम जल का सरंक्षण करने में काफी पीछे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Mon, 20 Jul 2020 07:54 AM (IST)
दुनिया में भूगर्भ जल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाला देश है भारत, इसके बाद चीन और यूएस
दुनिया में भूगर्भ जल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाला देश है भारत, इसके बाद चीन और यूएस

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। याद कीजिए, वह तस्वीर। अपने गांव की। हर घर के दरवाजे और आंगन में कुआं। हर गांव का अपना तालाब। सिंचाईं के लिए खेतों के बीच भी मौजूद कुएं। अरसा ज्यादा नहीं बीता। अब क्या तस्वीर है। कुएं खत्म हो गए। तालाब सूख गए तो खेत बना लिए गए या फिर दूसरे तरह के अतिक्रमण से उस जमीन का अन्य मदों में इस्तेमाल हो रहा है। पहले इन जलस्नोतों के साथ अधिकतर कच्ची जमीन पर जमा हुईं बारिश की बूंदें धरती की कोख का जलस्तर बढ़ाती रहती थीं। अब बढ़ते कंक्रीटीकरण ने जलरिसाव की इस नैसर्गिक प्रक्रिया को बाधित किया है। लिहाजा भूगर्भ में कम पानी  रिस पा रहा है। इसके प्रतिकूल भूगर्भ जल को दोहन कई गुना बढ़ा है। तभी देश के कई जिलों में पानी पाताल में पहुंच चुका है। प्रमुख वजहों पर एक नजर:-

भूगर्भ जल का अतिदोहन कराता है साल भर पानी के लिए लोगों का रुदन 

भारत दुनिया में भूगर्भ जल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाला देश है। धरती की कोख से पानी खींचने में दूसरे और तीसरे नंबर पर चीन और अमेरिका हैं, लेकिन अगर इन दोनों देशों द्वारा निकाले जाने वाले पानी की कुल मात्रा को जोड़ दिया जाए, भारत उससे भी अधिक भूगर्भ जल का इस्तेमाल करता है। देश की कुल स्वच्छ जल जरूरत की पूर्ति भूगर्भ जल से होती है। निकाले जाने वाले कुल भूगर्भ जल में से 89 फीसद का इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता है। घरेलू पानी की जरूरतें में भूगर्भ जल की हिस्सेदारी नौ फीसद और उद्योगों में दो फीसद है। शहरों की 50 फीसद जल जरूरत और गांवों की 85 फीसद की पूर्ति भूगर्भ जल से की जाती है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2017 के बीच के सिर्फ दस साल में देश में भूजल स्तर 61 फीसद गिर चुका है। आइआइटी खड़गपुर और कनाडा के अथाबास्का विश्वविद्यालय के संयुक्त अध्ययन के अनुसार भारतीय हर साल 230 घनकिमी भूजल का इस्तेमाल करते हैं जो दुनिया में भूजल उपयोग का एक चौथाई है।

असमान वितरण और उपलब्धता

एक अनुमान के मुताबिक देश के 81 फीसद परिवारों को 40 लीटर पानी मुहैया होता है जबकि ग्रामीण इलाकों के सिर्फ 18-20 फीसद घरों में पाइप से जलापूर्ति की जाती है। यह जल उपलब्धता और आपूर्ति में असंतुलन पैदा करती है। नीति आयोग के कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स के अनुसार देश के 75 फीसद घरों के परिसर में पेयजल उपलब्ध नहीं है। जिन शहरों में पाइप से जलापूर्ति हो रही हैं, वहां मात्रा का बड़ा असंतुलन है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 150 लीटर जलापूर्ति के नियम से ज्यादा पानी की आपूर्ति की जा रही है जबकि देश के ज्यादातर शहरों में यह 40-50 लीटर के बीच है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी व्यक्ति के लिए एक दिन उसकी साफ-सफाई और पेय संबंधी पानी की मात्रा 25 लीटर होनी चाहिए। इस वैश्विक संस्था के अनुसार इसके अतिरिक्त मुहैया कराया जा रहा पानी एक तरीके से बर्बादी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

कानून-कायदा नहीं है बाकायदा

1882 के ईजमेंट एक्ट के अनुसार भूमालिक ही वहां के पानी के इस्तेमाल का अधिकार रखता है। यही कानून अभी तक चला आ रहा है जिसके चलते भूगर्भ जल का अतिदोहन निष्कंटक रूप से बढ़ रहा है। इसके अलावा पानी राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसका मतलब है कि इससे जुड़े नियामक कानून राज्य सरकारें ही बना सकती हैं। 2011 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के लिए भूजल प्रबंधन से जुड़ा एक माडल बिल तैयार किया था, लेकिन अभी तक सभी राज्यों ने उससे मिलता-जुलता बिल नहीं पारित किया है। इस कानून में जोर दिया गया था कि यह प्राकृतिक संसाधन सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए है। इसे निजी मालिकाने में नहीं बदला जा सकता है। जल निकायों और वेटलैंड्स का नुकसान भारतीय वन्यजीव संस्थान का एक सर्वे बताता है कि गंगा के बाढ़ क्षेत्र में 70-80 फीसद ताजे पानी वाले दलदल और झीलें खत्म हो गए हैं। जल संसाधन की स्थायी समिति ने दिसंबर, 2015 में संसद को बताया कि 1955 में देश के 92 फीसद जिलों का भूगर्भ जलस्तर बेहतर था, 2011 में ऐसे जिलों का फीसद 71 हो चला है। अब तो इसमें और कमी आ चुकी होगी। इसी रिपोर्ट के अनुसार 1955 में देश के सिर्फ तीन जिलों में भूगर्भ जल का अतिदोहन हो रहा था, 2011 में इनकी संख्या 15 जा पहुंची है। एक दशक बाद अब इनकी संख्या का सहज अंदाजा कोई भी लगा सकता है।

पानी की बर्बादी

आंकड़ों के अनुसार भारत अभी भी पानीदार देश है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार देश की सालाना जल जरूरत 3000 अरब घन मी है जबकि देश में हर साल 4000 अरब घन मीटर की बारिश होती है। दिक्कत यह है कि भारत अपनी सालाना बारिश का केवल आठ फीसद हिस्सा ही सहेज पाता है जो दुनिया में सबसे कम है। बढ़ती आबादी की जरूरतों और उदार टाउन प्लानिंग नियमों के चलते परंपरागत रूप से बारिश के पानी को सहेजने वाले जलस्नोत खत्म होते चले जा रहे हैं। 

बदहाल रिसाइकिलिंग 

जल शोधन और रिसाइकिलिंग के मामले में भारत की तस्वीर बहुत धुंधली है। करीब 80 फीसद घरों में पहुंचने वाला पानी इस्तेमाल के बाद ऐसे ही सीवर में बहा दिया जाता है। इससे न उसका दोबारा इस्तेमाल हो पाता है और वह प्रदूषित पानी बहकर बड़े जलस्नोतों नदियों आदि को दूषित करता है। इस मामले में हमें रेगिस्तान में बसे इजरायल से सीख लेनी चाहिए जो अपनी हर बूंद का बेहतर इस्तेमाल करता है। यह देश इस्तेमाल किए गए पानी का 100 फीसद शोधन करता है और 94 फीसद को रिसाइकिलिंग द्वारा फिर से घरेलू इस्तेमाल में लाया जाता है।

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